लोग अकसर बेटियों की जगह बेटों को तरजीह देते हैं. उनका ख़्याल भी बेटियों से अधिक रखते हैं. बेटियां जब भी कभी आगे पढ़ने या फिर काम करने की डिमांड करती हैं तो उन्हें ये ताना मारकर चुप करा दिया जाता है कि अपने ससुराल में जाकर जो मन आए करना. 

क्योंकि हमारे समाज में आज भी लोगों की सोच यही है कि बेटा ही आगे चलकर घर चलाएगा और बेटी पराया धन होती है, लेकिन बेटियों ने ये कई बार साबित किया है कि वो किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं. ऐसी ही एक बेटी से हम आज आपको मिलवाएंगे, जिसे पूरी दुनिया भारत की पहली महिला गेटवुमन के नाम से जानती है.

देश की पहली महिला गेटवुमन  

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हम बात कर रहे हैं लखनऊ की रहने वाली मिर्ज़ा सलमा बेग की वो रेलवे में काम करने वाली देश की पहली महिला गेटवुमन है. लखनऊ की मल्हौर रेलवे क्रॉसिंग पर आप उन्हें गेटमैन का काम करते हुए देख सकते हैं. वो ट्रेन आने पर ट्रैक सेट करती हैं, क्रॉसिंग को बंद करती हैं और ट्रेन गुज़र जाने तक हरी झंडी लिए उसके पहियों की जांच भी करती हैं. 

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2013 में मिली नौकरी

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किसी गेटमैन का काम बहुत ही मेहनत वाला काम है. सुबह से शाम तक काम करते-करते बॉडी थक जाती है, मगर अपने कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर निकलकर सलमा ये काम बखूबी कर रही हैं. उन्हें 2013 में इस पोस्ट पर तैनात किया गया था. सलमा के पिता भी रेलवे में नौकरी करते थे, लेकिन कान में परेशानी होने के चलते उन्हें VRS लेनी पड़ी. चूंकि घर का ख़र्च वही चलाते थे और कोई कमाने वाला नहीं था तो उनके घर की माली हालत ख़राब होने लगी. ये देख उनकी बेटियों में से एक सलमा ने रेलवे के नियमों अनुसार जॉब देने की गुहार लगाई.

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साथी गेटमैन कसते थे तंज

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सलमा को उनके पिता की जगह नौकरी तो मिल गई मगर काम थोड़ा शारीरिक थकान वाला था. बहरहाल उन्हें ट्रेनिंग के लिए स्थानीय सेंटर में भेजा गया. यहां भी ट्रेनर्स उनको देख हैरान रह गए. सलमा ने यहां भी हार नहीं मानी ट्रेनिंग पूरी कर वो लखनऊ डिवीज़न पहुंची. यहां से उन्हें मल्हौर स्टेशन के गेटमैन के काफ़िले में शामिल कर लिया गया. उनके साथी गेटमैन सभी पुरुष थे तो वो उनकी पीठ पीछे कहते थे कि इसे यहां क्यों भेज दिया, ये कुछ नहीं कर पाएगी. 

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सलमा ने भी उन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए अपना काम बदस्तूर जारी रखा. शुरुआत में थोड़ी परेशानी हुई लेकिन पिता के हौसले और घर के हालातों ने उनके जज़्बे को टूटने नहीं दिया. कुछ ही दिनों में सलमा अपने काम को पुरुषों से भी बेहतर करने लगी. मल्हौर स्टेशन के सभी उच्च अधिकारी भी उनके काम से ख़ुश हुए. बीते कई सालों में सलमान बेस्ट कर्मचारी का अवॉर्ड भी जीत चुकी हैं.  

सलमा की हिम्मत और जज़्बे को हमारा सलाम.