ये मेरिटल रेप की शिकार हुई एक औरत की आपबीती है.

अनीता की शादी 18 साल की उम्र में हुई थी. सुहागरात के दिन उसके साथ जो रेप होने का का सिलसिला शुरू हुआ, वो कई महीनों तक चला. अनीता का पति IAS अफ़सर था. अकसर वो रात में पी कर घर लौटता और उसके साथ दरिंदों की तरह पेश आता. एक समय ऐसा था, जब वो सोचने लगी कि क्या शादीशुदा ज़िन्दगी ऐसी ही होती है. उसके पति के लिए उसकी इच्छा और सहमती कोई मायने नहीं रखती थी. रात दर रात उसकी यातनाएं बढ़ती चली गयीं. एक बार तबियत ख़राब होने की वजह से जब अनीता ने अपने पति के साथ सोने से मना किया, तो उसने ज़बरदस्ती उसके गुप्तांग में कैंडल डाल दी. वो उसे जबरन पॉर्न दिखाता और उसके बाद उससे वो सब करने को कहता, जो पॉर्नस्टार्स पॉर्न में करते. एक रात जब वो बुखार में तप रही थी, उसने उसे अपने पास आने से रोकने के लिए धक्का दे दिया. इस पर उसने अनीता के बेहोश हो जाने तक गोल्फ़ स्टिक से उसे बेरहमी से पीटा.
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मेरिटल रेप, यानि शादी के बाद पति द्वारा पत्नी के साथ ज़बरदस्ती सम्बन्ध बनाना. ये कहानी सुन कर आप इसका अंदाज़ा तो लगा सकते हैं कि इस औरत पर क्या गुज़री होगी. लेकिन इससे ज़्यादा बुरा है भारत में ऐसी घटनाओं को अपराध की श्रेणी में न रखा जाना. हमारे देश में Marital Rape एक क्राइम नहीं है, न ही इसके लिए कोई सज़ा तय की गयी है.

शादी के बंदन में बंधी बनी औरतें

रेप एक जघन्य अपराध है, ये हम सब जानते हैं. वो रेप का ही अपराध था, जिससे आक्रोशित होकर सारा देश 2012 में सड़कों पर उतर आया था. लेकिन यही रेप जब शादी के बाद होता है, तो अपराध नहीं कहलाता. इससे यही समझ आता है कि एक तरह से शादी पति के लिए रेप करने का लाइसेंस बन जाती है. Consent, सहमती, ये सभी शब्द शादी के बाद एक औरत के लिए अपने मायने खो देते हैं. ये चौंकाने वाली बात है कि ऐसे अपराध को सामान्य ठहराने के लिए भी किसी के पास कोई तर्क हो सकता है.

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औरत मात्र उपभोग की वस्तु?

अमेरिका में शादी के बाद बलात्कार को 1993 से अपराध माना जाने लगा था. पोलैंड, रूस और नॉर्वे जैसे कुछ देशों में पचास साल पहले ही इसके खिलाफ़ क़ानून बन गए थे, लेकिन भारत में आज भी इसके खिलाफ़ कोई क़ानून नहीं है. ये सोचने वाली बात है कि क्या देवी का रूप मानी जाने वाली नारी, शादी के बाद मात्र एक उपभोग की वस्तु रह जाती है?

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अनजान व्यक्ति द्वारा बलात्कार से भी बुरा है ये

अगर कोई कहे कि पति द्वारा किया जाने वाला रेप भी उतना ही अमानवीय है, जितना कि किसी अनजान द्वारा किया गया रेप, तो मैं इससे सहमत नहीं हूं. जब रेप एक अनजान व्यक्ति द्वारा किया जाता है, तो आपका उससे कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं होता, वो इंसान शायद आपको दोबारा कभी दिखाई भी न दे, आप उसके खिलाफ़ रिपोर्ट कर सकती हैं, क़ानून के तहत वो दोषी होता है, उसे सज़ा मिलती है और आपके दर्द को भी लोगों की सहानुभूति मिलती है.

ज़रा एक बार पति द्वारा किये जाने वाले रेप के बारे में सोचिये. जो शादी के वक़्त आपका रक्षक बनने का वचन देता है, वो ही भक्षक बन जाता है, आपको उससे भावनात्मक जुड़ाव होता है, अपेक्षाएं होती हैं. ज़ाहिर है ऐसी दरिंदगी सहने के बाद आपको उससे नफ़रत हो जाएगी, लेकिन फिर भी आपको रोज़ उसका चेहरा देखना होगा, आप उसके साथ एक घर में रहने को मजबूर होंगी, आप इसके खिलाफ़ शिकायत ही नहीं कर सकतीं, तो इंसाफ़ मिलने का सवाल ही नहीं उठता, शायद आपके परिवारवाले भी कह दें कि शादी की है, निभाओ किसी भी तरह. जो हर रात बार-बार आपकी आत्मा को रौंद रहा है, उसके साथ एक बंधन में बंधा होना कई अधिक बुरा है, लेकिन फिर भी हमारा क़ानून इसे अपराध नहीं मानता.

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दिए जाते हैं बेहूदा तर्क:

मेरिटल रेप को अपराध न मानने के लिए जो तर्क दिए जाते हैं, वो औरत की सहमति को महत्वहीन मानने की मानसिकता को दर्शाते हैं. क़ानून का दुरुपयोग न हो, इसलिए इसके लिए क़ानून नहीं बनाया गया. क्या वाकयी? वैसे दुरूपयोग किस क़ानून का नहीं होता? क्या दुरूपयोग को रोकने का यही तरीका है कि क़ानून ही न बनाये जायें? भारत में एक पीड़िता को ही ये साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है कि उसका बलात्कार हुआ है. आरोपी को भी खुद को निर्दोष साबित करने के पर्याप्त मौके दिए जाते हैं, ऐसे में क्यों इसी एक क़ानून के दुरुपयोग का भय इतना ज़्यादा है?

महिलाओं को समाज में समान अधिकार प्राप्त नहीं है, इसके लिए तमाम आन्दोलन भी होते रहते हैं. लेकिन हर जीव का अपने शरीर पर पूरा अधिकार होता है, अगर शादी के बाद औरत से ये अधिकार भी छिन जाता है, तो ये कहना गलत नहीं होगा कि औरतों को जानवरों से बद्तर ज़िन्दगी मिली है.

एक रेपिस्ट, रेपिस्ट ही होता है. शादी के रूप में उसे सुरक्षाकवच दे दिया जाना, इस अपराध के प्रति संवेदनहीनता का प्रतीक है. अगर भारतीय क़ानून के अनुसार, क्रूरता को तलाक़ का आधार बनाया जा सकता है, तो क्या रेप क्रूरता नहीं है? अगर है, तो ये तलाक का आधार क्यों नहीं बन सकता? ये कुछ सवाल हैं, जिनके बारे में हर एक नागरिक को सोचने की ज़रूरत है, ताकि सिस्टम को भी इनके बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़े और वो क़ानून बनाया जा सके, जिसे बहुत पहले ही बना दिया जाना चाहिए था. अगर शादी के बाद बेटियों का रेप क़ानून की नज़र में गलत नहीं है, तो ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ जैसे आन्दोलन अर्थहीन हो जाते हैं.