भारत के इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने कई चीज़ों को बदला. दुर्भाग्य से, निर्भया रेप केस भी उन्हीं में से एक था. 16 दिसंबर, 2012 को हुए इस रेप ने दिल्ली समेत भारत में महिलाओं की सुरक्षा का सच सामने ला कर, इस देश को दुनिया के सामने नंगा कर दिया. ख़ुद को एक विकसित देश बनाने का सपने देख रहे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में उसकी आधी आबादी किसी भी शहर, किसी भी कस्बे में सुरक्षित नहीं है. आंख मूंद कर बैठी सरकारों ने इस रेप केस के बाद आंखें झुका ली थी और बलात्कार, महिला सुरक्षा से जुड़े कई नियमों को बनाने की शुरुआत हुई.

जहां एक तरफ़ पूरा देश इस घटना में निर्भया के परिवार के साथ खड़ा दिखा, वहीं कईयों ने अपने दिमाग़ का परिचय देते हुए ऐसे बयान दिए, जो हद से ज़्यादा ग़ैर-ज़िम्मेदाराना थे.

इस घटना के 6 साल बाद फिर से एक बेतुका बयान आया. ये बयान एक पूर्व DGP ने निर्भया की मां के लिए दिया था. DGP एक ऐसे समारोह में मौजूद थे, जहां निर्भया की मां को सम्मानित किया जा रहा था. 

इनके हिसाब से, निर्भया की माता की Physique देख कर वो समझ सकते हैं कि वो कितनी ख़ूबसूरत रही होगी. इसके साथ ही उनके पास लड़कियों के लिए हिदायत थी कि जब उनके साथ कोई ज़बरदस्ती या रेप करने की कोशिश करे, तो उन्हें विरोध करने के बजाये, ख़ुद को अपराधी के हवाले कर देना चाहिए. उनके हिसाब से मौत से भली ज़िन्दगी है, फिर वो बलात्कार के बाद की ही क्यों न हो.

अफ़सोस, पूर्व DGP से जब इस मुद्दे पर सवाल किया गया, तो उन्हें इसमें ज़रा भी ग़लती नहीं दिखी.

b’Source: HT’

जितने सवाल आपके-हमारे मन में थे, उतने ही सवाल थे, निर्भया की मां के मन में, जिन्होंने एक ख़त में पूर्व DGP से कई सवाल किये हैं:

आपने जब मेरे शारीरिक ढाँचे पर टिप्पणी करी, तो आपने ये तो बिलकुल भी नहीं सोचा की ये बात करना उचित है या नहीं। मेरी बेटी ज्योति की ख़ूबसूरती से इसका जुड़ाव बनाना, कितना उचित है या नहीं, ये भी आपने बिलकुल नहीं सोचा।लेकिन इन घिनौनी टिप्पन्नियों के बाद, जो आपने लड़कियों को सलाह दी, उसने तो सारी हदें पार कर दी। आपने कहा की अगर कोई आपको अपने बल में कर लेता है, तो उस क्षण में लड़की को आत्मसमर्पण कर देना चाहिए, क्योंकि इससे कम से कम उसकी जान तो बच जाएगी।

मेरी बेटी के विरोध का आपने निरादर तो किया ही, लेकिन साथ ही सामाजिक सोच के घटिया, पित्रसतात्मक रवैय्ये को भी आपने बखूबी दर्शाया। मेरी बेटी के बलात्कारियों ने भी बिलकुल यही कहा और सोचा था, कैसे उसका विरोध वे बर्दाश्त नहीं कर पाए थे।

तो आप जैसे समाज के कर्ताधर्ताओं की सोच और अपराधियों की सोच में, मुझे तो कोई भी अंतर नहीं नज़र आता। आप सभी लड़कियों को यही बतला रहे हैं की आप कमज़ोर ही रहिए, और अपने समझौतों से भरी जिंदगियों को जीते रहें। जब कोई अपनी बलवानी आप पर ज़बरदस्ती आज़माएँ, तो आप उससे अपनी शांति बनाये रखें।

अंत में मैं यह भी पूछना चाहूंगी की क्या यही सलाह हमें अपने भारतीय सेनानियों को भी देनी चाहिए? क्या उनसे कह देना चाहिए, जो हमारी सीमाओं की रक्षा दिन-रात करतें हैं, की जब अगली बार आप पर हमला हो, तो आप अपने हथियार फ़ेंक दें? आत्मसमर्पण कर दें?

कम से कम इससे हमारे जवानों की जाने तो बच जाएंगी।

Source: Khabar Lahariya