15 अगस्त, 2019 भारत को आज़ाद हुए 72 साल हो जाएंगे. इस आज़ादी के लिए न जाने कितने लोगों ने अपना जीवन भारत माता को समर्पित कर दिया. जिस उम्र में बच्चे खिलौने से खेलते हैं, उस उम्र में आज़ादी के लिए लड़ने वालों ने अंग्रेज़ों की प्रताड़ना झेली. कमला नेहरू, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरू और सुखदेव जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने हंसते-हंसते अपनी जान आज़ादी के नाम लिख दी. इनमें एक और स्वतंत्रता सेनानी थीं, पार्वती गिरी.

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पार्वती गिरी का जन्म 19 जनवरी 1926 को पश्चिमी ओडिशा में हुआ था. इनके चाचा और कांग्रेस नेता रामचंद्र गिरी एक जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी थे. जब वो बड़ी हो रही थीं उस समय देश में आज़ादी को लेकर कई बैठकें और बहस चलती रहती थी. अकसर ही वो इनका हिस्सा बनती थीं. इसके चलते उनके मन में देश के लिए कुछ करने की भावना ने जन्म ले लिया. 

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इसके बाद महज़ 11 साल की उम्र में उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया और गांधी जी के अगुवाई वाले भारत छोड़ो आंदोलन का एक अभिन्न सदस्य बनकर उभरीं. महज़ 16 साल की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश सल्तनत को पूरी तरह से हिला दिया था. उनकी ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियों और बरगढ़ की अदालत में सरकार विरोधी नारे लगाने की वजह से दो साल तक कारावास में रखा गया, लेकिन नाबालिग होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया. गिरी ने वर्ष 1942 के बाद से बड़े पैमाने पर पूरे देश भर में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारत छोड़ो आंदोलन के लिए अभियान चलाया.

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सैंकड़ों देशभक्तों की क़ुर्बानी के बाद देश को आज़ादी मिलने के बाद गिरी ने सामाजिक रूप से राष्ट्र की सेवा करने का काम जारी रखा. उन्होंने अपना बाकी जीवन अपने गांव के अनाथ बच्चों को अच्छा जीवन देने के लिए समर्पित कर दिया. गिरी ने नृसिंहनाथ में Kasturba Gandhi Matruniketan नाम का अनाथालय खोला जहां अनाथ बच्चों और महिलाओं को आश्रय दिया गया और उनके भविष्य को संवारने का काम किया गया. इसके अलावा उन्होंने बीरासिंह गर में डॉ. संतरा बाल निकेतन नाम का एक और आश्रम खोला.

इसके अलावा, साथी स्वतंत्रता सेनानी रामादेवी चौधरी के साथ, पार्वती 1951 में कोरापुट में अकाल से पीड़ित लोगों को राहत देने के लिए एक गांव से दूसरे गांव भी गईं. साथ ही उन्होंने ओडिशा के जेलों की स्थिति सुधारने के लिए भी बहुत काम किया.

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पार्वती गिरी के स्नेह और सहयोग की वजह से उन्हें पश्चिमी ओडिशा की ‘मदर टेरेसा’ कहा जाने लगा.  

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जब तक उनकी सांसें चलती रहीं उन्होंने सिर्फ़ देश और देश के लोगों के लिए काम किया. इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने 17 अगस्त 1995 को आखिरी सांस ली. 


 ऐसी वीर स्वतंत्रता सेनानी को हम सभी देशवासियों की तरफ़से शत्-शत् नमन!