लगभग 200 साल तक हिंदुस्तान पर अंग्रेज़ों का राज रहा. इस दौरान देश की जनता ने बहुत कुछ देखा और झेला. देश के कुछ महान और होनहार लोगों ने अंग्रज़ों को सबक भी सिखाया. जिनकी कहानियां आज भी ऐतिहासिक पन्नों में दर्ज हैं. ऐसी ही एक छोटी सी मगर प्रेरणादायक कहानी रानी रासमणि की भी है. रानी रासमणि वो मामूली महिला थीं, जिनके तलवार से तेज़ दिमाग़ ने अंग्रेज़ों को उनके आगे झुका दिया.
कौन थीं रानी रासमणि?
इसके बाद 11 साल की उम्र में उनकी शादी जमींदार बाबू राजचंद्र दास से कर दी गई. रानी जंमीदार की तीसरी पत्नि थीं और वो उम्र में पति से काफ़ी छोटी थीं. यही वजह थी कि वो छोटी सी उम्र में विधवा हो गई थीं. रानी छोटे समुदाय से ज़रूर थीं, लेकिन उनका दिमाग़ काफ़ी तेज़ था. इसलिये राजचंद्र दास उन्हें अपने बिज़नेस में शामिल कर लिया था.
कैसे दिया अंग्रेज़ों को उनकी भाषा में जवाब?
ब्रिटिश सरकार के अत्याचार का शिकार मछुआरे अपनी तकलीफ़ लेकर रासमणि के पास पहुंचे. उस समय रानी को बांग्ला की राशमोनी के नाम से भी जाना जाता था.
ब्रिटिश सरकार ने रानी से डील तो कर ली थी, पर वो ये भूल गये कि स्टीमरों के आने-जाने में अभी भी दिक्कत होगी. बाद में हुआ भी वैसा ही. उन्होंने रानी से जवाब मांगा, तो रानी ने भी अपने कागज़ दिखा दिये. जिसके बाद अंग्रेज़ उनका कुछ न बिगाड़ सके और उन्हें समझ आ गया कि ये सब रानी ने ग़रीब मछुआरों के लिये किया था.
इस क़िस्से के बाद हर ओर उस साधारण महिला की चर्चा थी. 1861 के आस-पास रानी का निधन हो गया था, लेकिन अपनी मौत से पहले उन्होंने दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण भी कराया था. तेज़ दिमाग़ और ग़रीब की मदद करने की वजह से आज भी बंगाल में रानी रासमणि को याद किया जाता है.