Success Story of Sangeeta Pandey in Hindi: किसी ने बहुत सही बात कही है कि, “अगर आपका कामयाब होने का संकल्प मज़बूत है, तो आपको असफलता कभी डरा नहीं सकती है.” दोस्तों, ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव की स्थितियां बनी रहती हैं, लेकिन आपको घबराना नहीं है. अगर आप अपनी असफलताओं से घबरा गए, तो कामयाब नहीं हो पाओगे.
इस आर्टिकल में हम जिनकी कहानी आपके साथ साझा करने जा रहे हैं, उनकी संघर्ष भरी लाइफ़ से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
आइये, जानते हैं गहने गिरवी रखकर डिब्बे बनाने का काम शुरू करने से लेकर करोड़ों की कंपनी बनाने वाली संगीता पांडेय की सफलता की कहानी.
19 साल की उम्र में हो गई थी शादी
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Sangeeta Pandey Owner of Siddhi Vinayak Packagers Gorakhpur: हम जिनकी बात कर रह हैं उनका नाम है संगीता पांडेय (Sangeeta Pandey Who Started Packaging Business), जो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली हैं. उनके पिता सूबेदार थे और उनका बचपन अच्छा बीता. स्कूल की पढ़ाई पूरी कर उन्होंने Gorakhpur University में एडमिशन ले लिया. लेकिन, प्रथम वर्ष में ही उनकी शादी करा दी गईं. उस दौरान वो केवल 19 वर्ष की ही थीं. उनकी शादी बिहार के जगदीशपुर में संजय पांडेय से करा दी गई.
शादी के बाद संगीता की ज़िंदगी एकदम बदल-सी गई. जहां उनकी शादी हुई वहां न बिजली थी और न ही उस क्षेत्र में पक्की सड़कें. जैसे-तैसे उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया, लेकिन जब वो मां बनी, तो आगे पढ़ न सकीं. परिवार की ज़िम्मेदारियों के आगे उनका आगे पढ़ने का सपना पूरा न हो पाया.
काम करने का फैसला
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Sangeeta Pandey Who Started Packaging Business: संगीता के पति पुलिस कांस्टेबल हैं और जब उनकी पोस्टिंग गोरखपुर में थी, वो शादी के पांच साल बाद उनके पास चली आईं. एक बेटे और दो बेटियां के साथ जब उनका परिवार बड़ा हुआ और ख़र्च बढ़े, तो उन्होंने काम करने का सोचा.
संगीता ने चाइल्ड लाइन में इंटरव्यू दिया और उन्हें चुन भी लिया गया. लेकिन, वो जब नौकरी के पहले दिन अपनी 9 महीने की बच्ची को लेकर दफ़्तर पहुंची, तो उन्हें कहा गया कि आप बेटी को लेकर काम पर नहीं आ सकती हैं. वहीं, जब वो दूसरे दिन बेटी को छोड़कर काम पर आईं, तो उन्हें महसूस हुआ कि जब मैं अपनी ही बेटी का ख़्याल नहीं रख पा रही हूं, तो दूसरे बच्चों का ध्यान कैसे रख पाऊंगी. फिर क्या था उन्होंने वो नौकरी छोड़ दी.
डिब्बे बनाने का काम किया शुरू
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घर का ख़र्च चलाने के लिए काम करना ज़रूरी था. एक दिन संगीता ने एक मिठाई की दुकान में डिब्बे देखें, तो उन्हें आइडिया आया कि क्यों न पैकेज़िंग का काम शुरू किया जाए. लेकिन, काम कैसे सीखा जाए, ये बड़ी मुश्किल थी. उन्हें एक महिला के बारे में पता चला, जो ये काम करती थीं. लेकिन, जैसे ही संगीता उनके पास गईं, उन्होंने काम बंद कर दिया कि कहीं संगीता काम न सीख जाए.
अब संगीता ने मन बना लिया कि ख़ुद से ही काम सीखा जाए, लेकिन समस्या यहां भी कम न थी. रॉ मटेरियल ढूंढने के लिए उन्हें 50-50 किमी दूर साइकिल से जाना पड़ा. मेहनत रंग लाई और उन्होंने 1500 रुपए ख़र्च करके रॉ मटेरियल ख़रीदा. प्रयास किया और उन्होंने कई डिब्बे बना लिये. लेकिन, इन्हें बेचे कहां, ये उन्हें पता नहीं था.
उन्हें मार्केट का कोई अंदाज़ा नहीं था. वो साइकिल से ही बेचने निकला करती थीं. उन्हें ये करते देख, कई लोग कहते कि जब पुरुष ही इस काम से हार मान गए, तो आप कैसे करोगी. संगीता को उन बातों से कोई फ़र्क न पड़ा और वो अपने काम पर लगी रहीं.
गिरवी रखने पड़े गहने
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संगीता रोज़ साइकिल से दुकानों में जाती थीं, ये सोचकर की कोई उनके डिब्बे ले लेगा. काफ़ी मेहनत के बाद एक दुकानदार ने उनके डिब्बे ले लिए और उन्हें ऑर्डर मिलना शुरू हो गया. लेकिन, यहां समस्या ये थी कि ऑर्डर पूरा करने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे.
इसके लिए उन्होंने अपने गहने गिरवी रखकर बैंक से 2 लाख का लोन लिया और पैकेज़िंग बिज़नेस शुरू किया. इस काम को कर रहे बाकी लोगों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वो रुकी नहीं. संगीता इस बीच लखनऊ गईं और वहां से पैकेज़िंग के नए डिज़ाइन्स लेकर आईं. इस तरह उनका काम सही चल पड़ा.
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काम को बढ़ाते हुए उन्होंने 35 लाख का कर्ज़ लिया और सिद्धि विनायक पैकेजर (Siddhi Vinayak Packagers Gorakhpur) नाम से एक कारखाना खोला, जहां कई तरह के पैकेज़िंग बॉक्स बनाए जाते हैं.
अन्य महिलाओं को भी रोज़गार दिया
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कहां साइकिल से चलने वाली संगीता और कार से चलती हैं. आज उन्होंने अपनी कंपनी ढ़ाई करोड़ की बना ली है. यही नहीं उन्होंने अन्य महिलाओं को भी रोजगार दिया. जानकारी के अनुसार, उनके साथ क़रीब 100 महिलाएं काम करती हैं. संगीता पांडेय की कहानी आपको कैसी लगी, हमें कमेंट में बताना न भूलें.
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