वर्तमान में देश की महिलाएं आसमान की ऊंचाइयों को छू रही हैं. आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जिसमें महिलाओं ने सफलता हासिल न की हो. आज की महिला रसोई में रोटी बनाने के साथ-साथ खुले आकाश में आज़ाद पंछी की तरह उड़ भी सकती है और हवाई जहाज भी उड़ा सकती हैं. लेकिन देश की एक महिला ने आज नहीं, बल्कि 1936 से हवाई जहाज उड़ाना शुरू किया था. जी हां, उस महिला का नाम है ‘सरला ठकराल’.
एक समय था जब हवाई जहाज उड़ाना बहुत बड़ी बात थी और ये माना जाता था कि ये काम सिर्फ़ और सिर्फ़ पुरुष ही कर सकते हैं. इस धारणा को गलत साबित कर दिखाया सरला ठकराल ने. वो भारत की पहली महिला विमान चालक थीं.
आइए अब जानते हैं सरला ठकराल और उनकी प्रेरणादायक कहानी के बारे में:
सरला ठकराल का जन्म 1914 में नई दिल्ली में हुआ था. 1936 में सरला ठकराल परंपराओं को तोड़ते हुए एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं. उन्होंने उस दौर के 2 सीटों वाले सबसे एडवांस हवाई जहाज ‘जिप्सी मॉथ’ को अकेले ही उड़ाने का कारनामा कर दिखाया था.
खास बात यह थी कि उन्होंने वर्ष 1936 में पहली बार साड़ी पहन कर हवाई जहाज़ उड़ाने का गौरव हासिल किया था. ऐसा करने वाली भी वो भारत की पहली नारी थी. साथ ही साथ उस टाइम वो एक चार साल की बेटी की मां भी थीं.
सोलह साल की उम्र में सरला ने पी. डी. शर्मा, जो एक व्यावसायिक विमान चालक थे, से शादी की थी. उनके पति ने हमेशा ही उनको प्रोत्साहित किया. एक इंटरव्यू के दौरान सरला ने बताया था कि, “मेरे पति को पहले भारतीय एयर मेल पायलट का लाइसेंस मिला था. उन्होंने कराची और लाहौर के बीच उड़ान भरी थी. जब मैंने अपने आवश्यक उड़ान के घंटे पूरे कर लिए, तब मेरे प्रशिक्षक चाहते थे कि मैं सोलो उड़ान भरूं, लेकिन मेरे पति वहां नहीं थे. मुझे मेरे परिवार के सपोर्ट की ज़रूरत थी. मैं उनसे अनुमति लेना चाहती थी. उन लड़कों ने भी मुझसे कभी कोई सवाल नहीं किया, जिन्हें मेरे साथ प्रशिक्षित किया जा रहा था. सिर्फ फ्लाइंग क्लब का एक व्यक्ति जो क्लर्क था, को मेरे उड़ने से आपत्ति थी. अन्यथा मुझे कभी किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा.”
इतना ही नहीं सरला जी को 1000 घंटे की उड़ान पूरी करने के बाद ‘A’ लाइसेंस प्राप्त करने वाली पहली भारतीय के खिताब से भी नवाज़ा गया था. वो ज्यादातर कराची और लाहौर के बीच उड़ान भरती थीं.
एक बार अपने परिवार से मिले प्रोत्साहन को साझा करते हुए उन्होंने कहा था-
हालांकि यह परिवार के बारे में पर्याप्त नहीं है, लेकिन मेरे ससुर जी मुझसे और भी अधिक उत्साहित थे और उन्होंने मुझे फ्लाइंग क्लब में दाखिला दिलाया. मैं जानती थी मैं एक सख़्त पुरुषवादी परंपरा तोड़ रही थी, लेकिन उन्होने मुझे कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं कुछ अलग कर रही हूं.
जब उनकी ज़िन्दगी में सब कुछ ठीक चल रहा था और साल 1939 में वो कमर्शियल पायलट लाइसेंस लेने के लिए मेहनत कर रही थीं. तो दूसरा विश्व युद्ध छिड़ने के कारण उनको ट्रेनिंग बीच में ही रोकनी पड़ी. उसी दौरान एक विमान दुर्घटना में उनके पति का देहांत हो गया, जिसके बाद उन्होंने कमर्शियल पायलट बनने के अपने सपने को छोड़ दिया और जीवन की दिशा बदल ली. पति के देहांत के बाद वो भारत लौट गईं. उस समय वो केवल 24 साल की थीं. भारत आने के बाद उन्होंने ‘मेयो स्कूल ऑफ़ आर्ट’ में एडमिशन ले लिया और पेंटिंग सीखी, साथ ही फ़ाइन आर्ट में डिप्लोमा भी प्राप्त किया.
1947 में देश के बंटवारे के बाद वो अपनी 2 बेटियों के साथ दिल्ली में आकर बस गईं. 1948 में पी.पी. ठकराल से शादी करने के बाद उन्होंने एक बार फिर नई शुरुआत की. वे कपड़े और गहने डिज़ाइन करने लगीं और करीब 20 साल तक अपनी बनायी चीजें विभिन्न कुटीर उद्योगों को देती रहीं. उन्होंने एक सफल बिज़नेस वूमेन और पेंटर के रूप में अपनी पहचान बनाई.
अपने जीवन में सफ़लताओं के कई आयाम छूने वाली सरला ठकराल का 15 मार्च 2008 को दुनिया को अलविदा कहा था. लेकिन उनकी ये प्रेरणादायक कहानी साहस और आत्मविश्वास की एक अनूठी कहानी है. उनकी ज़िन्दगी का संघर्ष और उसके बाद मिली सफलता आगे आने वाली महिलाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बनी रहेगी.