नक्सल प्रभाव वाले क्षेत्रों में आये दिन किसी न किसी के हताहत होने की ख़बर आती है. कभी CRPF के जवानों पर हमला होता है, तो कभी गांववालों पर. इसका सबसे बड़ा खामियाज़ा भुगतना पड़ता है इन क्षेत्रों के रेल, रोड जैसे सरकारी सेटअप को. कई बार नक्सलियों ने मिलिट्री एक्शन का बदला लेने के लिए रेललाइन को नुकसान पहुंचाया है.

छत्तीसगढ़ का बस्तर नक्सली एक्टिविटीज़ का हॉटबेड माना जाता है. यहां मौत कभी पेड़ों पर डालियों के साथ झूल रही होती है, तो कभी धूल भरे आसमान से नीचे देख रही होती है. इसी बस्तर के रेलवे ट्रैक की हर सुबह 8 से 5 तक निगरानी करती है सावित्री नाग यादव. भारतीय रेल में Khalasi के पद पर तैनात, सावित्री का काम ख़तरों से भरा है.

हर सुबह अपनी जान जोखिम में डाल कर सावित्री इस 7 किलोमीटर लंबे ट्रैक की रखवाली करती है. रेल को जोड़ने वाले मेटल पीस जगह पर हैं, फ़िशप्लेट्स सही हैं कि नहीं, नट-बोल्ट से लेकर ट्रैक की हर चीज़ का ध्यान उसे रखना होता है.

सावित्री को ये नौकरी अपने पिता की मृत्यु के बाद मिली थी. हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में वो कहती है कि, ‘पहले-पहले अजीब लगता था क्योंकि ड्यूटी के वक़्त सभी आदमी होते थे लेकिन अब ठीक लगता है.”

गीदम से कुलनूर से इस ट्रैक को देखने वाली सावित्री अकेली महिला है और कई बार निगरानी के काम में वो अकेली होती है. सारा टाइम खड़े रहने से उसे कई बार परेशानियां आती हैं, लेकिन उसके लिए काम सबसे ऊपर. वो इसे अपना फ़र्ज़ मन कर करती है.

इस ट्रैक पर हर दिन कम से कम 2 दर्जन पैसेंजर और माल गाड़ियां गुज़रती हैं और उनके स्मूथ रन की ज़िम्मेदारी सावित्री के हाथ में होती है, साथ में जंगली जानवरों, माओवादियों का ख़तरा भी रहता है. लेकिन वो ये सब पूरे जज़्बे से कर रही है.