महिलाओं को कई शताब्दियों से अपने अधिकारियों के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है. महिलायें आज भी संघर्ष कर रही हैं और आगे भी करती रहेंगी. मौजूदा हालातों के देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि इस समाज, इस दुनिया को महिलाओं के लिये सुरक्षित बनाने में कई दशक लगेंगे. बहुत दुख होता है जब लोग फ़ेमिनिस्ट्स के बारे में ग़लत जानकारी जुटाकर, दिमाग़ में बैठा लेते हैं. लोग ये भूल जाते हैं कि महिलाओं को मताधिकार से लेकर घर से बाहर निकलकर शिक्षा प्राप्त करने जैसी बातों के लिये भी कई लड़ाइयां लड़नी पड़ी हैं. कई सशक्त महिलाओं के संघर्षों के फलस्वरूप आज हमारे पास कई अधिकार हैं.


ऐसी ही एक सशक्त महिला हैं, डॉ. हंसा जीवराज मेहता.  

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कौन हैं हंसा जीवराज मेहता? 

3 जुलाई, 1897 को गुजरात के सूरत में दर्शनशास्त्र (Philosophy) के प्राध्यापक (Professor) मनुभाई मेहता के घर हंसा का जन्म हुआ. हंसा के नाना, नंदशंकर मेहता ने गुजराती का पहला उपन्यास ‘करन घेलो’ लिखा था.

हंसा को बचपन से ही शिक्षित होने के लिये प्रेरित किया गया. बड़ौडा कॉलेज से ग्रैजुएशन करने के बाद हंसा पत्रकारिता की पढ़ाई करने के लिये इंग्लैंड गईं और वहां के London School of Economics में पढ़ाई की. Live History India के लेख के अनुसार, इंग्लैंड में हंसा की मुलाक़ात सरोजिनी नायडू और राजकुमारी अमृत कौर से हुई और उनमें देशप्रेम जाग उठा. नायडू ने हंसा को 1922 में महात्मा गांधी से मिलवाया. हंसा और कुछ महिलायें, बॉम्बे से अहमदबाद, बापू से मिलने गईं और बापू से मुलाक़ात ने हंसा पर गहरा प्रभाव छोड़ा. 
लड़कियों को शिक्षित करने के लिये हंसा की मुहीम को देखते हुए हंसा को बॉम्बे म्युनिसिपाल्टी स्कूल्स कमिटी के बोर्ड का सदस्य बनाया गया.

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अपनी इच्छा से किया विवाह 

1928 में हंसा ने डॉक्टर, जीवराज मेहता से विवाह किया, कुछ समय के लिये जीवराज बापू के डॉक्टर थे. हंसा ने उस दौर में अपने जाति से बाहर, अपनी इच्छा से विवाह किया. हंसा के परिवार और समुदाय में कोहराम मच गया. एक लेख की मानें तो बड़ौदा के महाराजा, सयाजीराव गायकवाड़ 3 ने हंसा के पिता को इस विवाह को अपनाने के लिये मनाया. 

अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ सत्याग्रह में लिया हिस्सा 

बापू के कहने पर 1 मई, 1930 को हंसा ने देश सेविका संघ की कमान संभाली. अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिये, महिलाओं के इस संघठन ने विदेशी कपड़े, शराब की दुकानें के ख़िलाफ़ विरोध किया. हंसा ने मुंबई में कई विरोध प्रदर्शन किये. उन्हें बॉम्बे कांग्रेस कमिटी (Bombay Congress Committee) का प्रेसिडेंट बनाया गया, कमिटी के सदस्य उन्हें ‘Dictator of Bombay’ कहते थे. बॉम्बे और आज़ादी के आंदोलन का जाना-माना चेहरा बनकर उभरी हंसा की भी गिरफ़्तारी हुई और उन्हें 3 महीने की जेल हुई. गांधी-इरवीन पैक्ट (Gandhi Irwin Pact) की बदौलत हंसा को 5 मार्च, 1931 को रिहा किया गया. 

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चुनाव जीतकर मुख्यधारा की राजनीति में आईं 

बापू के आशीर्वाद से हंसा ने बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल (Bombay Legislative Council) तक पहुंची. हंसा ने रिज़र्व्ड सीट से चुनाव लड़ना स्वीकार नहीं किया, जनरल रास्ता लिया और चुनाव जीता. मुख्यधारा की राजनीति में आने के बाद हंसा ऑल इंडिया वीमेन्स कॉन्फ़्रेस (All India Women’s Conference) से जुड़ी. 1946 में AIWC की प्रेसिडेंट बनीं. 

UNHRC में करवाया बड़ा बदलाव 

1947 में हंसा को United Nations Commission on Human Rights में बतौर भारतीय प्रतिनिधि भेजा गया. हंसा को United Nations के Commission on Human Rights में Eleanor Roosevelt के ठीक नीचे के पद पर काम करने का मौक़ा मिला.

10 दिसंबर, 1948 को हंसा ने UNHRC के Article1 में ‘All men are born free and equal’ को ‘All human beings are born free and equal’ में बदला.   

महिलाओं के अधिकारों के लिये उठाई आवाज़ 

हंसा ने AIWC के 18वें सेशन में Indian Woman’s Charter of Rights and Duties ड्राफ़्ट करवाया. हंसा ने समानता, महिलाओं के समान अधिकार और शिक्षा के अधिकार की बात की. इस चार्टर में Equal Pay, Equal Distribution of Property और Equal Application of Marriage Laws की भी बात की गई थी.

हंसा ने बाल विवाह और देवदासी प्रथा पर रोक लगाने के लिये बल दिया. 
Live History India के लेख के अनुसार, यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमिशन (University Education Commission) 1948-1949 का मानना था कि लड़के और लड़कियों के लिये शिक्षा ज़रूरी है लेकिन दोनों की शिक्षा ‘एक समान’ नहीं होनी चाहिये. इस कमिशन का मानना था कि महिलाओं के अधिकारों की बात ठीक है लेकिन आमतौर पर पुरुष कमाता है और महिलाओं का काम घर की देखभाल करना होता है. एक घर को सुंदर बनाना एक महिला के लिये बहुत बड़ी कला है और शिक्षा के अलावा ये संभव नहीं है. हंसा ने 1962 के नेशनल काउंसिल फ़ॉर वीमेन्स एजुकेशन में इस मत को चुनौती दी.     

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Constituent Assembly की सदस्य 

Constituent Assembly के 389 सदस्यों में से सभी पुरुष नहीं थे, 15 महिलाएं भी थीं जिन्होंने संविधान बनाने में सहायता की. इन 15 महिलाओं में से एक थीं, हंसा मेहता. 

Deccan Herald के एक लेख के अनुसार, हंसा मेहता ने 14 अगस्त, 1948 को Constituent Assembly को देश की महिलाओं की तरफ़ से तिरंगा झंडा दिया था. हंसा के शब्दों में,
‘अगस्त हाउस पर फहराया जाने वाला पहला झंडा देश की महिलओं के तरफ़ से एक तोहफ़ा ही होना चाहिये.’ 

आज़ादी के बाद जब संसद में हिन्दू कोड बिल पर बहस हो रही थी तब हंसा ने कहा कि बेटी और बेटे का पिता की प्रॉपर्टी पर समान अधिकार होना चाहिये. हंसा ने महिलाओं के तलाक़ लेने के अधिकार पर भी बल दिया.  

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भारत की पहली महिला कुलपति 

हंसा मेहता को एसएनडीटी यूनिवर्सिटी, बॉम्बे (SNDT University, Bombay) का वायस चांसलर बनाया गया. 1949 में नव निर्मित बड़ौडा यूनिवर्सिटी का वायस चांसलर बनाया गया.

हंसा ने गुजराती में राम कथा (1993), अंग्रेज़ी में The Woman Under The Hindu Law of Marriage & Succession (1944), The Indian Woman (1981) समेत कई किताबें भी लिखीं. हंसा ने अंग्रेज़ी साहित्य के कई किताबों का गुजराती में अनुवाद भी किया. 
हंसा को 1959 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. 4 अप्रैल, 1995 तक हंसा ने देश की सेवा की.