13 दिसंबर 2001 को भारत के संसद भवन के गेट नंबर 1 से ‘Parliament’ और ‘Home Ministry’ स्टिकर वाली दो गाड़ियां घुसीं.


इन गाड़ियों में इन स्थानों से संबंध रखने वाला कोई वीआईपी, कोई कर्मचारी नहीं बल्कि आतंकवादी थे, जिनके पास ख़तरनाक असॉल्ट राइफ़ल्स, ग्रेनेड्स, ग्रेनेड लॉन्चर, हैंडमेड बम और स्पेयर एम्युनिशन और अमोनियम नाइट्रेट से बना बहुत बड़ा बम था.  

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अगर बिना चेकिंग के ये गाड़ी अंदर चली जाती तो भारतीय संसद का एक बहुत बड़ा हिस्सा न बचता और मृतकों की संख्या और ज़्यादा होती. ये कहना ग़लत नहीं होगा कि दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र बिना संसद के होता!


रिपोर्ट्स के मुताबिक़, आतंकियों का रास्ता दो कारणों से रुका.  

पहला, उप राष्ट्रपति की गाड़ी जिसमें उप राष्ट्रपति नहीं थे
आतंकवादियों ने एक ग़लती कर दी, उप राष्ट्रपति की गाड़ी को टक्कर मार दी. इसके बाद उनके पास पैदल चलकर हमला करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा.

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दूसरा, कमलेश कुमारी 

कमलेश कुमारी ने सबकी सोच से परे कुछ ऐसा कर दिखाया जिससे संसद भवन पर हमला करने वाले सारे आतंकवादी मार गए. सीआरपीएफ़ कॉनस्टेबल कमलेश कुमारी गेट नंबर 1 पर तैनात थीं, जब आतकंवादी पैदल ही इमारत की तरफ़ बढ़ने लगे. कमलेश का काम था विज़िटर्स की चेकिंग में वॉर्ड स्टाफ़ की मदद करना. 

ये वही गेट था जिससे सारे वीवीआईपी आवाजाही करते थे. संसद सत्र को बरख़ास्त किए लगभग 40 मिनट बीत चुके थे और बहुत से बड़े नेता अंदर थे.


आतंकवादियों की गाड़ी की गतिविधियों को देखते हुए कमलेश कुमारी ने उसका पीछा किया और हथियारों साथ आतंकवादियों को देख लिया. उस दौर में महिला पुलिसकर्मियों को संसद के अंदर हथियार नहीं दिए जाते थे और कमलेश कुमारी के पास सिर्फ़ एक वॉकी-टॉकी थी.  

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कमलेश कुमारी ने चीखकर कॉन्सटेबल सुखविंदर सिंह को आगाह किया जो गेट नंबर 11 पर ही तैनात थे. कमलेश ने अपनी ज़िन्दगी की परवाह नहीं की और हमले में शहीद होने वाली पहली पुलिसकर्मी बनीं. आतंकवादियों ने उन्हें 11 गोलियां मारी.


कमलेश की शहादत बेकार नहीं गई. सुखविंदर सिंह ने आतंकवादियों का पीछा किया और सूसाइड वेस्ट पहने एक आतंकी को मार गिराया. दूसरे सीरआपीएफ़ अफ़सर भी चौकन्ने हो गए और आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया.  

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कमलेश कुमारी ने अगर सूझबूझ नहीं दिखाई होती तो संसद भवन का हमला और बड़ा हो सकता था.


कमलेश की बहादुरी के लिए उन्हें 2002 में राष्ट्रपति आर.के.नारायनन ने मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया.