भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश के कई घरों में पक्के शौचालय बनवाए गए हैं. देश के कई परिवारों की बहु-बेटियां अब घर से बाहर, खेतों-झाड़ियों में अपनी सुरक्षा के साथ समझौता करके शौच के लिए नहीं जाती.


रांची के पास के गुटुआटोली की सुक्कू ओरैन को भी अब राहत है. उन्हें अंधेरे में अपनी बेटियों के साथ झाड़ियों में नहीं जाना पड़ता. गांव के नए सदस्य, बुधलाल मुंडा के लिए तो खेतों में जाना बीते ज़माने की बात हो चुकी है. 

सुक्कू और बुधलाल की तरह गुटुआटोली के 400 अन्य लोगों की ज़िन्दगी बदल दी है ‘मैडम साहिबा’ ने.   

Aaj Tak

‘मैडम साहिबा’ यानी की फूलमणि देवी. 30 वर्षीय फूलमणि देवी 4 ‘रानी’ मिस्त्रियों की टीम लीडर हैं और उन्होंने गुटुआटोली में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 125 शौचालयों का निर्माण करवाया है. 

मुझे जब से याद है, तब से हम खुले में ही जा रहे हैं. पिछले साल मेरा अपना शौचालय बन गया. फूलमणि ने हमें अच्छी ज़िन्दगी देने के लिए बहुत मेहनत की है.

-सुक्कू

झारखंड सरकार के पेयजल और सफ़ाई विभाग ने एक योजना के तहत 2017 से अब तक 55 हज़ार ‘रानी’ मिस्त्रियों को ट्रेनिंग दी है. इन ‘रानी’ मिस्त्रियों ने अब तक 15 लाख से ज़्यादा शौचालय बनाए हैं.  

झारखंड ने 2018 में ख़ुद को खुले में शौचमुक्त राज्य घोषित कर दिया.  

League of India

गुटुआटोली में बदलाव लाना आसान नहीं था. फूलमणि को उसका शराबी पति कई बार पीटता. अपने 2 साल के बेटे को पीठ पर लेकर वो गांव में घर-घर जाकर लोगों को शौचालय बनवाने के लिए मनाती.


फूलमणि को अपने जीवन में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा है.   

16 की उम्र में ही मेरी शादी हो गई थी. उसके बाद मैं सालों तक घर से बाहर नहीं निकली. मेरे पति को मेरा किसी से भी बात करना पसंद नहीं था और वो शराब पीकर मुझे अकसर मारता. उसके Accident के बाद हालात बद से बद्तर हो गए.

-फूलमणि

फूलमणि ने अपने सफ़र के बारे में बताया, 

2017 में सरकार शौचालय बनवाने के लिए महिलाएं ढूंढ रही थी, जिसके बाद मैंने Self-Help Group की शुरुआत की. मुझे अपने गांव के ग्रुप का लीडर बनाया गया और इससे मेरे पति को और गुस्सा आया. 

-फूलमणि

Fact Checker

सर्वे करके जब फूलमणि घर लौटती, तो उसका पति घर के दरवाज़े पर ही उसे पीटने के लिए उसका इंतज़ार करता. 

मैं रो पड़ती मगर मैं जो काम कर रही थी, उससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा. 

-फूलमणि

फूलमणि का पति उसे सिर्फ़ मारता नहीं था, उसे परेशान करने के अलग-अलग तरीके निकालता था. एक बार उसने घर पर शौचालय के निर्माण के लिए रखी सीमेंट की बोरियां बेच डाली.  

एक दिन उसने मेरा फ़ोन तोड़ दिया. तब मैं घर छोड़कर 10 दिनों के लिए अपने पड़ोसी के घर रहने लगी ताकी में अपना काम जारी रख सकूं.

-फूलमणि

जिस पड़ोसी ने फूलमणि को रहने की जगह दी थी, उसने भी फूलमणि की तारीफ़ की: 

फूलमणि रोज़ सुबह 9 बजे अपना काम शुरू करती और शाम को 5 बजे घर लौटती. हमारे दूसरे पड़ोसी उसके पीठ पीछे उसकी बुराई करते पर उस पर इन सबका प्रभाव नहीं पड़ा. 

-फूलमणि

Indian Express

इस सबके अलावा गांववाले भी शुरुआत में शौचालय बनवाने को तैयार नहीं थे. कई लोगों ने फूलमणि और उनकी ‘रानी’ मिस्त्रियों की योग्यता पर सवाल किया. जब गांववालों को ये पता चला कि सरकार प्रत्येक शौचालय के लिए 12 हज़ार दे रही है और प्रत्येक मिस्त्री 2100 रुपए ले रही है, तो सभी राज़ी हो गए. 

फूलमणि को उसके काम के लिए उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू से भी पुरस्कार मिला है.