आज देश की बेटियां हर फ़ील्ड में अपने माता-पिता का नाम रौशन कर रही हैं. इसी कड़ी में आज हम एक ऐसी लड़की की सफ़लता की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने अपनी कड़ी मेहनत के दम पर वो मुकाम हासिल किया, जो उनके ज़िले में कोई दूसरी लड़की हासिल नहीं कर सकी. आज हम आपको पंजाब के मलेरकोटला की रहने वाली गुलफ़ाम सैयद (Gulfam Sayyad) की प्रेरणादायक कहानी बताने जा रहे हैं.

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दरअसल, 28 वर्षीय गुलफ़ाम सैयद ने पंजाब सिविल सर्विस (जुडिशियल) की परीक्षा में पंजाब भर से EWS कैटैगरी में 5वां स्थान हासिल किया है. गुलफ़ाम मलेरकोटला ज़िले की पहली मुस्ल‍िम महिला जज बन गई हैं. वो बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता तालिब हुसैन टेंपो चालक हैं.

गुलफ़ाम सैयद ने अपनी 12वीं तक की शिक्षा मलेरकोटला के इस्लामिया गर्ल सीनियर सेकेंडरी स्कूल से और ग्रेजुएशन की पढ़ाई ‘इस्लामिया गर्ल कॉलेज’ से पूरी की. इसके बाद उन्होंने LLB की डिग्री पटियाला की ‘पंजाबी यूनिवर्सिटी’ से हासिल की. गुलफाम के पिता तालिब हुसैन ने बताया कि वह टेंपो चलाते हैं और उन्होंने अपने बच्ची को पढ़ने में कभी भी रोका. आज मुझे बहुत खुशी हुई है कि जब बेटी एक ऐसे माहौल से निकलकर जज बनी है तो मुझे अपनी बेटी पर नाज है.

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पिता की जेब में नहीं थे होते 150 रुपये

ऑटो चालक की बेटी होने के बावजूद गुलफ़ाम के पिता ने उनकी पढ़ाई के लिए अपनी हैसियत से ज़्यादा सहयोग किया. गुलफ़ाम जब एग्जाम की तैयारी के लिए पटियाला जाती थी तब कई बार उनके पिता की जेब में 150 रुपये भी नहीं होते थे. लेकिन वो कैसे न कैसे करके अपने परिवार का गुज़रा करते थे. उनका पूरा परिवार एक छोटे से घर में एक साथ रहता है.

मीडिया से बातचीत में गुलफ़ाम सैयद ने बताया कि, ‘मलेरकोटला से पटियाला पढ़ने जाने में मेरा 150 रुपये ख़र्च होता था. लेकिन जब पापा मुझे अपनी जेब से 150 रुपया निकालकर देते थे. जब मैं पापा का पर्स देखती तो उसमें सिर्फ़ 150 ही होते थे, ऐसे में पापा बोलते थे कि तू ले जा कोई बात नहीं. कभी-कभी तो उनकी जेब एक भी पैसा नहीं होता था ऐसे में मेरे चाचा मुझे पैसा देते थे’.

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गुलफ़ाम सैयद आगे कहती हैं, ‘मेरे माता-पिता ने मुझे हमेशा पढ़ाई के लिए सहयोग किया है. मैं जब भी पढ़ाई करती थी परिवार का कोई भी सदस्य मुझे डिस्टर्ब नहीं करता था. आख़िरकार सालों की मेहनत के बाद मैंने अपने माता-पिता का सपना पूरा कर लिया है. आज मेरी सफ़लता से मेरा परिवार ही नहीं, बल्कि पूरा ज़िला ख़ुश है‘.

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