Kamathipura Shweta Katti: कमाठीपुरा वो जगह जहां कभी अमावस की रात नहीं होती क्योंकि वहां कभी गंगूबाई रहती थी. ये डायलॉग फ़िल्म गंगूबाई काठियावाड़ी का था. गंगूबाई ने कमाठीपुरा की लड़कियों को उनका हक़, जगह और शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए बहुत संघर्ष किया था. गंगू चांद थी और उस कमाठीपुरा की लड़कियां सूरज, जिन्हें सिर्फ़ ऊपर उठना आता है. कमाठीपुरा की ऐसी ही एक लड़की की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा में जन्म तो लिया लेकिन अपनी काबिलियत के बल पर अमेरिका तक पहुंच गई.
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आइए उस लड़की की पूरी कहानी जानते हैं:
यह है मुंबई की रहने वाली श्वेता कट्टी (Shweta Katti), जो कमाठीपुरा में जन्मीं तो लेकिन कभी उस जगह की नहीं बनी. जहां चारों तरफ़ वेश्यावृत्ति पनपनती है. उस जगह पर रहकर भी उन्होंंने हमेशा पढ़ाई पर ही ध्यान दिया कभी मन को भटकने नहीं दिया. श्वेता के परिवार की बात करें तो उनकी मां, तीन बहनें हैं और एक सौतेला शराबी पिता है, जो घर में मारपीट और झगड़ा करता रहता था. साथ ही, उसके वजह से श्वेता के घर अक्सर सेक्स वर्कर का आना-जाना लगा रहता था. इसी वजह से श्वेता का बचपन सेक्स वर्कर के बीच बीता था.
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सेक्स वर्कर के घर आने-जाने के बावजूद श्वेता की मां हमेशा श्वेता को पढ़ाई के लिए ही प्रेरित करती रहीं. इसके चलते घर की सारी ज़िम्मेदारी भी उन्होंने ही उठा ली और इन ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए 5500 रुपये के मेहनताने पर एक फ़ैक्ट्री में नौकरी करती हैं. श्वेता की घर की कहानी तो संघर्ष से भरी थी ही उसका बचपन भी बहुत दर्दनाक था. भले ही उसकी मां ने उसे वेश्यावृत्ति से बचा लिया लेकिन एक लड़की होने की सज़ा उसे मिली.
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श्वेता बताती हैं कि,
जब वो सिर्फ़ 9 साल की थीं तभी उनका तीन बार यौन शोषण हुआ था. पहली बार, पास के रहने वाले एक शख़्स ने उसके साथ यौन शोषण किया था. इसके बाद फिर दो बार यौन शोषण हुआ था. इतना ही नहीं श्वेता का रंग सांवला होने के चलते उन्हें स्कूल में भी प्रताड़ना झेलनी पड़ी. स्कूल में बच्चे उन्हें काला गोबर कहकर चिढ़ाया करते थे, लेकिन श्वेता ने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखा.
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इसके बाद, 16 साल की उम्र में साल 2012 में श्वेता ने क्रांति नामक एक NGO जॉइन किया. इस एनजीओ से जुड़ने के बाद श्वेता ने ख़ुद को पहचाना और जाना कि उनमें वो काबिलियत है जो किसी भी महिला को प्रोत्साहित कर सकती है. तब शेव्ता ने 12वीं पास करने के बाद एक अच्छे क़लेज की तलाश करनी शुरू कर दी. इसी दौरान उसकी मुलाक़ात अमेरिका के विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र से हुई, जिसको श्वेता के बैकग्राउंड ने काफ़ी प्रभावित किया और उसने श्वेता का नाम न्यूयॉर्क के Bard College में दे दिया वहां जब श्वेता का कहानी सबको पता चली तो उसकी कहानी ने सबके दिल को छू लिया. श्वेता को एडमिशन के साथ-साथ 28 लाख रुपये की स्कॉलरशिप भी दी गई.
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श्वेता के इन्हीं प्रयासों को देखते हुए अमेरिकी मैगज़ीन News Week ने 2013 में उन्हें 25 साल की उम्र की उन महिलाओं की लिस्ट में शामिल किया, जो समाज के लिए प्रेरणा बनीं. आज श्वेता पूरी दुनिया में भारत और अपनी मां का नाम रोशन कर रही हैं.
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श्वेता आज हर उस लड़की के लिए प्रेरणा हैं जो विपरीत परिस्तिथियों के चलते हार मान लेती हैं और अपने सपनों से मुंह मोड़ लेती हैं.