Asha Rajpurohit’s Sudama Old Age Home: एक महिला ही होती है, जो परायों को अपना बना सकती है क्योंकि उसमें क्षमता और स्नेह दोनों होता है जो किसी भी रिश्ते के लिए सर्वोपरी होता है. इस समाज में कितने बुज़ुर्ग हैं, जिन्हें इसी प्रेम की ज़रूरत है, जो उन्हें अपनेपन का एहसास कराये क्योंकि उनके अपनों ने उन्हें दर-दर भटकने के लिए रास्ते पर छोड़ दिया है. इसलिए जब इनकी तरफ़ एक भी हाथ प्यार का बढ़ता है तो ये ख़ुशी से रो पड़ते हैं. ऐसा ही एक हाथ आशा राजपुरोहित (Asha Rajpurohit) ने बढ़ाया, जिससे 22 बेसहारा बुज़ुर्गों को सहारा #DearMentor मिल गया.

Asha Rajpurohit's Sudama Old Age Home
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आइए जानते हैं कि, आशा राजपुरोहित कौन हैं जो बेहसहारा बुज़ुर्गों का सहारा बन रही हैं? क्योंकि इस वुमेन्स डे पर ScoopWhoop Hindi सेलिब्रेट कर रहा है उन महिलाओं को, जो समाज को बदल रही हैं और दूसरों का सहारा बन रही हैं आपकी #DearMentor.

गुजरात के डीसा की रहने वाली आशा राजपुरोहित ‘सुदामा वृद्धाश्रम’ (Asha Rajpurohit’s Sudama Old Age Home) चला रहीं, जिसकी नींव इनके पिता कांतिलाल राजपुरोहित ने 14 साल पहले दिव्यांग और बेसहारा बुज़ुर्गों को एक सहारा देने के लिए इस वृद्धाश्रम की नींव रखी थी. 10 साल पहले कांतिलाल राजपुरोहित का निधन हो गया, लेकिन वो इस वृद्धाश्रम की बागडोर अपनी बेटी आशा राजपुरोहित के हाथों में सौंप कर गए थे.

Asha Rajpurohit's Sudama Old Age Home
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आशा ने इस वृद्धाश्रम को अपना पूरा जीवन समपर्ण कर दिया और अपने परिवार तक को छोड़कर इन बुज़ुर्गों का सहारा बन गईं. आशा की उम्र 30 साल है और उन्होंने सुदामा के लिए अपने बेटे को भी ख़ुद से दूर कर दिया है.

द बेटर इंडिया से बात करते हुए आशा ने बताया,

मैं चार साल से इन बुज़ुर्गों के साथ एक परिवार की तरह रह रही हूं और मुझे यहां इनके साथ रहने में इतना अच्छा लगता है कि मैं सोचती हूं कि मेरी मां ने शायद इसीलिए मुझे जन्म दिया था.

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आशा बेन अपने पिता के वचन का पालन करते हुए पूरे जी जान से इन बुज़ुर्गों की सेवा में लगी हैं. उन्होंने बताया कि,

हमारे सुदामा वृद्धाश्रम में पहले 10 से 14 बुजु़र्ग रहते थे, लेकिन अब यहां क़रीब 22 बुज़ुर्ग रहते हैं.

हालांकि, आशा बेन अपने आश्रम को लोगों द्वारा मिल रही मदद और अपनी ख़ुद की जमा पूंजी से चला रही हैं. वैसे इनके आश्रम की पहचान अब आस-पास गांव में होने लगी है तो कभी-कभी लोग अपने ख़ास मौक़ों को इन बुज़ुर्गों के साथ मनाने चले आते हैं, जिससे इन्हें भी थोड़ी ख़ुशियां मिल जाती हैं.

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पैसों की कमी होते हुए भी आशा बेन इस चीज़ को यहां रहने वाले बुज़ुर्गों पर ज़ाहिर नहीं होने देती हैं और सारा काम पूरी ईमानदारी से ख़ुद करती हैं. जैसे सफ़ाई करना, खाना बनाना, बुज़ुर्गों को समय-समय पर दवाई और खाना खिलाना आदि. इस सभी कामों के चलते आशा बेन सुबह से शाम तक इन बुज़ुर्गों की सेवा में हाज़िर रहती हैं. 

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आज के दौर में जब अपने अपनों को साथ नहीं देते, बच्चे मां-बाप को बोझ समझकर रास्तों में भटकने के लिए छोड़ देते हैं, वहीं आशा बेन जैसी बेटी भी है, जो इन बेसहारा बुज़ुर्गों को सहारा देती हैं, उनके मुरझाए चेहरों को मुस्कान देती हैं, उनके बीमार शरीर को अपनी देखभाल और दवाइयां देती हैं, अकेलेपन में सहारा और प्यार देती हैं. भगवान आशा बेन जैसी बेटियों को हर घर में जन्म दें ताकि किसी भी मा-बाप के लिए सुदामा जैसे वृद्धाश्रम ने खोलने पड़ें क्योंकि वृद्धाश्रम बुज़ुर्गों के लिए सिर्फ़ एक ज़िंदगी काटने की जगह हहै, जहां वो रहते-रहते ज़िंदगी जीना सीख जाते हैं, लेकिन जब बात घर वापसी की आती है तो कदम अपने ही घर की ओर भागते हैं.

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अगर आप आशा बेन की मदद करना चाहते हैं तो इस नम्बर पर 8780707508 पर कॉल करके कर सकते हैं.