‘मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है’ ये तो आपने देखा और सुना ही होगा. इस स्लोगन से ये प्रतीत होता कि हमारे भारत की छवि बदल रही है और देश तरक्की की राह पर है. अच्छी बात है कि देश ख़ूब तरक्की करे और आगे बढ़े, इससे बढ़कर हम देशवासियों के लिए फ़र्क की बात और क्या हो सकती है.

लेकिन इतनी तरक्की के बावजूद दिल में बार-बार एक ही बात आती है, क्या आज़ाद भारत की महिलाएं वाकई में आज़ाद हैं? कुछ ऐसी बातें, जिन्हें जानने के बाद आप भी यही कहेंगे कि वाकई हम और देशों की तुलना में अभी भी बहुत पीछे हैं.

1. कन्या भ्रूण हत्या

भारत में लिंग परीक्षण पर रोक है. ये परीक्षण करवा कर गर्भपात कराने वालों के लिए देश में सज़ा का प्रावधान भी है, लेकिन भारत के कई राज्यों में आज भी लोग लिंग परीक्षण कराते हैं और अगर जांच में लड़की होने का पता चलता है, तो गर्भपात करा दिया जाता है.

2. इस गांव में शादी से बच्चा ज़रूरी है.

भारतीय परंपरा के अनुसार, अगर शादी से पहले कोई लड़की गर्भवती हो जाए, तो उसे घर, परिवार और समाज की काफ़ी प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. वहीं राजस्थान की आदिवासी जनजाति गरासिया के लोग एक अनोखी परम्परा को मानते हैं. परम्परा के अंतर्गत युवा पहले पसंद की लड़की के साथ लिव-इन में रहते हैं. बच्चा पैदा होने के बाद ही दोनों को शादी के बंधन में बंधने की अनुमति मिलती है. वहीं अगर बच्चा, नहीं हुआ तो वो लोग अलग हो जाते हैं. इस कड़वे सच को शायद कोई देखना या दिखाना नहीं चाहता.

sanjeevnitoday

3. विधवाओं को अपशगुन माना जाता है.

हमारे हिंदू धर्म में शगुन और अपशगुन को लेकर वैसे तो कई मान्यताएं प्रचलित हैं, उन्हीं मान्यताओं में एक ये भी है. कई राज्यों और कसबों में आज भी ऐसा होता है कि अगर किसी शादीशुदा महिला के पति की मृत्यु हो जाए तो, उसे समाज द्वारा उत्पन्न की गईं कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे उसे किसी शुभ काम शामिल नहीं किया जाता. घर से निकलते वक़्त अगर विधवा महिला किसी शख़्स के सामने आ जाए, तो उसे अपशगुन माना जाता है. एक विधवा महिला रंगीन कपड़े नहीं पहन सकती. तमाम ऐसी चीज़ें हैं जिससे उसे वंचित रखा जाता है. क्या इसे ही कहते हैं कि देश बदल रहा है और तरक्की कर रहा है.

dailymail

4. बाल विवाह

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर है. तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार देश में 47 फीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है .रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी लड़कियां 18 वर्ष से पहले ही मां बन जाती हैं. यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू कि ओर इशारा करती है, जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज़ व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं.

5. महिलाओं को शिक्षा में बढ़वा न मिलना.

बेटियों की शिक्षा के लिए सरकार कई योजनाएं तो लाती है, मगर उन पर अमल नहीं किया जाता. गांव हो, शहर हो या फिर कोई कस्बा इन जगहों पर अभी भी कई परिवार ऐसे हैं, जो अपने घर की बेटियों को शिक्षा में बढ़ावा नहीं देते, इसके पीछे उनकी सिर्फ़ एक ही मानसिकता होती है कि पढ़-लिख़ कर क्या करेंगी, जाना तो उन्हें दूसरे के घर ही है. शर्म आती है ये सोच कि ऐसी सोच वाले लोग हमारे समाज का हिस्सा हैं.

navbharattimes

6. बेटी-बेटे में भेदभाव

हमारे समाज में कुछ संकुचित मानसिकता वाले लोग मौजूद हैं, जो आज भी लड़के के होने पर जश्न मनाते हैं और लड़की के होने पर मातम. आगे चलकर यही लोग लड़के-लड़की में भेदभाव भी करते हैं.

ये हमारे समाज की वो सच्चाई है, जिसने न जाने कितनी माताओं और बहनों की ज़िंदगी ख़राब कर दी है. कुछ महिलाएं तो रोज़ इन चीज़ों का सामना करती हैं. ये वो हकीकत है जिसे शायद टीवी पर दिखाने लायक भी समझा जाता. ‘उठो, जागो और देश बदलो’ शायद तभी आप गर्व से कह सकेंगे कि देश बदल रहा है और तरक्की कर रहा है. 

Feature Image Source : sanjeevnitoday