समाज में बहुत कम ही लोग होते हैं जो सामाजिक बुराइयों और पर्यावरण दोनों के लिए लड़ते हैं. उनके अथक प्रयासों के ज़रिये ही ये दुनिया लोगों के रहने लायक बनी हुई है. उत्तराखंड में भी ऐसी ही एक समाज सेविका रहती हैं, जिन्हें लोग प्यार से बसंती बहन बुलाते हैं. वो कई वर्षों से पहाड़ पर रहे वाले इन लोगों का जीवन बेहतर बनाने में जुटी हुई हैं.
बसंती बहन पिछले एक दशक से समाज की सेवा में जुटी हैं. वो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले की रहने वाली हैं. उनके द्वारा राज्य में बाल विवाह के ख़िलाफ चलाए जा रहे अभियान के ज़रिये लाखों बच्चियों का जीवन सुधर गया है.

दरअसल, बसंती बहन 12 साल की उम्र में ही विधवा हो गई थीं. इसके बाद उन्होंने जो दुख झेले वैसा किसी और बच्ची के साथ न हो इसका उन्होंने प्रण लिया. उन्होंने अपने पिता के घर जाकर फिर से पढ़ाई शुरू की. 12वींं की परीक्षा पास करने के बाद वो एक समाजिक संस्थान से जुड़ गई. वो एक टीचर भी हैं और समाज सेविका भी. स्कूल की ड्यूटी ख़त्म करने के बाद वो महिलाओं को उनके हक़ के प्रति जागरूक करती हैं.
उनकी मेहनत रंग लाने लगी. लोग जागरूक होने लगे और तेज़ी से बाल विवाह की दर घटने लगी. लेकिन राज्य में बाल विवाह एक्ट 2006 क़ानून लागू नहीं हुआ था. दो साल पहले एक बाल विवाह के केस में प्रेग्नेंसी के कारण एक बच्ची का निधन हो गया था. इस केस की सुनवाई के दौरान नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को राज्य में इस क़ानून को सख्ती से लागू करने और हर ज़िले में एक बाल विवाह को रोकने वाले नोडल अधिकारी रखने का आदेश दिया था.

उस दिन बसंती बहन जैसे तमाम समाज सेवकों ने चैन की सांस ली थी. ख़ैर, बसंती जी यहीं नहीं रुकी वो लगातार महिला सशक्तिकरण के लिए आवाज़ उठा रही हैं और उनकी ये जंग आज भी जारी है. इसके अलावा वो पर्यावरण को भी बचाने में जुटी हैं. साल 2003 में उन्होंने कोसी नदी को सूखने से बचाने के लिए ‘कोसी बचाओ’ अभियान की शुरुआत की थी. इसमें बहुत सी महिलाओं और ग्रामीण लोगों ने मिलकर नदी के किनारे ऐसे पेड़ लगाए जो जल संरक्षण के लिए उपयुक्त थे जैसे, ओक, काफल आदि.
उनके इस अभियान की बदौलत ही कोसी नदी फिर से पहले की तरह पानी से सराबोर हो बहने लगी. कसौनी और पिथौरागढ़ ज़िले में वो फ़ेमस हैं. उनकी तारीफ़ करते हुए लोग कहते हैं कि वो जिस काम को करने का ठान लेती हैं उसे पूरा करके ही दम लेती हैं. उनके प्रयासों को देखते हुए साल 2016 में बसंती बहन को नारी शक्ति अवॉर्ड से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था.

बसंती जी कहती हैं- ‘मैं जब भी किसी परिवार को बाल विवाह न करने के प्रति राज़ी कर लेती हूं तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैंने बहुत बड़ी चीज़ हासिल कर ली है. मैं बच्चियों के जीवन को सुधारने में निरंतर लगी रहूंगी.’
फ़िलहाल बसंती जी महिलाओं को ग्राम पंचायतों में भागीदार बनाने और इसमें शामिल कर उन्हें सशक्त बनाने के अभियान में जुटी हैं. उनकी साथी पार्वती कहती हैं कि वो जब तक अपने इस अभियान में भी सफ़ल नहीं हो जाती तब तक वो रुकने वाली नहीं है.
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