Viji Penkoottu Who Fought For Saleswoman Rights In Kerala: हर एक महिला सपना देखती है. लेकिन महिलाओं के उन सपनों को पूरा करने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है. कई बार तो बड़े पैमाने पर महिलाओं को लड़ाईयां भी लड़नी पड़ती हैं. ऐसा ही कुछ केरल के कोझिकोड शहर की रहने वाली विजि पेनकुट्टू के साथ हुआ. उन्होंने हमेशा से सेल्सवुमन बनने का सपना देखा था. लेकिन उनके उस सपने के आगे उनका रंग, रूप और समाज की रूढ़िवादी सोच आ गई.

विजि ने फिर एक पहल शुरू की, जहां उन्होंने केरल की बहुत ही गंभीर समस्या पर नज़र डाला कि केरल में दुकानों पर काम रही महिलाओं के लिए टॉयलेट और बैठने की जगह नहीं है. बस फिर क्या था, इस बात को लेकर विजी ने अपने मन में ठान ली कि सेल्सवुमन के लिए वो लड़ाई लड़ेंगी. चलिए इसी क्रम में हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपने #DearMentor कैंपेन के माध्यम से उनकी कहानी जानते हैं.

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चलिए जानते हैं Viji Penkoottu ने कैसे दिलवाया महिलाओं को उनका अधिकार-

22 साल की उम्र में देखा था ‘Salesgirl’ बनने का सपना

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विजि 22 की उम्र से ही कपड़ों के शोरूम में एक सेल्स गर्ल बनना चाहती थीं. लेकिन उनके रंग, रूप और मोटे होने के कारण सबने उन्हें कहा कि वो एक ‘Right Shape’ में नहीं है. उनका सपना उस समय टूट सा गया था. बाद में विजि सेल्स गर्ल का सपना छोड़कर साधारण सी टेलर बन गई. जहां वो गली और मोहल्ले की औरतों की नाइटी और सूट सिला करती थीं. उन्होंने बताया-

“हमारे पास जीवित रहने के लिए पैसे नहीं थे. मेरे पति दिहाड़ी मज़दूर थे. अगर वो काम नहीं करते, तो हम खाना नहीं खाते”

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उन्होंने बताया कि केरल में बहुत सी महिलाएं टेलर बन जाती थीं. क्योंकि ये एक आसान बिज़नेस है. उस दौरान राज्य सरकार महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी. इसीलिए महिलाओं को सिलाई की मशीन खरीदने के लिए लोन भी आसानी से दिया जाने लगा.

टॉयलेट समस्या से शुरू हुई विजि का महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने सफ़र

विजि की टेलर शॉप कोझिकोड के S.M Street में थी और एक दिन वो महिला कर्मचारियों की टॉयलेट जाने की लंबी लाइन देखकर हैरान रह गईं. उन्होंने बताया-

“मेरी बिल्डिंग में एक टॉयलेट था. लेकिन मुझे पता चला कि कई दुकानें ऐसी हैं, जिनमें टॉयलेट नहीं है. लाइन में लगी महिलाएं रो-रोकर अपनी समस्या बता रही थीं. सबने बताया कि अगर वो अपने मालिक से दुकान में टॉयलेट की मांग करती भी थी तो उन्हें अगले दिन से काम पर न आने की हिदायत दे दी जाती थी.”

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टॉयलेट न जाने की वजह से महिलाओं को यूरीन प्रॉब्लम (Urine Problems) होने लगी. जब वो पहली बार अपनी समस्या लेकर दुकान के मालिक के पास गई, तो उन लोगों ने एक बहुत ही अजीब बात कही- “मालिक ने अपनी फीमेल स्टाफ़ को पानी न पीने को कहा” जिससे उन्होंने टॉयलेट जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी. लेकिन ये कोई उपाय नहीं था.

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जिसके बाद 2009 में, विजि ने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर एक संगठन शुरू किया. जिसका नाम ‘Penkoottu’ था. जहां वो दो चीज़ों पर ध्यान देती थीं. पहला “Moothrapura samaram” टॉयलेट करने की सुविधा और दूसरा (Irikkal samaram) बैठने के लिए संघर्ष . विजि के संगर्ष भरे पहल के कारण आज केरल में “दुकान और कॉमर्शियल प्रतिष्ठान अधिनियम (Shop and Commercial Establishment Act)” लागू हो चुका है. जहां स्टाफ़ के लिए बैठने के सीट और टॉयलेट होना अनिवार्य है.

राज्य सरकार ने नियम का पालन न करने वाले दुकान मालिकों पर जुर्माना लगाकर हस्तक्षेप करना शुरू किया. लेकिन, ज़्यादातर मालिक जुर्माना दे दिया करते थे. लेकिन हो रहे विरोध के कारण कई दुकानों में महिलाओं के लिए टॉयलेट और बैठने की सुविधा शुरू होने लगी. विजि ने बताया-

“एक बड़ा बदलाव होने के बावजूद लड़ाई खत्म नहीं होती है. ड्राफ़्ट कानून कहता है कि बैठने की जगह थोड़े-थोड़े इंटरवल पर उपलब्ध कराई जानी चाहिए. अब ‘Interval’ शब्द की कोई सटीक परिभाषा नहीं थी. इस सारी चीज़ों को स्पष्ट करना चाहिए था. लेकिन जुर्माने को एक लाख रुपये तक बढ़ाना एक बड़ी बात है”.

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2014 में, विजी के साथ की महिलाओं ने असंगठित मजदूरों के लिए एक ट्रेड यूनियन शुरू किया. Asanghadita Meghala Thozhilali Union (A.M.T.U) का गठन किया. A.M.T.U में पुरुष और महिला दोनों सदस्य हैं.

2018 में बीबीसी ने विजि को ‘दुनिया की सबसे प्रभावशाली और प्रेरक महिलाओं’ में से एक की उपाधि दी

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2018 में 52 वर्षीय विजि को बीबीसी (BBC) ने ‘दुनिया की सबसे प्रभावशाली और प्रेरक महिलाओं’ में से एक की उपाधि दी. वो 73वें नंबर पर थी. उन्होंने बताया कि-

“मैं सिर्फ एक दर्जी हूं. जिसने हमेशा असंगठित क्षेत्र में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी है और मेरे जैसे लोगों के लिए भी. क्योंकि कोई और हमारे लिए खड़ा नहीं होता है. महिलाओं के वर्कप्लेस के अधिकारों के लिए उनकी लड़ाई ने उन्हें इस लिस्ट में स्थान दिलाया है. मैं बस उन चीज़ों के लिए खड़ी होती हूं, जो मुझे लगता है सही हैं. “

उन्होंने बताया-

“मेरे माता, पिता, बड़ी बहन और दादी सभी परिवार की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए छोटे-मोटे काम करते थे. जबकि मेरी दादी, मां और बहन ने अपनी कमाई परिवार के लिए खर्च की, लेकिन मेरे पिता ने अपने पैसे का आधा भी परिवार के लिए खर्च नहीं किया. उनका सारा पैसा पार्टियों और मौज-मस्ती में चला जाता था. जिसके बारे में घर की औरतें सोच भी नहीं सकती थीं. वहीं से मेरे दिमाग में चीज़ें आने लगीं.”

विजि ने बताया कि अब उन्हें सिलाई करने का समय नहीं मिलता है. उन्हें जगह-जगह लोगों को प्रेरित करने के लिए बुलाया जाता है. उनके पति और बच्चे भी काफ़ी सपोर्ट करते हैं. वो बताती हैं कि वो अपना दिन सुबह 9 बजे शुरू करती हैं और रात 9 बजे खत्म करती हैं.

वाह! विजि के एक पहल ने कई महिलाओं की ज़िंदगी बदल दी है.