‘अपना फ़ेमिनिज़्म अपने पास रखो.’
‘फ़ेमिनिज़्म को घर रख कर बहस किया करो.’
‘तुम फ़ेमिनिस्ट्स लोग हम मर्दों से नफ़रत क्यों करती हो.’
ये या इनसे मिलते-जुलते वाक्य आपने या तो किसी से कहे होंगे या फिर किसी से सुने होंगे. ‘फ़ेमिनिज़्म’ या ‘नारीवाद’ से जहां किसी ज़माने में महिलाओं का उत्थान हुआ था, वहीं आज इस शब्द से लोग भयभीत हैं.
कुछ लोग ‘फ़ेमिनिस्ट’ को गाली समझते हैं, वहीं कुछ लोगों के अनुसार ये हमारे समाज की बर्बादी का कारण है. जनाब, कोई बम थोड़ी है, जो समाज बर्बाद हो जाएगा?
‘फ़ेमिनिज़्म’ का अर्थ पुरुषों की बराबरी करना कभी नहीं था, न है और न ही होगा. ये तो सिर्फ़ इतना है कि महिलाएं बराबरी से जीना चाहती हैं, उन्हें जीने दिया जाए. जो करना चाहती है उन्हें करने दिया जाए. उन पर ‘तुम औरत हो, नहीं कर पाओगी’ कहकर अंकुश न लगाया जाए.
चाहे वो मतदान का अधिकार हो, या गर्भ रोकने का, इतिहास गवाह है कि इन सब अधिकारों के लिए कई फ़ेमिनिस्ट्स ने लंबी लड़ाईयां लड़ी हैं.
अभी कई लड़ाईयां बाक़ी हैं, पर ज़रा ठहर कर हमारे आज के अधिकारों के लिए कल के फ़ेमिनिस्ट्स को शुक्रिया कहते हैं:
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
फ़ेमिनिज़्म और नकली फ़ेमिनिज़्म में अंतर करना आपको स्वयं सीखना होगा. और हम गुज़ारिश करेंगे कि WhatsApp Forwards से ज्ञान न लें.
Designed by: Muskaan