हमारे सामने कई बार इस तरह की ख़बरें आती हैं. 

जब ऐसी ख़बर हमारे सामने आती है तो उसे पढ़कर तुरंत महिला के लिए सम्मान बढ़ जाता है.


देखो कितनी शक्तिशाली महिला है, देखो इस महिला के लिए काम कितना मायने रखता है, देखो इस महिला को अपने से ज़्यादा दूसरों की परवाह है, हैट्स ऑफ़, सलाम, परफ़ेक्ट न्यूज़ आदि जैसे कई कमेंट्स सोशल मीडिया पर दिख जाएंगे. 

हाल में ही एक और ख़बर आई, मोदीनगर की नोडल ऑफ़िसर डिलीवरी के 14 दिन बाद ही काम पर लौट गईं. 

सभी लोग इस बात की ख़ुशियां मनाने लगते हैं कि एक महिला ने मां बनने के बाद भी छुट्टी नहीं ली और लोगों की सेवा में लगी रहीं. कई बार दिमाग़ में ख़याल आता है कि ऐसा कहने वाले पुरुष और नारियां अपने घरों में जाकर क्या कहते होंगे? हमारा समाज ही तो शर्मा जी के बेटे के उदाहरण पर टिका हुआ है तो क्या इस मामले में महिलाओं को डिलीवरी के बाद कम से कम छुट्टी लेने के लिए नहीं कहा जाता होगा? या फिर उन्हें आराम करने के लिए ताने नहीं मिलते होंगे?

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गर्भवास्था के दौरान और डिलीवरी के बाद महिलाओं के साथ किस तरह पेश आया जाता होगा इस देश में, इस बारे में सोच ही रही थी कि अचानक अपनी दोस्त की एक कहानी याद आ गई. हमारी दोस्त पहाड़ों से है और उसने एक बार कहानियां सुनाते हुए बताया था कि उसकी दादी को, सास ने डिलीवरी के 3-4 दिन बाद ही चारा लाने भेज दिया था. मजबूरन दादी ने काम किया था. सोचते ही दिमाग़ और दिल सुन्न हो गया क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आज के दौर में ऐसा नहीं होता होगा… हमारा शहरीकरण ज़रूर हो गया है पर हमारी सोच कितनी आगे बढ़ी है ये हम सब जानते हैं.


ऐसा नहीं कहा जा रहा कि गर्भावस्था और डिलीवरी के बाद महिलाओं को ‘नॉर्मल जीवन’ जीने ही कहा जाता हो पर कई लोग उम्मीद करते हैं कि डिलीवरी के बाद महिलाएं घर का पूरा काम संभाले और दफ़्तर का भी.

प्रोबलम ये है

पेड मैटरनिटी लीव से लोगों को होने वाली दिक्कतों से हम सभी कोरपोरेट स्लेव परिचित हैं. ऐसी तस्वीरों पर शाबाशियां ये ‘महिलाओं को डिलीवरी के बाद छुट्टी नहीं मिलनी चाहिए, वो तो नॉर्मल ही दिखती हैं’ वाली सोच को बढ़ावा देती है.


बहुत ही दुख की बात है कि साइंस के इतने विकास, डॉक्टरों के इतने गला फाड़ बातों के बावजूद भी हम अब तक नहीं समझे हैं. कई बार फ़िल्मों में डायलॉग भी डाल दिया जाता है, ‘मां बनना नारी के दूसरे जन्म के समान है’. ये अजीब बात है पर सच है क्योंकि प्रसव पीड़ा इतनी भयंकर होती है कि अगर कोई नारी वो पार कर जाती है तो वो किसी नये जन्म सा ही है. ये पीड़ा सब्जेक्टिव है, इसलिए इसे मापा नहीं जा सकता. 

डिलीवरी के बाद किसी भी महिला को आराम करना चाहिए, ये उसके और उसके बच्चे के लिए बेहद ज़रूरी है. फिर भी अगर कोई महिला काम करना चाहती हैं तो ये उनका निजी मामला है, इसमें समाज को आगे तालियां पीटकर उनको ग्लोरिफ़ाई करना ग़लत है. इस आदत की क़ीमत दूसरी महिलाओं को चुकाना पड़ता है/पड़ सकता है. 

ये करना चाहिए

पहला, अगर किसी महिला ने ऐसा किया है तो उसका गुणगान करना बंद करना है.


दूसरा, ऐसे मामलों का उदाहरण देकर दूसरी महिलाओं को ऐसा ही करने के लिए नहीं कहना है.

तीसरा, महिलाओं की स्वास्थ्य सबंधी समस्याओं और समाधानों पर अधिक बात करनी है. महिलाओं और संस्थानों को गर्भावस्था और माहवारी के दिनों के लिए छुट्टी और अन्य सेवाओं के लिए प्रेरित करना है.

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ये कुछ ऐसे पॉइंट्स हैं जिन्हें करना असंभव बिल्कुल नहीं है. अगर सभी साथ मिलकर, एकजुट होकर काम करें तो मां बन चुकी महिलाओं को भी पोस्ट-पार्टम डिप्रेशन का सामना नहीं करना पड़ेगा. यही नहीं उनकी प्रोडक्टिविटी पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा.