ये तस्वीर देखकर आपको क्या लगता है?

दरअसल, एक दिन मैं और मेरी दोस्त बैठे थे और हम मोबाइल पर अपनी तस्वीरें देख रहे थे. उसी बीच उसके मोबाइल में ये तस्वीर आ गई. वो कुछ सेकेंड्स के लिए उस तस्वीर पर रुकी और तपाक से बोली कि क्या तस्वीर है न? मुझे लगा कि वो फ़ोटोग्राफ़र की तारीफ़ कर रही है. मगर अगले ही पल उसने कुछ ऐसा कहा कि मैं चौंक गई.

दरअसल, वह तस्वीर की तारीफ़ नहीं कर रही थी. वो तो उस औरत पर गौरवान्वित महसूस कर रही थी. उसने कहा, ‘मां तो ऐसी ही होती है. देखो अपने परिवार के लिए कितनी मेहनत कर रही है. सिर पर ईंटों के ढेर को उठाए नारी-शक्ति की ये मिसाल है. इसे मेरा सलाम!’

उसने मेरी तरफ़ देखा और पूछा, है न? ख़ैर, मैंने उस बात पर कोई जवाब नहीं दिया और कुछ और बात करने लगे. लेकिन वो बात मेरे मन में घूमती रही. मैं उस पर लगातार सोचती रही. क्यों? क्योंकि मेरे लिए वो तस्वीर नारी शक्ति की तस्वीर नहीं थी.
नारी-शक्ति की जो समझ मुझे है वो ये कहती है कि समाज में एक औरत के समान अधिकार होने चाहिए. उसे समाज की सारी सुविधाएं मिलनी चाहिएं. तो फिर ये कैसी नारी-शक्ति है जिसे न तो सुविधाएं मिली न शिक्षा, ना ही उसके पास किसी तरह के अधिकार हैं और न ही पैसा. जब उसके पास ये सब कुछ नहीं है तो ये काम उसकी मजबूरी है नारी शक्ति नहीं.

तस्वीर को लेकर मेरा कौतुहल वहीं नहीं रुका मैंने अपनी मम्मी से पूछा कि मम्मी क्या आप ख़ुद को नारी-शक्ति की मिसाल मानती हो. उनका जवाब था नहीं. क्योंकि वो जो कर रही हैं उन्हें हमेशा बताया गया कि उनका फ़र्ज़ है, तो फिर ये नारी-शक्ति कैसे हुआ?
तब मुझे लगा कि मैं सही थी ये नारी-शक्ति नहीं है. ये सिर्फ़ वो चोला है जिसके अंदर महिलाओं की स्थिति, अधिकारों, स्वास्थ और शिक्षा को ढांका जा रहा है. क्योंकि मेरी मां और उस ईंटे ढोने वाली मां में मुझे ज़्यादा फ़र्क़ नहीं दिखा. दोनों ही अपने अधिकारों से वंचित हैं. दोनों के ही अधिकारों पर ये समाज बात नहीं करता. अगर ये ग़लत है तो हमें ग़लत क्यों नहीं लगता?

हम लोग औरतों के हक़ों की बातें कर लेते हैं. लेकिन मां के हक़ों की बातें नहीं कर पाते. हम आज भी उस छवि को चुनौती क्यों नहीं दे पाते जो मां से जुड़े इमोशन के नाम पर उस औरत को सारे अधिकारों से वंचित करता है जो उसका भी हक़ है.

इसीलिए हम जब भी मां के बारे में बात करते हैं तो हमेशा उसके त्याग, बलिदान, तपस्या, परिवार की धुरि के बारे में बात करते हैं और इस तरह हम हर मां के अधिकार और इस बात को पूरी तरह ख़त्म कर देते हैं, नकार देते हैं कि उसका अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है.