कुछ समय से लैंगिक समानता (Gender Equality) से जुड़े लेख लिख रही हूं, तो लोगों ने ‘Feminist’ कहना शुरू कर दिया है. अकसर लोग जब ये तमगा किसी को देते हैं, तो भले ही शब्द तारीफ़ के हों, एक अजीब तरह की नफ़रत की बू फिर भी आती है.

कुछ लोगों के लिए तो ‘फेमिनिस्ट’ एक गाली है, जो वो उन लड़कियों को देते हैं, जो उनके अनुसार, समाज को बिगाड़ रही हैं. ये गाली उन्हें लड़कियों के लिए ही उपयुक्त लगती है, क्योंकि वो ये ही जानते हैं कि केवल लड़कियां ही फेमिनिस्ट होती हैं और Frustration में ये कहते हैं ‘Fuck Feminism’.

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ऐसे लोगों के दिमाग में एक फेमिनिस्ट की कुछ ऐसी धारणा होती है:

“ये वो लड़कियां हैं, जिनका काम पुरुषों को पानी पी-पी कर कोसना होता है, जैसे आदमी कोई राक्षस है.

ये चाहती हैं कि इन्हें भी सड़क पर खड़े हो कर मूतने की आज़ादी मिल जाये, इन्हें छोटे कपड़े पहनना और शराब पीना पसंद होता है, चाहती हैं कि खुले आम ब्रा के फीते दिखाती घूमें और कोई इन्हें घूरे भी न.

ये चाहती हैं औरतों को विशेषाधिकार मिल जायें, जिससे वो पुरुषों का दमन कर सकें और पितृसत्ता की जगह मातृसत्ता आ जाये.”

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हां, कुछ लड़कियां भी अपने दिमाग में फ़ेमिनिज़्म की ग़लत धारणा बना कर रखती हैं और पुरुषों को गरियाने को ही फ़ेमिनिज़्म समझती हैं. असल में ये लड़कियां फेमिनिस्ट नहीं होतीं, ये भी इस तरह का द्वेष फैला कर ‘सेक्सिस्ट’ हो जाती हैं. ये फेमिनिस्ट नहीं, ‘Fake Feminist’ होती हैं.

मैंने कई ‘So Called Intellectuals’ को कहते सुना है कि वो फ़ेमिनिज़्म को नहीं, ‘Gender Equality’ को सपोर्ट करते हैं. ऐसे लोग शायद फ़ेमिनिज़्म को समझते ही नहीं.

फ़ेमिनिज़्म की सबसे आसान परिभाषा Merriam-Webster डिक्शनरी में मिलती है, “फ़ेमिनिज़्म ये विचार है कि औरतों और मर्दों को समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिये.”

इसका सीधा अर्थ ये है कि ये केवल औरतों के ही अधिकारों की बात नहीं करता, बल्कि लैंगिक समानता की बात करता है. बड़ी सीधी सी बात है कि अगर आपको समान अधिकारों की बात से दिक्कत होती है, तो आपको ज़रूर विशेषाधिकार प्राप्त हैं और आप नहीं चाहते कि ये आपसे छीने जायें.

देश में महिलाओं की बहुत बड़ी संख्या है. अगर भारत में महिलाओं को पुरुषों के बराबर रोज़गार के अवसर दिए जाएं, तो 2025 तक देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 60 फीसदी तक बढ़ सकता है. देश का विकास हो, इसके तो सब हक में होते हैं, तो ऐसा कोई विचार, जो देश के विकास में इतना बड़ा सहायक साबित हो सकता है, क्यों लोगों को फ्रस्ट्रेट करता है?

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कई ‘Feminism Haters’ से सुना है कि घरेलू हिंसा तो पुरुषों के साथ भी होती है, उसका क्या? जी ये बिलकुल सही है कि कुछ पुरुषों के साथ भी हिंसा होती है, पर क्या सिर्फ़ ये सोच कर घरेलू हिंसा के खिलाफ़ क़ानून नहीं बनाये जाने चाहिये? कुछ औरतें उनकी रक्षा के लिए बनाये गए कानूनों का दुरूपयोग भी करती हैं, तो क्या इन चंद औरतों के बारे में सोच कर हमें उन औरतों के लिए भी क़ानून नहीं बनाने चाहिए, जिन पर आज भी अत्याचार हो रहे हैं? दुरूपयोग किस क़ानून का नहीं होता?

एक फेमिनिस्ट उस अत्याचार को भी गलत कहेगा, जो पुरुष सहते हैं. ऐसा नहीं है कि फ़ेमिनिज़्म को नकारने से केवल औरतों को नुकसान होगा. Gender Inequality के कारण मर्दों को भी परेशानी होती है.

मैं पूछना चाहूंगी फ़ेमिनिज़्म को नकारने वाले पुरुषों से कि क्या जब दर्द से तुम्हारा सीना फटा जा रहा था और तुम रोना चाहते थे, तो कभी ये सोच कर आंसू नहीं रोके कि लोग कहेंगे कि मर्द हो कर रोता है? क्या तुमने कभी महसूस नहीं किया कि लड़कों पर कमाने के लिए लड़कियों से ज़्यादा दबाव होता है? क्या जब बचपन में घर का सामान लेने के लिए हर बार तुम्हें ही बाहर भेजा जाता था, तो तुम्हें झुंझलाहट नहीं होती थी?
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Gender Roles मर्दों और औरतों को अलग भूमिकाओं में बांधते हैं. इनके कारण कई बार लड़कों को भी बेवजह परेशानी झेलनी पड़ती है और लड़कियों को अकसर इनके कारण भेद-भाव का सामना करना पड़ता है.

एक अजीब तरह की चिढ़ हो जाती है लड़कों को भी और लड़कियों को भी. लड़कों के मन में आता है कि जब हम भी परेशान होते हैं, तो सिर्फ़ औरतों के हक़ों को लेकर ही क्यों हल्ला होता है? लड़कियों को क्यों चिढ़ होती है, इसके लिए कारण आये दिन गिनाये ही जाते हैं.

फ़ेमिनिज़्म का अर्थ पुरुषों से चिढ़ना नहीं है, बल्कि औरतों और पुरुषों, दोनों को ही इन Gender Roles से आज़ादी दिलाना है. परुषों में से पुरुष होने का अहम और औरतों में से हीन भावना निकालना फ़ेमिनिज़्म है. अगर तुम्हें लगता है कि पुरुष होने के कारण तुम्हारे साथ ज़्यादती होती है, तो तुम्हें भी Feminism की ज़रुरत है, इसलिए इससे चिढ़ो मत. फेमिनिस्ट पुरुषों से नफ़रत नहीं करता, बस अन्याय के खिलाफ़ लड़ाई में उनका साथ चाहता है.

Feature Image: Drealfmgrenada