पहले ये वीडियो देखिए:
ये वीडियो समाज में आने वाले उस बदलाव की ओर इशारा कर रहा है, जहां एक महिला के लिए एक 2 साल के बच्चे की मां होने के बावजूद भी काम करना आसान है. मगर यही साथ उसे तब भी मिलना चाहिए, जब वो प्रेग्नेंट हो.
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मां बनना एक औरत के लिए बहुत ख़ुशी और सौभाग्य की बात होती है. बच्चे की वो पहली मुस्कुराहट नौ महीने का दर्द भुला देती है… वो सारे सैक्रिफ़ाइज़, क़ॉम्प्रोमाइज़ सबकुछ. इन सबके बदले वो घर में अपनों और ऑफ़िस में अपने साथ काम करने वालों का साथ और सपोर्ट चाहती है. ये सपोर्ट उसको दोबारा काम शुरू करने और अपने बच्चे की अच्छी देखभाल करने का साहस देता है.
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मैंने इसी विषय पर उन महिलाओं से बात की, जो इस परिस्थिति से गुज़र चुकी हैं या गुज़र रही हैं. उनकी इस बारे में क्या राय थी, आपसे साझा कर रही हूं:
मेरी बड़ी बहन का नाम स्वपनिल निगम यादव है, जो पेशे से इंटीरियर डिज़ाइनर है और उसकी 4 साल की बेटी है. वो जब प्रेग्नेंट थीं, तो जिस कंपनी में काम करती थीं, उन्होंने उन्हें आखिरी के तीन महीने ऑफ़िस से पिक एंड ड्रॉप दिया था और उसके लेट होने पर उसको किसी के तंज नहीं सुनने पड़ते थे. इसलिए शायद उसने अपने वो दिन आराम से बिना किसी परेशानी के बिताए. यहां तक कि डिलीवरी के बाद की जो तीन महीने की छुट्टी थी, उसमें उसे दो महीने का वेतन भी मिला था.
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‘ऑफ़िस में सपोर्ट न मिलने के चलते जॉब से रिज़ाइन करना पड़ा’
आस्था सांवलानी एक प्राइवेट ऑफ़िस में जॉब करती हैं और हैदराबाद में रहती हैं. उन्होंने बताया कि शुरुआती कुछ दिनों में झगड़े हुए, लेकिन उसके बाद पति ने उनका बहुत साथ दिया, ज़रूरतों का खाने पीने का. यहां तक कि मेरे खाने का सामान अपने ऑफ़िस टाइम में भी मुझे मेरे ऑफ़िस देकर जाते थे. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि उनके ससुराल से किसी तरह का कोई सपोर्ट नहीं मिला और न ही ऑफ़िस से. जिस वक़्त वो प्रेग्नेंट थीं उस वक़्त उसकी ननद भी प्रेग्नेंट थी, तो सास ने अपनी बेटी को चुना न कि बहू को और ऑफ़िस में सपोर्ट न मिलने के चलते उन्हें अपनी अच्छी-खासी जॉब से रिज़ाइन करना पड़ा.
वहीं, एक और महिला, उन्होंने बताया कि कोई नहीं सपोर्ट करता, सब ख़ुद ही करना पड़ता है. एक बार पति साथ दे भी दें, लेकिन ससुराल में सास का कहना है कि काम करो अच्छा रहता है.
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‘ससुराल वालों ने मेरा बहुत साथ दिया, मेरे मूड स्विंग्स को संभाला’
प्रियंका मिश्रा, जो जयपुर में रहती हैं, उनका कहना है कि मुझे ऑफ़िस में साथ काम करने वाले लोगों का तो साथ मिला, लेकिन मेरे बॉस को हमेशा ही मुझसे बहुत ज़्यादा उम्मीद रही कि मैं जल्दी आऊं, प्रेग्नेंट तो सब होते हैं ऐसा थोड़ी चलता है. मगर मेरे पति और ससुराल वालों ने मेरा बहुत साथ दिया, मेरे मूड स्विंग्स को संभाला, मेरे खाने-पीने को संभाला, मेरे देर से उठने पर भी कोई शिकायत नहीं की.
इसके अलावा एक महिला, जो पेशे से अध्यापिका हैं, उनकी एक 2 साल की बेटी है और वो इस समय भी प्रेग्नेंट हैं, उन्होंने बताया कि, ‘मेरे पति, ससुराल वालों और मेरे स्कूल में भी सबने मेरा बहुत साथ दिया. काफ़ी दिक़्क़तें थीं मेरी प्रेग्नेंसी में, लेकिन सबने मेरा बहुत साथ दिया था और इस बार भी दे रहे हैं.’
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यहां पर आप जैसा कि पढ़कर समझ रहे हैं कि सबकी मिली-जुली राय है. इसलिए, मैंने इस बारे में सर्टिफ़ाइड डॉ. शगुफ़्ता नाहिद (BHMS) से बात की. उन्होंने बताया:
सबसे पहले तो पति और परिवार वाले उसकी प्रेग्नेंसी की ख़बर को पूरी खुशी से स्वीकारें. इसके साथ ही पति उसको ये विश्वास दिलाए कि वो उसका हर परिस्थिति में साथ देगा. इससे वो स्पेशल फ़ील करेंगी, Nervousness और Anxiety कम होगी. डॉक्टर के पास साथ में जाएं, इससे उसकी मेडिकल कंडीशन पता चलेगी. जितना हो सके, स्ट्रेस फ़्री रखें. किसी तरह का ताना न दें, मज़ाक न बनाएं. हेल्दी खाने और एक्रसाइज़ के लिए बोलें. अगर सोने में प्रॉब्लम हो तो Body Pillows लाकर दें. इससे नींद अच्छी आएगी. सोने से पहले हेड मसाज और बैक मसाज दें. इस दौरान पति को बहुत धैर्य रखने की ज़रूरत होती है, क्योंकि मूड स्विंग्स बहुत ज़्यादा होते हैं.
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आज के दौर में जो बदलाव आ रहा है, वो बहुत अच्छा और सकारात्मक है. बच्चे की देखभाल, नहलाना, डाइपर चेंज करना, रात में उसे दूध बनाकर देना ये सब घर में मौजूद सभी की ज़िम्मेदारी होना चाहिए, न कि सिर्फ़ मां की. इससे किसी भी औरत को मां बनने से पहले सोचना नहीं पड़ेगा कि वो कैसे मैनेज करेगी.
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अगर समाज में बदलाव की लहर चली है, तो उसके बहाव को आगे बढ़ाइए.
Feature Image Source: ytimg