COVID-19 ने हमारे जीवन में जब से दस्तक दी है तब से सबकुछ उथल-पुथल हो गया है. ऐसे में एक-दूसरे का साथ ही है जो हमें इस नेगेटिविटी से भरे माहौल में पॉज़िटिव रख सकता है. ऐसा ही कुछ तमिलनाडु में रहने वाली 36 साल की डी इंद्रा भी कर रही हैं, जो ख़ुद भले ही व्हीलचेयर के सहारे चलती हैं, लेकिन कई बेसहारा बच्चों का सहारा बनी हुई हैं. ये तमिलनाडु के सिरुनल्लूर गांव में प्रेमा वासम नाम की एक संस्था चलाती हैं, जिसके ज़रिए महामारी के दौरान इंद्रा ने अपने गांव के कई ज़रूरतमंदों की मदद भी की है. इसी के अंतर्गत वो एक प्रेम इल्लम नाम का शेल्टर होम भी चलाती हैं, जो विकलांग बच्चों के लिए उनका घर है.

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दरअसल, इंद्रा जब पांच महीने की थीं, तब उन्हें पोलियो हो गया था, जिसकी वजह से उनमें 90% विकलांगता आ गई थी. इसके चलते क़रीब चार साल की उम्र में उनके माता-पिता उन्हें चेन्नई की एक संस्था में डाल दिया, जहां स्पेशल बच्चों का इलाज होता था. इंद्रा ने वहीं रहकर पढ़ाई-लिखाई की, जब सारे बच्चे खिलौने से खेलते थे, तो इंद्रा किताबें पढ़ा करती थीं. उनके माता-पिता ने कभी इंद्रा की पढ़ाई पर ज़ोर नहीं दिया. इंद्रा के परिवार में माता-पिता और एक बड़ी बहन है, जो उनसे मिलने हफ़्ते में केवल एक बार ही आती थीं. इसलिए वो अपनों के दूर होने के दर्द को बहुत अच्छे से समझती हैं और इसलिए इन 30 विकलांग लड़कियों के लिए वो उनकी अपनी बन गईं.

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इंद्रा बच्चों के स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखती हैं इसके लिए इन्होंने साल 2019 में प्रेमा इल्लम में जैविक खेती करनी शुरू की. पिछले साल जब महामारी के चलते लॉकडाउन लगा तो इंद्रा ने अपने खेतों में उपज बढ़ा दी ताकि वो अपने गांव के उन बच्चों को खाना खिला सकें जिनके माता-पिता महामारी से प्रभावित हुए थे या जो आर्थिक रूप से कमज़ोर थे. इंद्रा के खेत गांव से थोड़ा दूर हैं, लेकिन वो समय-समय पर वहां जाती रहती हैं.

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The Better India से बात करते हुए कहा,

हमारे खेतों में एक बार में क़रीब 25 बोरी चावल उगते हैं, जो संस्था में रहने वाले बच्चों के लिए पर्याप्त हैं. इसके अलावा जो अनाज बच जाता है उसे आस-पास के गांव में रहने वाले ज़रूरतमंद लोगों को बांट देते हैं. शेल्टर होम के एक हिस्से में कुछ सब्ज़ियां और फल भी उगाए जाते हैं. हमें इस बात की ख़ुशी है कि हम इस महामारी के दौर में भूखों को खाना खिला पाए.

-डी. इंद्रा

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इंद्रा के जीवन में इस सकारात्मक बदलाव को लाने वाले क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट सेल्विन रॉय हैं, जो भारत और श्रीलंका के आश्रयगृहों में रहने वाले बच्चों के लिए काम करते थे. इंद्रा की जिज्ञासा को देखकर सेल्विन ने विकलांग बच्चों को पढ़ाई-लिखाई का साधन देने का फ़ैसला किया.इसके चलते उन्होंने 1999 में प्रेमा वासम नाम की संस्था शुरू की.

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इंद्रा सेल्विन को भाई मानती हैं और उन्होंने बताया,

मेरे माता-पिता ने नहीं, बल्कि सेल्विन भाई ने मुझपर विश्वास किया और उन्हें समझाया कि मैं भी सामान्य बच्चों की तरह जीवन जी सकती हूं, स्कूल जा सकती हूं. हालांकि मेरे माता-पिता इस बात से घबराए हुए थे, कि स्कूल जाने पर लोग मेरी कमज़ोरी का मज़ाक उड़ाएंगे. साथ ही उन्हें मेरी सुरक्षा की भी चिंता थी. फिर सेल्विन भाई ने मुझे विश्वास दिलाया कि ये मुश्किल ज़रूर है, लेकिन नामुमक़िन नहीं है और वो मेरा हर मोड़ पर साथ देंगे.

-डी. इंद्रा

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इंद्रा ने तो पढ़ाई करने की ठान ली थी, लेकिन कई स्कूलों ने एडमिशन देने से शुरूआत में मना कर दिया, जिनमें से कुछ स्कूलों ने तो इसलिए मना किया था क्योंकि उनके पास स्पेशल बच्चों के लिए कोई सुविधाएं नहीं थीं. इसके अलावा कुछ का कहना था कि उनके बाकी बच्चों पर इसका असर पड़ेगा. मगर उम्मीद है तो कभी हार होगी, इंद्रा को आख़िरी में एक स्कूल में क्लास 8 में एडमिशन मिल गया.

उन्होंने बताया,

अपने जीवन के शुरूआती10-12 साल संस्था में या घर पर बिताने की वजह से मुझे बाहर की दुनिया, लोग और समाज बारे में इतना नहीं पता था. मैं स्पेशल बच्चों के साथ ही रहती थी. फिर जब मैं सामान्य बच्चों के बीच गई तो उनके साथ ताल-मेल बिठाने में समस्या हो रही थी. मैं रोज़ स्कूल से रोकर घर आती थी और सेल्विन भाई से सब बात बताती थी उन्होंने कड़ी मेहनत करने की सलाह दी, वो मुझे ख़़ुद स्कूल लेकर जाते थे और उन्होंने मुझसे कहा था कि बार-बार असफल होना ठीक है, लेकिन हार मानना नहीं, उनकी इस बात को मैंने हमेशा अपने दिमाग़ में रखा और इससे प्रेरणा ली.

-डी. इंद्रा

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इसके बाद जब इंद्रा ने 9वीं की पढ़ाई के लिए स्कूल बदला तो वहां पर उन्हें काफ़ी अच्छे दोस्त और स्कूल प्रशासन मिला. इंद्रा को सीढ़ियां चढ़नी-उतरनी न पड़ें, इसलिए उनकी क्लास को ग्राउंड फ़्लोर पर शिफ़्ट कर दिया गया. इससे इंद्रा आराम से स्कूल में पढ़ाई करने लगीं और SSLC बोर्ड की परीक्षा में 420/500 नंबर आए. इसके बाद इंद्रा ने सेंट जोसेफ़ कॉलेज से डिस्टिंक्शन के साथ ग्रेजुएशन और अन्ना यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया. साथ ही कंप्यूटर एप्लीकेशन में मास्टर डिग्री भी ली.

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वो बताती हैं,

स्कूल में मेरे दोस्तों ने मेरी बहुत की मदद की, वो मुझे एक क्लास से दूसरे क्लास लेक्चर के लिए लेकर जाते थे. 

-डी. इंद्रा

पढ़ाई पूरी होने के बाद इंद्रा को नौकरी के कई ऑफ़र मिले, लेकिन वो बेसहारा बच्चों की सेल्विन बनना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने प्रेम इल्लम के साथ काम करना चुना और फिर 2017 में, वो पूरी तरह से संस्था से जुड़ गईं. वो कहती हैं,

हमारी संस्था में 30 लड़कियां रह रही हैं, जिनमें से पांच स्कूल जाती हैं और बाकी होम-स्कूलिंग में पढ़ती हैं. मैंने इन बच्चों को अच्छे से पढ़ाने के लिए ख़ुद बी.एड डिग्री भी हासिल की है.
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सेल्विन भी इंद्रा के बारे में कहते हैं,

इंद्रा बहुत मेहनती और महत्वाकांक्षी हैं और वो दूसरों की मदद करने के साथ-साथ बच्चों का भी अच्छे से ख़्याल रखती हैं. समाज के लिए इंद्रा का ये योगदन देखकर मुझे काफ़ी ख़ुशी होती है.
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इंद्रा की ये संस्था डोनेशन से चलती हैं, जिससे वो बच्चों के लिए ज़रूरत का सामान और पशुओं के लिए चारा भी मंगाती हैं. इंद्रा के इस नेक काम के लिए उन्हें हमारा सलाम है!