महिलाओं और पुरुषों में बहुत अंतर है. जितनी बार महिलाओं ने अपने इंसान होने के नाते जन्म से मिलने वाले मौलिक अधिकारों की बात की है, उन्हें अधिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी है. ऐसा ही तो होना चाहिए, क्योंकि दुनिया पर पुरुषों का हक़ है, है न? कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों को अगर खुला छोड़ दिया जाए, तो वे नारीवाद या Feminism शब्द को ही दुनिया से मिटा देंगे.
पर महिलाएं भी कहां मानती हैं? जितना रोको, बांधों या मार-पीट करो, ये उतनी बार उठ खड़ी होती हैं. वो भी दोगुने हौसले के साथ.
मुंबई की कुछ महिलाओं ने एक दफ़ा फिर से व्यवस्था को चुनौति दी है. 45 वर्षीय Chaya Mohite समेत 19 अन्य औरतों ने मायानगरी मुंबई की Overcrowded सड़कों पर ऑटोरिक्शा चलाती हैं.
Mohite ने को बताया:
‘ पहले मुझे साईकिल तक चलाना नहीं आता था और अब मैं मुंबई के ट्रैफ़िक में भी आराम से ऑटो चला लेती हूं. मैं आज़ाद और आत्मनिर्भर हूं. घर के काम से ये काम ज़्यादा अच्छा है. इस काम में पैसे भी अच्छे हैं और इससे हमारा भविष्य भी सुरक्षित होगा.’
3 बच्चों की मां होने के बावजूद Mohite ने 2 महीनों में मुंबई के एक ट्रेनिंग सेंटर में ऑटो चलाना सीखा. Mohite को ये आज़ादी महाराष्ट्र सरकार की स्कीम के कारण मिली है. इस स्कीम के तहत, मुंबई और ठाणे में दिए जाए वाले ऑटो परमिट में महिलाओं को 5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा.
महिला सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसी ही स्कीम दिल्ली और रांची में भी शुरू की गई थी. पर इन शहरों में चलाए जाने वाले Pink Autos में सिर्फ़ महिला यात्रियों को ही बैठाया जाता था. पर मुंबई की ‘ऑटोवालियां’ महिला और पुरुष दोनों ही यात्रियों को बैठाएंगे. समानता का बहुत ही अच्छा उदाहरण पेश कर रही हैं ये महिला ऑटोचालक.
पहुंचाएंगे कहीं भी, कभी भी
ये सर्विस पिछले साल ठाणे में शुरू की गई थी. पर अब ये मुंबई में भी लॉन्च की जाएगी. मुंबई की ये ऑटोवालियां जल्द ही सफ़ेद Lab Coat में मुंबई की सड़कों पर नज़र आएंगी.
आरटीओ ऑफ़िसर और इन महिलाओं के ट्रेनर Sudhir Dhoipode, ने बताया ‘मैंने इन महिलाओं को ऑटो-ड्राइविंग की पूरी ट्रेनिंग दी है. अब ये ऑटो चलाने में Expert बन गई हैं.’
Dhoipode ने ये भी बताया कि अभी वे 40 अन्य महिलाओं को ड्राइविंग सिखा रहे हैं. इनके अलावा 500 अन्य महिलाओं ने भी इस काम में रुचि दिखाई है. अपने रूढ़िवादी समाज को देखते हुए, ये बहुत ही सकारात्मक सोच है.
अधिकारियों ने बताया कि महिलाओं के रिक्शा का रंग अलग रखा जाएगा, ताकि पुरुष ऑटोवाले उन पर धौस न जमा सकें. महिलाओं द्वारा यूं सरेआम ऑटो चलाना Risky है, पर Mohite को किसी बात का डर नहीं है. इस संबंध में उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी सुरक्षा ख़ुद कर सकती हूं और किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना करने में सक्षम हूं. मैं मुंबई की किसी भी सड़क पर ड्राइव करने के लिए तैयार हूं’
मुंबई में उठाए जाने वाले इस कदम की जितनी सराहना की जाए कम है. ड्राइविंग को Man’s Job ही समझा जाता है. जबकि सबसे ज़्यादा Accident पुरुष ड्राइवर ही करते हैं. महाराष्ट्र सरकार के इस कदम से कई महिलाएं आत्मनिर्भर बनेंगी और पुरुष-प्रधान समाज में आज़ाद महसूस करेंगी. वक़्त बदल रहा है और वक़्त के साथ ही दकियानूसी सोच का बदल जाना ही अच्छा है.
Source: NDTV