जंग सिर्फ़ देशों की सीमाओं पर नहीं लड़ी जाती और दुश्मन हमेशा ग़ैर नहीं होते. कभी-कभी अपनों से और अपनों के लिए समाज के भीतर भी एक लड़ाई लड़नी पड़ती है. इस सामाजिक लड़ाई का मक़सद दुश्मन को ख़त्म करना नहीं, बल्कि उसकी सोच को बदलना है, ताकि पूरा समाज बदल सके. छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गांवों में मैरून साड़ी और टोपी पहने महिला कमांडो (Women Commandos Of Chattisgarh) का एक समूह कुछ ऐसा ही कर रहा है. ये महिलाएं किसी सैन्य या अर्धसैनिक बल का हिस्सा नही हैं. ये तो गृहणियां हैं, जो कमांडो के रूप में काम कर रही हैं.   

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Women Commandos Of Chattisgarh

साल 2006 में बनी थी महिला कमांडो ब्रिगेड

इस ‘महिला कमांडो ब्रिगेड’ की शुरुआत 2006 में एक सामजिक कार्यकर्ता और पद्म श्री से सम्मानित शमशाद बेगम ने की थी. शमशाद बेगम ने छत्तीसगढ़ में पिछड़े समुदायों की शिक्षा के लिए बहुत काम किया. उन्होंने अपने घरों में शराबी पुरुषों के हाथों हिंसा का सामना कर चुकी 100 महिलाओं को साथ लिया और महिला कमांडो ब्रिगेड की नींव डाली.

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बता दें, इनमें  कुछ ऐसी महिलाएं भी शामिल थीं, जो कभी मानव तस्करी का शिकार हुई थीं. समाज की मुख्यधारा में लाए जाने के बाद इन महिलाओं ने बुनियादी मानवाधिकारों के लिए लड़ने का बीड़ा उठाया. इन महिलाओं का एक ही उद्धेश्य था कि जिन पीड़ाओं से उन्हें गुज़रना पड़ा है, वो हालात उनके बच्चों को कभी न देखने पड़ें.

समाज की बुराइओं से लड़ रही है जंग

100 महिलाओं से शुरू हुआ ये ग्रुप अब 30 गांवों में फैल चुका है और क़रीब 15,000 महिलाएं इसका हिस्सा बन चुकी हैं. छत्तीसगढ़ पुलिस ने इन्हें ‘सुपर पुलिस कमांडो’ (Super Police Commandos) के रूप में वर्गीकृत किया है. ये महिलाएं राज्य में घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, शराब, नशीली दवाओं की खपत और अवैध शराब के व्यापार जैसे अपराधों को रोकने के लिए काम करती हैं.

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ये महिलाएं अलग-अलग टीम बनाकर अपने गांव में होने वाली गतिविधियों पर नज़र रखती हैं. सड़कों पर हर रोज़ गश्त करती हैं, ताकि अगर कोई अगर शराबी मिले, तो उसकी लत छुड़वाने में मदद कर सकें और उसे ज़रूरी सलाह दे पाएं.

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बता दें, इस काम में बालोद के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आरिफ हुसैन शेख ने भी काफ़ी मदद की थी. उन्होंने साल 2016 में सामुदायिक पुलिसिंग और इन महिलाओं को SPO का पद देकर उन्हें सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. साथ ही, हर गांव के प्रत्येक वार्ड से 10 महिलाओं को SPO नामित करने के लिए चुना. उन्हें एक सिटी और एक बेरेट से लैस किया. अब इस ग्रुप में 15 हज़ार से ज़्यादा महिलाएं हैं, जो बिना किसी सैलरी के समाज को बदलने का काम कर रही हैं.

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महिला कमांडों का गांव की सड़कों पर दिखता है असर

साल 2006 में जब इस पहल की शुरुआत हुई थी, तो शायद ही किसी ने सोचा था कि हालात इस तरह बदलेंगे. जिन गांवों में लोग खुलेआम शराब और जुआं खेलते थे, वहां अब ऐसा करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पाता. बालोद में एक भी व्यक्ति शराब के ठेकों के बाहर शराब पीते या खुले में जुआ खेलते दिखाई नहीं देता है.

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इस ग्रुप की एक मेंबर लता देवी साहू कहती हैं कि ‘हम महिला कमांडो हैं, जो आतंकवाद या नक्सलवाद से नहीं, बल्कि सामाजिक बुराइयों से लड़ते हैं. हम घर के कामों से कुछ वक़्त निकालकर समाज की बेहतरी में योगदान करते हैं.’ 

वाक़ई छत्तीसगढ़ की ये ‘सुपर पुलिस कमांडो’ (SPO) बेहतरीन काम कर रही हैं. इसके लिए इनकी जितनी सराहना की जाए, कम है.