महाराष्ट्र में हर साल न जानें कितने किसान आत्महत्या कर अपनी ज़िंदगी ख़त्म कर लेते हैं. राज्य में बढ़ती इन आत्महत्याओं को देखते हुए, हिंगलाजवाडी गांव की महिलाओं ने एक दृढ़ संकल्प लिया है. संकल्प गांव को ‘नो सुसाइड ज़ोन’ में बदल देने का.

3000 की जनसंख्या वाले इस छोटे से गांव में अब कुछ बड़े बदलाव होने जा रहे हैं. दरअसल, गांव के पुरुष दोपहर के वक़्त घर का काम करते हुए दिखाई देंगे. एक ओर जहां विष्णु कुंभर जहां पॉलट्री फ़ार्म साफ़ करते नज़र आ रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर अच्युत कटकटे सोयाबीन बिनने में व्यस्त हैं. इसके साथ ही दूसरे गांव के पुरुष बच्चों के पालन-पोषण में बिज़ी हैं. बताया जा रहा है कि इन महिलाओं का इतना अधिक दबदबा है कि ये मौजूद हों न हों, वहां की स्थिति कभी बिगड़ती नहीं है.

इसी बारे में बात करते हुए कटकटे बताते हैं कि गांव की महिलाएं सेल्फ़ हेल्प ग्रुप का इंस्टॉलमेंट जमा कराने शहर गई हुईं हैं. वहां से वो बाज़ार भी जाएंगी और अपने बिज़नेस और दुकानों के लिए सामान खरीदती हुई वापस आएंगी. अपनी पत्नी कोमलताई के बारे में बात करते हुए वो कहते हैं कि वो नेता है और मैं उसका अनुयायी हूं.’

कोमलताई और उसके जैसी अन्य महिलाएं गांव में वित्तीय क्रांति के लिए ज़िम्मेदार हैं. कृषि संकट से उभरने के लिए इन्होंने गांव में एक मॉडल विकसित किया है. इस मॉडल की ख़ासियत ये है कि सूखे और फ़सल की असफ़लता के बाद भी गांव में किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है. कोमलताई सहित गांव की महिलाओं ने न केवल घर के खर्चों का बीड़ा उठाया है, बल्कि खेती किसानी में भी हर दिन नए एक्सपेरिमेंट कर रही हैं.

किसान रेखा शिंदे बताती हैं, ‘हर वर्ष कम वर्षा और सूखा गांव या क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है, जिस कारण गांव के किसान लगातार सुसाइड कर रहे थे. क्षेत्र मेंढ़ती आत्महत्यों को देखते हुए हमने ठाना कि अब हम ऐसा नहीं होने देंगे और हमने अपने घरों की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हुए कसम खाई कि अब हम किसानों को नहीं मरने देंगे.’

गांव की महिलाओं ने संकल्प लिया है कि अगर कोई किसान आत्महत्या जैसा कदम उठाता भी है, तो भी उसका परिवार और बच्चा भूखा नहीं सोएगा. खेती-बाड़ी के लिए जब हमने घरवालों से थोड़ी सी ज़मीन की मांग की, तो शुरू-शुरू में ये सुनने को मिला कि महिलाएं सिर्फ़ घर के कामकाज के लिए होती हैं, खेतों की देख-रेख के लिए नहीं.

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अागे बताते हुए शिंदे कहती हैं कि गांव की महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी और हम सब अपनी बात पर अड़े रहे हैं. इसके बाद धीरे-धीरे हमने खेतों के छोटे से हिस्से में सब्ज़ी उगाना शुरू कर दिया. कम पानी, रिसोर्सेज़ और बिना किसी मदद से खेती शुरू की. खेती से फ़ायदा हुआ, परिवार के भरण-पोषण में तो मदद मिली ही कमाई भी बढ़ गई और बढ़ी कमाई से हमारे परिवार वालों का विश्वास भी हम पर बढ़ गया है.

अब इस गांव में करीब 200 सेल्फ़ हेल्प ग्रुप चल रहे हैं, जिसमें गांव की करीब 265 महिलाएं सदस्य हैं. सेल्फ़-हेल्प ग्रुप की मदद से गांव की महिलाएं मुर्गा पालन केंद्र, बकरी पालन, डेयरी व्यवसाय, कपड़े की दुकान सहित कई व्यवसाय चला रही हैं. कमल कुंभर को CII फ़ॉउंडेशन वुमन सम्मान 2017 और नीति आयोग सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है.