World’s Oldest Professor: अगर दिल में कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती. भारत में ज़्यादातर लोग नौकरी से रिटायर होने का इंतज़ार करते हैं और रिटायरमेंट के बाद ज़िंदगी आरामदायक तरीक़े से कैसे गुज़रे इसी बात की प्लानिंग में लगे रहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि लोग उम्र का हवाला देते हुए ख़ुद को किसी काम के क़ाबिल समझते ही नहीं. लेकिन 95 साल की प्रोफ़ेसर चिलुकुरी संतम्मा (Chilukuri Santhamma) लोगों की इस सोच को ग़लत साबित कर दिखाया है. उनके लिए उम्र सिर्फ़ एक शब्द है और रिटायरमेंट एक विदेशी कॉन्सेप्ट.

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सेंचुरियन विश्वविद्यालय में हैं प्रोफ़ेसर

प्रोफ़ेसर चिलुकुरी संतम्मा टीचिंग के अपने जुनून को पूरा करने के लिए कुछ ऐसा करती हैं जिसे सुन युवा भी हैरान रह जायेंगे. दरअसल, 95 साल की उम्र में संतम्मा अम्मा बैसाखी के सहारे चलती हैं. बावजूद इसके वो हर दिन छात्रों को पढ़ाने विशाखापट्टनम से विजयनगरम तक 120 किलोमीटर की यात्रा करती हैं. वो आंध्रप्रदेश के ‘सेंचुरियन विश्वविद्यालय’ में फ़िजिक्स की प्रोफ़ेसर हैं. वो पिछले 6 दशकों से यहां पढ़ा रही हैं. इसके साथ ही वो दुनिया की सबसे उम्रदराज प्रोफ़ेसर में से एक हैं.

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प्रोफ़ेसर संतम्मा की मेहनत, डेडिकेशन से छात्र बेहद प्रभावित हैं. वो किसी भी हालत में उनकी क्लास मिस नहीं करना चाहते, सभी छात्र उनकी क्लास का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. प्रोफ़ेसर संतम्मा की ख़ास बात ये है कि वो अपनी क्लास में कभी भी देरी से नहीं पहुंची हैं. छात्र उनके अनुशासन, डेडिकेशन और कमिटमेंट के कायल हैं. प्रोफ़ेसर संतम्मा के ज्ञान के भंडार को देखते हुए छात्र उन्हें ‘इन्साइक्लोपीडिया’ भी कहते हैं.

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असल ज़िंदगी में कौन हैं प्रोफ़ेसर संतम्मा

चिलुकुरी संतम्मा (Chilukuri Santhamma) का जन्म 8 मार्च, 1929 को आंध्रप्रदेश के मछलीपट्टनम में हुआ था. जब वो केवल 5 महीने की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया था. इसके बाद मामा ने ही उन्हें पाल-पोस कर बड़ा किया. सन 1945 में जब वो विशाखापट्टनम के एवीएन कॉलेज में इंटरमीडिएट की छात्रा थी तब उन्हें महाराज विक्रम देव वर्मा से फ़िज़िक्स के लिए ‘गोल्ड मेडल’ मिला था.

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प्रोफ़ेसर चिलुकुरी संतम्मा ने आंध्र विश्वविद्यालय से फ़िजिक्स में B.Sc Honors और माइक्रोवेव स्पेक्ट्रोस्कोपी में D.Sc (पीएचडी के समकक्ष) की उपाधि हासिल की है. इसके बाद सन 1956 में बतौर फ़िज़िक्स लेक्चरर ‘आंध्र यूनिवर्सिटी’ के ‘कॉलेज ऑफ़ साइंस’ में वे पढ़ाने लगीं. प्रोफ़ेसर संतम्मा ने अपने दशकों लंबे प्रतिष्ठित टीचिंग करियर में कई भूमिकाएं निभाई हैं.

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The New Indian Express से बात-चीत के दौरान प्रोफ़ेसर संतम्मा ने बताया कि, ‘मुझे उम्र से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, मेरी मां भी 104 की उम्र तक जीवित रही थीं. हमें हमेशा दिल और दिमाग़ को स्वस्थ रखने की कोशिश करनी चाहिए. मैं ख़ुद को अलबर्ट आइंस्टीन से कंपेयर नहीं कर सकती, लेकिन मैं मानती हूं कि मैं यहां किसी उद्देश्य से हूं और मेरा आख़िरी दम तक पढ़ाने के उद्देश्य है‘.

केंद्र सरकार के इन बड़े पदों पर किया काम

प्रोफ़ेसर चिलुकुरी संतम्मा केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों की लेक्चरार, प्रोफ़ेसर, रीडर और इन्वेस्टिगेटर भी रही हैं. वो केन्द्र सरकार के ‘काउंसिल ऑफ़ साइंटीफ़िक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR), यूनिवर्सिटी ग्रान्ट्स कमिशन (UGC) और डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (DCAT) में भी काम कर चुकी हैं. वो 60 साल की उम्र में सन 1989 में रिटायर हो गईं, लेकिन रिटायरमेंट नामक सरकारी टर्म उन्हें कतई पसंद नहीं था, इसलिए अपने फ़िज़िक्स पढ़ाने के पैशन को छोड़ नही सकीं.

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‘भगवद गीता’ पर लिख चुकी हैं क़िताब

प्रोफ़ेसर चिलुकुरी संतम्मा केवल टीचिंग ही नहीं करतीं, बल्कि वो एक लेखक भी हैं. उन्होंने वेदों, पुराणों और उपनिषदों पर एक क़िताब लिखी है, जिसका शीर्षक ‘Bhagavad Gita – The Divine Directive’ है. इस किताब में उन्होंने गीता के श्लोकों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था.

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मिल चुके हैं कई सम्मान

प्रोफ़ेसर चिलुकुरी संतम्मा को परमाणु स्पेक्ट्रोस्कोपी (Atomic Spectroscopy) और आणविक स्पेक्ट्रोस्कोपी (Molecular Spectroscopy) के उनके विश्लेषण के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं. साल 2016 में उन्होंने वयोवृद्ध वैज्ञानिक (Veteran Scientist) वर्ग में ‘गोल्ड मेडल’ हासिल किया था.

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