नीचे एक तस्वीर दी गई है, पहले आप उस तस्वीर को ध्यान से देखिये. उसके बाद बात करते हैं.
देख ली आपने तस्वीर! अब क्या आप उस तस्वीर में एक सिपाही को कैमरे के ऊपर बन्दूक ताने देख सकते हैं? ज़रा ध्यान से देखिये, क्या पता, झाड़ियों के झुरमुट में कहीं छुपा वो सिपाही आपको दिख जाए. उसको बन्दूक की नोक पर देखने की कोशिश कीजिये, वो आपकी तरफ़ पॉइंटेड है.
नहीं मिला, खैर, कोई बात नहीं, देखिये हम दिखाते हैं, वो सिपाही कहां छुपा बैठा है.
ये तस्वीर पहले विश्व युद्ध के दौरान खींची गई थी. ऐसी कई और तस्वीरें सामने आई हैं, जिन्हें यादगार बनाने के लिए एक किताब में छापा गया है. इस किताब को लिखा है Martin Pegler ने. इस किताब में इस बात का ज़िक्र है कि कैसे युद्ध के दौरान कैसे Sniper की तकनीक को अपनाया गया और कैसे उसका प्रयोग किया गया.
ऊपर की तस्वीर में आपको एक सिपाही Sniper की टॉप पहने खड़ा दिख रहा होगा. ये बचाव के लिए पहना जाता था, ताकि विरोधी टुकड़ियों के हमले से ख़ुद को Cover किया जा सके.
Snipers घंटों ऐसे ही झाड़ियों में छुपे रहते थे, वो एक ही Position में बैठ कर बिना एक ही भी गोली चलाये कई घंटों तक विरोधी सेना को देखते रहते थे.
ये टेकनीक 1914 के तुरंत बाद अपना ली गई थी. मार्टिन बताते हैं कि ब्रिटेन और उसके सहायक देशों का कोई प्लान नहीं था, न ही कोई ख़ास Sniper इंस्ट्रक्टर और ना ही सटीक दूरी पर निशाना लगाने वाले गोलीमार.
इन चीज़ों को सही से Organize करने में ब्रिटेन को काफ़ी समय लग गया. तब तक विरोधी ताक़तें हावी हो चुकी थीं.
आप अन्य तस्वीरों में भी ब्रिटेन के Snipers को Trained होते और खुफ़िया पोशाक पहने देख सकते हैं. सालों बाद ये तस्वीरें काफ़ी देखी जा रही हैं.
देखा आपने! युद्ध उतना आसान नहीं होता, जितना नेताओं के भाषणों में होता है. सदियों तक युद्ध का सबब याद रहता है.