सीरिया के डोमा शहर में कैमिकल यानि कि रासायनिक हथियारों का हमला और इस पर अमेरिका और मित्र देशों की जवाबी कारवाई. इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर से रासायनिक हथियारों के ख़तरे की तरफ विश्व का ध्यान आकर्षित किया है.
सीरिया में हुए इस कैमिकल अटैक की चपेट में बहुत से लोग आए. अस्पताल पहुंचाए गए ज़्यादातर लोगों का शरीर नीला हो गया था और वो सांस लेने में तकलीफ़ होने जैसी समस्याओं से ग्रसित थे. बताया जा रहा है कि इसमें करीब 60 लोगों ने अपनी जान गंवाई. वहीं अब पूरी दुनिया में कैमिकल हथियारों की चर्चा गरम है. आइए जानते हैं रासायनिक हथियारों के बारे में विस्तार से…
रासायनिक हमले में कैमिकल को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस तरह के हथियारों को ठोस, लिक्विड, गैस किसी भी रूप में प्रयोग किया जा सकता है. ये रसायन इतने घातक होते हैं कि इसके संपर्क में आते ही लोगों का शरीर जलने लगता है, या फिर उन्हें अजीब तरह की घुटन महसूस होने लगती है. अंतत: उनकी मौत हो जाती है. रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध से ही होता आ रहा है. रासायनिक हथियारों की हिस्ट्री भी जान लीजिए.
क्लोरीन गैस
क्लोरीन ऐसा कैमिकल है जो किसी को भी आसानी से मिल जाता है. इसका इस्तेमाल घरेलू कामों में भी होता है. क्लोरीन गैस का हथियार के रूप में प्रयोग नाज़ी सैनिकों ने 1915 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान बैटल ऑफ़ याप्रेस में किया था. इसकी वजह से 5 मिनट में ही हज़ारों सैनिकों की मौत हो गई थी. एक अनुमान के मुताबिक इस युद्ध में करीब 1.25 लाख टन के कैमिकल हथियारों का उपयोग किया गया था. इसने करीब 90 हज़ार सैनिकों की जान ले ली थी.
सारिन
सारिन एक ज़हरीली गैस है, जो सीधे तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है. 1995 में जापान के टोक्यो के एक रेलवे स्टेशन पर इसे छोड़ा गया था. सारिन गैस के इस हमले में करीब 12 लोगों की मौत हो गई थी और 5000 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
मस्टर्ड गैस
ये गैस आपके कपड़ों में छेद कर आपके शरीर को नुकसान पहुंचाती है. इसका असर 24 घंटे में ही दिखाई देने लगता है. इसके कारण इंसान को सांस लेने में बहुत दिक्कत हो सकती है. इसकी खुशबू सरसों के भुने दानों की तरह होती है. 1988 में इराक- ईरान युद्ध के दौरान सद्दाम हुसैन ने कुर्द सैनिकों के ख़िलाफ इसका इस्तेमाल किया था.
ताबुन
ये भी सारिन गैस जीतना ही ख़तरनाक कैमिकल होता है. इसका इस्तेमाल पहले विश्व युद्ध में बमों में भरकर किया जाना था, लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा हो न सका.
वीएक्स
वीएक्स की खोज ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने कीटनाशक के तौर पर की थी, मगर ये बहुत ही ख़तरानाक था. इसलिए इसे रासायनिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा. इसका प्रयोग गैस और तेल की अवस्था में किया जाता है, जिसका असर लंबे समय तक रहता है.
फ़ॉस्जीन
फ़ॉस्जीन कैमिकल अब तक का सबसे ख़तरनाक कैमिकल हथियार है. इसके संपर्क में आते ही लोगों की सांस फूलने लगती हैं और कफ़ बनने लगता है.
रासायनिक हथियारों की भयानकता को देखते हुए इन पर रोक लगाने की मांग शुरुआत से होती रही है. साल 1997 में संयुक्त राष्ट संघ ने मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय रासायनिक हथियार संधि लागू की. इसकी निगरानी Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons नामक संस्था कर रही है. इसे करीब 180 देशों ने मान्यता दी है. मगर जिस तरह से एक बार फिर से रासायनिक हथियारों का ख़तरा सिर पर मंडराने लगा है. इसने दुनियाभर के लोगों की चिंता बढ़ा दी है.