दिल्ली से तकरीबन 600 किलोमीटर दूर एक गांव है कलपा. दुनिया भर के सैलानी यहां पहाड़ी ख़ूबसूरती का आनंद लेने पहुंचते हैं. कैलाश पर्वत के लिए मशहूर किन्नौर ज़िले से ये महज़ 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. यहां से पर्वतों का अद्भूत नज़ारा देखने को मिलता है. लेकिन कलपा की एक और कहानी है, जो भारत-चीन युद्ध से जुड़ी है.
हिमाचल प्रदेश का ये छोटा सा गांव वैसे तो पूरी दुनिया में कलपा के नाम से जाना जाता है, लेकिन 1962 में हुई इंडो-चाइना वॉर से पहले इसका नाम चीनी(Chini) था. तिब्बती मठ और हिंदू मंदिरों के लिए प्रसिद्ध इस गांव के नामकरण की ये कहानी यहीं के एक बाशिंदे ने बतलाई है.
इनका नाम है तोताराम, जो इस गांव के मशहूर डाक बंगले चीनी के केयर टेकर हैं. उन्होंने बताया कि, कुछ दशक पहले इसका इस गांव का नाम चीनी हुआ करता था. चीनी, दुनी और उसके आस-पास के गांव कलपा तहसील में आते थे. Reckong Peo जिसे आज किन्नौर ज़िले के सबसे आकर्षित क्षेत्र में गिना जाता है, तब ये उतना फ़ेमस नहीं था.
उन्होंने बताया कि भारत और चीन के युद्ध के बाद इस गांव का नाम बदलने का निर्णय लिया गया, क्योंकि चीनी हिंदी भाषा में चीन के लोगों के संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यहां के देशभक्त लोगों को इसका नाम बदल कर कलपा रखने पर कोई आपत्ति भी नहीं हुई. इस तरह इसका नाम चीनी से कलपा हो गया.
इतिहास के और पन्ने खंगालने पर पता चला कि, 1960 में चीनी में पहला पुलिस स्टेशन खुला था. उससे पहले रामपुर में ही पुलिस स्टेशन था, क्योंकि यहां के लोग बहुत ही शांतिप्रिय थे और उन्हें इसकी ज़रूरत नहीं थी. लेकिन बाद के दिनों में कुछ चोरी की वारदातें होने के कारण यहां पुलिस स्टेशन बना दिया गया. पहला स्कूल भी चीनी में 1900 की शुरुआत में खुला था. ख़ास बात ये है कि आज़ाद भारत के पहले वोटर श्याम सरन नेगी इसी गांव के हैं.
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