रंग-बिरंगे चित्रों वाली किताबें और दादी-नानी की कहानियों के साथ ही अपने देश में कई नन्हें बच्चे उम्र के पहले पड़ाव से गुज़रते हैं. बच्चों की किताबों से शुरू हुआ ये सफ़र आगे चलकर नंदन, चंपक और चाचा चौधरी जैसी कॉमिक्स से होकर उपन्यासों की दुनिया में प्रवेश करता है. कुछ चंद शब्द और किताबें ज़िंदगी में आपको कई पाठ पढ़ा जाती हैं. हालांकि मॉर्डन युग में घरों में किताबों की जगह टैबलेट या किंडल ने ले ली है. मगर आज भी कई लोग ऐसे हैं, जो उपन्यासों के चलते पारंपरिक रीडर्स बने हुए हैं.
लेकिन किताबों का ये दौर शुरू कब हुआ? पिछली शताब्दियों में बच्चों के लिए दुनिया का ककहरा सीखने के लिए पहली किताब आखिर कौन सी थी? क्या वे भी हमारी तरह ए से एप्पल, बी से बॉल सीखते थे?
दरअसल एक रिपोर्ट के मुताबिक, छोटे बच्चों के लिए सीखने वाली पहली किताब सबसे पहले 1658 में न्यूरेमबर्ग में प्रकाशित हुई थी. इसे लैटिन और जर्मन भाषा में प्रकाशित किया गया था. प्रकाशित होने के कुछ ही समय बाद चार्ल्स हुल नाम के एक शख़्स ने इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था.
जैन कोमेंस्की उत्तरी मोराविया (वर्तमान में चेक रिपब्लिक) में पैदा हुए थे. वे एक शिक्षक थे और एजुकेशनल थ्योरी के बारे में लिखा करते थे. वो इस बात पर ख़ास ज़ोर दिया करते थे कि बच्चों को एक ऐसी शिक्षा उपलब्ध कराई जाए, जिसमें शरीर की इंद्रियों का ज़रूरी योगदान हो. वे एक ऐसी किताब लिखना चाहते थे, जिससे अलग-अलग क्षमताओं के बच्चे भी आसानी से सहज हो सकें.
बच्चों को शिक्षित करने वाली दुनिया की ये पहली किताब अपने आप में बेहद दिलचस्प है. इस किताब में जानवरों की आवाज़ को Alphabet के रूप में पेश किया गया है. मसलन जानवरों के मुंह से निकलने वाली आवाज़ के द्वारा बच्चों को शब्दों से परिचित कराया जाता था.