‘सिविल सर्विसेज़’ हर हिन्दुस्तानी का ख़्वाब होता है. हर साल लाखों लोग सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा देते हैं, लेकिन कुछ ही ख़ुशनसीब इस मुकाम तक पहुंच पाते हैं. हमें आज भी कई उदाहरण देखने को मिल जायेंगे, जिन्होंने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए न जाने कितने त्याग किए होंगे. घंटों, महीनों और कई सालों तक एक छोटे से कमरे में देखे गए उन सपनों के बारे में कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि वो कड़ी मेहनत किसी दिन एक ज़रूरतमंद के काम आएगी.
‘सिविल सर्विसेज़ की नौकरी बेहतरीन के साथ-साथ चैलेंजिंग भी है. एक अधिकारी को हर वक़्त चौकन्ना रहना होता है. जनता से जुड़ी हर छोटी से लेकर बड़ी समस्या का बारीकी से समाधान करना होता है.
2015 बैच के आईएएस अधिकारी स्वप्निल तेंबे उन्हीं में से एक हैं. स्वप्निल इस समय मेघालय के वेस्ट गारो हिल्स ज़िले के Dadenggre में सब-डिविज़नल ऑफ़िसर हैं. बेहद कम समय में स्वप्निल इस ज़िले में बेहद पॉपुलर हो चुके हैं. इस सुदूरवर्ती ज़िले के लोग उनके काम करने के तरीके से बेहद ख़ुश हैं.
इस ज़िले का कार्यभार संभालने के साथ ही शिक्षा उनकी पहली प्राथमिकता रही है. सबसे पहले उन्होंने वहां के लोगों की समस्याओं को करीब से जानने के लिए उनके साथ दोस्ताना संबंध बनाये. इसके बाद ज़िले के बदहाल हो चुके 100 आंगनवाड़ी केंद्रों का चुनाव कर हर आंगनवाड़ी केंद्र पर 1 लाख की धनराशि ख़र्च कर उसे बुनियादी सुविधा युक्त बनाया. इसका सबसे बड़ा फ़ायदा ये हुआ कि इन केंद्रों में बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली.
इसके बाद स्वप्निल तेंबे ने प्राथमिक स्कूलों की बदहाली की समस्या पर काम करना शुरू किया. इन स्कूलों की समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने अपनी तरफ़ से हर संभव प्रयास किये. हाल ही में स्वप्निल ने एक स्कूल को बनाने के लिए अपनी 2 महीने की सैलरी तक दान कर दी.
द बेटर इंडिया से बात करते हुए स्वप्निल तेंबे ने कहा, ‘जब मैंने Dadenggre के एसडीओ (सिविल) के रूप में कार्यभार सम्भाला तो मैं सबसे पहले सरकारी स्कूलों को देखना चाहता था. मैं हर सुबह स्कूलों के निरीक्षण पर निकल पड़ता था. इस दौरान मैंने देखा कि यहां पर अधिकतर लोअर प्राइमरी स्कूल ही हैं. जो दो तीन कमरे के बने हुए थे जिसमें से 30-40 छात्र, जबकि 2 से 3 टीचर ही थे. बावजूद इसके इन स्कूलों की हालत बेहद ख़राब थी.
इस ज़िले के सभी सुदूरवर्ती गांवों के सरकारी स्कूलों की हालत वाकई में बेहद ख़राब थी ख़ासकर पहाड़ी इलाकों के स्कूलों की. यहां की दूसरी सबसे बड़ी समस्या थी स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता का अनपढ़ होना. यही कारण था कि ये लोग अपने बच्चों के लिए भी अच्छी शिक्षा की मांग नहीं कर पाए. ये गांव बिजली, पानी और सड़क जैसी बेसिक सुविधाओं से कोसों दूर थे. यही हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी.
ऐसे में स्वप्निल तेंबे के पास इन स्कूलों की बदहाल हालत को सुधारने के लिए पैसा सबसे बड़ी समस्या थी. आम जनता पर इसका बोझ न पड़े इसके लिए उन्होंने प्रोजेक्ट स्टार की मदद से सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार की योजना बनाई. इसके लिए उन्होंने क्राउडफंडिंग और कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) पहल के माध्यम से फ़ंड जुटाया. इसके बाद ज़िले के हर विभाग के बड़े अधिकारियों और आम जनता को भी इस मिशन में शामिल किया गया.
प्रोजेक्ट स्टार के तहत स्वप्निल तेंबे ने सबसे पहले Dadenggre के सोंगडिंग्रे गांव के इसी लोअर प्राइमरी स्कूल को गोद लिया. इसी स्कूल के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए उन्होंने अपने दो महीने की सैलरी दान कर दी थी. इस दौरान उन्होंने ‘मिलाप’ कैंपेन के ज़रिये सोशल मीडिया से 2 लाख रुपये जुटाए. स्वप्निल ने साथ ही आम लोगों के लिए भी #AdoptASchool कैंपेन शुरू किया है, जिसमें अब कई लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.
आज सोंगडिंग्रे गांव का वो लोअर प्राइमरी स्कूल कुछ इस तरह दिखता है.
स्वप्निल तेंबे के विज़न और कड़ी मेहनत के दम पर आज इस ज़िले के स्कूलों की दिशा और दशा सुधर चुकी है. स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी है. ये स्कूल आज किसी प्राइवेट स्कूल से कम नहीं लगते हैं.