भारत में ’26 जनवरी’ या ‘गणतंत्र दिवस’ या ‘रिपब्लिक डे’ को मनाने का तरीका सालों से उसी तरह चलता आ रहा रहा है, जैसे सन 1950 में पहली बार मनाया गया था. फिर चाहे वो ‘अमर जवान ज्योति’ पर फूल बिछाने की परंपरा हो या फिर देश के राष्ट्रपति द्वारा झंडारोहण करना हो. इस दिन को भारतीयों द्वारा बहुत धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है. भले ही गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर होने वाली परेड, जुलूस और झांकी एक से होते हैं और सबको इनके बारे में पता भी होगा, लेकिन यह जान कर बहुत ही आश्चर्य होता है कि हम में से कई लोगों को इनके महत्व के बारे में कुछ भी नहीं पता है.
चलिए हम आपको गणतंत्र दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों में से एक ’21 तोपों की सलामी’ के महत्व के बारे में बताते हैं. गणतंत्र दिवस पर दर्शकों को आकर्षित करने वाला ये बहुत ही गौरवपूर्ण पल होता है जब देश के राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इसकी खास बात यह है कि 21 तोपों की ये सलामी 52 सेकंड तक चलने वाले राष्ट्रगान के दौरान 2.25 सेकंड के अंतराल पर दी जाती है. इसके लिए अभी भी ब्रिटिश शासन की 7 तोपों का इस्तेमाल किया जाता है.
आइये आपको बताते हैं इस सलामी की अनूठी कहानी
21 तोपों की सलामी देने की शुरुआत ब्रिटिश काल में 17वीं शताब्दी में तब हुई जब नौसेना ने समुद्र में दुश्मन को शांतिपूर्ण वातावरण बनाये रखने के लिए जहाज पर मौजूद हथियारों से हवाई फायर किया और उनसे भी उनकी सहमति जताने के लिए ऐसा ही करने को बोला. उस टाइम तोपों को लोड और अनलोड करने में काफी समय लगता था इसलिए उन्होंने बंदूकों से फायर किया. ब्रिटिश सैनिकों द्वारा किया गया यह प्रयास एक परंपरा के रूप में अपने दुश्मन के प्रति सम्मान दिखाने के लिए किया जाने लगा.
लेकिन अभी भी आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि केवल 21 तोपों की ही सलामी क्यों?
इस सवाल का जवाब यह है कि उस समय ब्रिटिश युद्धपोतों पर, बाइबिल में उल्लेखित 7 अंक का विशेष महत्व होने के कारण एक स्थान पर 7 हथियारों को एक साथ रखा जाता था. इसलिए उस समय शांति का सन्देश देने के लिए 7 हथियारों से 3-3 बार समुद्र में फायर किया गया था और तब से ही ये21 तोपों की सलामी देने का रिवाज़ शुरू हुआ.
भारत में कब हुई इस परंपरा की शुरुआत
हांलाकि भारत में इस परंपरा की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान ही हुई थी और आज़ादी से पहले यहां स्थानीय राजाओं और जम्मू-कश्मीर जैसी रियासतों के प्रमुखों को 19 या17 तोपों की सलामी दी जाती थी.