जलियांवाला बाग याद है आपको? अमृतसर का वही बाग, जो हज़ारों बेकसूर लोगों की हत्या का गवाह बना था. इस हत्याकांड को आज 99 साल हो गए. यहीं मौजूद है शहीदों का वो कुआं, जिसमें सैंकड़ों लोग अपनी जान बचाने के लिये कूद गये थे. उस दिन ये कुआं पानी से नहीं, लहू से लबालब था.
उस वक़्त जलियांवाला बाग करीब 6-7 एकड़ में फैला हुआ था और यहां पहुंचने का एक रास्ता था. तीन तरफ़ से ये Buildings से घिरा हुअा था. उस दिन बैसाखी का त्यौहार था और ज़्यादातर लोग बैसाखी मनाने यहां पहुंचे थे. वहीं दूसरी तरफ कुछ नेता भीड़ को संबोधित कर रहे थे. वो रोलेक्ट एक्ट और अपने कुछ नेताओं को गिरफ़्तार करने का विरोध कर रहे थे.
मगर तभी जनरल डायर अपने सिपाहियों के साथ वहां आता है और करीब 15-20 हज़ार लोगों से खचाखच भरे इस बाग में मौजूद निहत्थे मासूम भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने का हुक्म दे देता है. गोलियां तड़ातड़ चल रही थीं, लोग अपनी जान बचाने के लिये इधर-उधर भाग रहे थे, कुछ लोगों ने दीवारें फांदने की कोशिश की, नाकाम रहे. पूरे बाग में सिर्फ़ रोने-चिल्लाने और गोलियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी.
जब उन्हें भागने की कोई जगह नहीं मिली, तो वो बाग में मौजूद कुएं में कूदना शुरू कर देते हैं. उनकी देखम-देख लोगों का सैलाब उसी ओर मुड़ जाता है. सभी उस कुएं में छलांग लगा देते हैं और कुछ ही देर में कुआं खू़न और बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की लाशों से भर जाता है.
कहा जाता है कि ये अंग्रेज़ों द्वारा किया गया उस सदी का सबसे बड़ा नरसंहार था. सरकारी आकंड़ों के इतर, कुछ लोगों का कहना है कि इस हत्याकांड में उस रोज़ तकरीबन 1000 लोग मौत के घाट उतारे गए थे और हज़ारों घायल हुए थे. बताया जाता है कि उस दिन डायर ने 1600 राउंड गोलियां चलवाईं थीं, और अगर गोलियां ख़त्म न होती, तो वो इसे जारी रखता.
इसके बाद हंटर कमिशन गठित किया जाता है और जनरल डायर को अपने पद से हाथ धोना पड़ता है. लेकिन इससे उसके इस कुकृत्य की सज़ा पूरी नहीं हो जाती. इस नरसंहार की इजाज़त देने वाले पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओड्वायर को उधम सिंह इसका दोषी मानते हैं और कई वर्षों बाद इग्लैंड जाकर ओड्वायर की गोली मारकर हत्या कर देते हैं.
वहीं रविंद्रनाथ टैगौर विरोध स्वरूप नोबल पुरस्कार वापस कर देते हैं. लेकिन इस कांड में शहीद हुए लोगों की कुर्बानी ज़ाया नहीं गई. इसके बाद गांधी और तमाम नेताओं ने अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया. इस नरसंहार के इतने साल बीत जाने के बावजूद इग्लैंड के किसी भी नेता या फिर राजा ने अब तक सार्वजनिकि तौर पर माफ़ी नहीं मांगी है. यही कारण है कि हर वर्ष पंजाब में लोग बैसाखी मनाने के साथ ही इस हत्याकांड का विरोध करते हुए कई जगह प्रदर्शन करते हैं.
जलियांवाला बाग में आज भी गोलियों के निशान वैसे ही बने हुए हैं और शहीदों के उस कुएं को देखकर आज भी ऐसा लगता है, जैसे वो आज भी लोगों की लाशों से भरा हुआ है. अब इस कुएं के चारों ओर से दीवार उठा कर इसे सुरक्षित कर दिया गया है. बीच–बीच में अंदर देखने के लिए खाली जगह छोड़ दी गई है, साथ ही एक गुंबदनुमा इमारत बना दी गई है.