हम भारतीयों की कई आदतें विश्व के कई लोगों से अलग हैं. चाहें वो हाथ से खाना हो या रूखा-सूखा न खाकर तीखा-खट्टा खाना.
एक और आदत है हम भारतीयों की, जो दुनिया के ज़्यादातर लोगों से नहीं मिलती. वो है टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल न कर, पानी का इस्तेमाल करना. ज़्यादातर भारतीय ‘करने’ के बाद ‘धोना’ ही पसंद करते हैं, ‘पोछना’ नहीं.
लेकिन सवाल उठता है क्यों? इतिहास की किताबों से हमें पता चलता है कि राजा-महाराजा दीर्घशंका से निवृत्त होकर, सिल्क या मखमल के कपड़े से पोछते थे, पानी से धोते नहीं थे.
सवालों और जवाबों के ख़ज़ाने, Quora पर भी एक शख़्स ने ये सवाल पूछा कि ज़्यादातर भारतीय पॉटी करने के बाद टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल क्यों नहीं करते?
ये ‘पहले मुर्गी आई या पहले अंडा’ कैटरगरी का ही सवाल है. पर जो जवाब मिले, वो काफ़ी दिलचस्प थे.
1. जो मज़ा पानी से धोने में है वो कागज़ से पोछने में कहां!
Sonia Samantaray ने लिखा, कि विदेशी कागज़ क्यों यूज़ करते हैं, ये बात समझ के परे है.उदाहरण भी गज़ब का दिया. दोनों हाथों पर Nutella (Chocolate Bread Spread) लगा लो और फिर एक को टिश्यू से पोछ लो और दूसरे को पानी से. कागज़ से पोछे जाने के बाद भी Nutella के अवशेष बाकी रह जाते हैं. अब इसी जगह पॉटी को Imagine कर लो. Yuck!
2. पर्यावरण और जलवायु के कारण सबकी हैं अलग-अलग आदतें
Rajeev Gupta ने जबर उदाहरण देते हुए कहा कि जहां पानी नहीं होगा, वहां लोग किसी भी चीज़ का इस्तेमाल करेंगे (घास, जानवर की खाल). इस तरह टॉयलेट पेपर ईजाद किया गया. भारत जैसे देश में, जहां के ज़्यादातर हिस्सों में सालभर पानी उपलब्ध है, वहां लोग उसी का इस्तेमाल करेंगे.
एक और बात, भारतीय खाने के लिए और सफ़ाई के लिए, अलग-अलग हाथों का इस्तेमाल करते हैं.
3. क्योंकि पानी का काम तो पानी ही करता है न?
फ़र्ज़ करिये कि आपके बच्चे ने कार्पेट पर या फिर आपके हाथ पर पॉटी कर दी. क्या आप सिर्फ़ टिश्यू पेपर से पोछकर बैठ जायेंगे, नहीं न?
हम तो सोच भी नहीं सकते, पॉटी के अवशेष के साथ रोज़मर्रा की ज़िन्दगी जीने का. क्रांतिकारी विचार रखें हैं Poulomi Hari ने.
4. क्या टिश्यू से पोंछकर साफ़ की गई थाली में आप खाना खा लेंगे?
सवाल किया है एक अन्य Quora यूज़र, Anand.C.K.Shashidhar ने. इन्होंने एक बहुत अच्छी बात ये भी कही कि ये पूरी तरह Personal Hygiene की बात है. पानी से सफ़ाई यानि पूर्ण सफ़ाई.
इस बात से तो शायद ही किसी को ऐतराज़ होगा.
5. सीधी बात, नो बकवास
इसे खाने के बाद तो
इसमें आग लग ही जानी है!
ये उत्तम विचार है, Somesh Joshi का. टैलेंटेड लड़का है!
6. एक बंदे ने बताया निजी अनुभव
B.Tech छात्र Shashwat Narayan ने बताया कि क्लास के दौरान उसे प्रेशर आ गया. वो भागकर गया और पानी चेक किये बिना नित्य कर्म से निवृत्त हुआ. इसके बाद उसे पता चला कि उस टॉयलेट का फ़्लश, जेट-स्प्रे दोनों ख़राब थे. इसके बाद दिमाग़ लगाकर उसने अपने नोटबुक के कुछ पेज फाड़े, ख़ुद को क्लीन किया और बाहर निकल गया. पर उसे अजीब लग रहा था. इसके बाद वो दूसरे वॉशरूम में गया, पानी चेक किया और ख़ुद को पानी से साफ़ किया. तब कहीं जाकर उसने नॉर्मल महसूस किया.
7. भारतीयों के लिए पानी ही ठीक है
भारतीयों की साफ़-सफ़ाई की आदतों पर बात करते हुए Santhosh Venkateshaiah का कहना है कि टॉयलेट पेपर से नालियां जाम होने की समस्या बढ़ेगी, बेहतर हो कि हम भारतीय पानी का ही इस्तेमाल करें.
8. क्योंकि हम धार्मिक हैं और साफ़-सफ़ाई को लेकर आसक्त भी
ये तो सच है जी. ज़माने से ऐसा ही होता आ रहा है. कोई कितना भी गंदगी से रहता हो या आलसी हो, पर ज़्यादातर भारतीय पानी ही यूज़ करते हैं. धर्म को न मानने वाला भी साफ़-सफ़ाई को लेकर आसक्त होता है.
हर धर्म में साफ़-सफ़ाई रखने की बात कही गई है और ज़्यादातर भारतीय धार्मिक हैं.
हम पर्यावरण संरक्षण में विश्वास करते हैं.
टॉयलेट पेपर यानि कि पेपर, जो कि पेड़ों से बनते हैं. हम पर्यावरण संरक्षण में विश्वास करते हैं और इसलिये पानी का इस्तेमाल करते हैं.
Anjnesh Sharma के ये बिंदु विचारणीय हैं.
ये सवाल सालों से हमारे बीच है, पर जानकारी के लिए सिर्फ़ भारतीय ही नहीं, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फ़िलीपीन्स और मलेशिया के लोग भी पानी का इस्तेमाल करते हैं.
टॉयलेट पेपर का आविष्कारक है चीन और चीनी भी अपने घरों में पानी और पेपर दोनों ऑपशन रखते हैं.
हमारी मानें तो ये इंसान के ऊपर है कि वो ‘पोछना’ चाहता है या ‘धोना’. ये कहना कि पानी का इस्तेमाल करना पिछड़ेपन की निशानी है, ग़लत है.