‘मां बाघेश्वरी मंदिर’ का वो ‘अमृत कुंड’, जहां कभी गिरी थीं अमृत की बूंदें

Nripendra

Bageshwari mata Temple in Sagur Bhagur: अपने लंबे इतिहास के साथ-साथ भारत भूमि आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के लिए भी जानी जाती है. वहीं, आधुनिक समय में बनाये गए मंदिरों के अलावा आपको यहां प्राचीन काल से जुड़े हज़ार साल पुराने मंदिर भी दिख जाएंगे, जो अपनी मान्यताओं और वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं. 

इसके अलावा, भारत में आपको पौराणिक काल से जुड़े कई धार्मिक स्थल भी नज़र जाएंगे, जो दूर दराज के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर खींचने का काम करते हैं. इन स्थलों में वो कुंड भी शामिल हैं, जिनका संबंध पौराणिक काल से बताया जाता है और अपनी विशेष ख़ासियत की वजह से प्रसिद्ध हैं.

इस कड़ी में हम आपको मध्य प्रदेश एक ऐसे कुंड के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका संबंध पौराणिक काल से बताया जाता है. 

आइये, विस्तार से जानते हैं मां बाघेश्वरी मंदिर के (Bageshwari mata Temple in Sagur Bhagur Madhya Pradesh) अमृत कुंड के बारे में. 

मां बाघेश्वरी मंदिर (Bageshwari mata-Sagur-Bhagur)  

हम जिस अमृत कुंड के बारे में आपको बताने जा रहे हैं वो मध्य प्रदेश के खरगौन ज़िले के सगुर भगुर नाम के स्थल पर मौजूद मां बाघेश्वरी के मंदिर परिसर में है. माता बाघेश्वरी के मंदिर को सगुर-भगुर (Sagur Bhagur Madhya Pradesh) मंदिर भी कहा जाता है. वहीं, मां बाघेश्वरी मां दुर्गा के एक रूप हैं. 

वैसे तो यहां (Sagur Bhagur Temple) रोज़ाना माता के दर्शन के लिए भक्तों का आगमन होता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का जमावड़ा देखने लायक होता है.  

नवरात्र से पहले लगता है मेला   

Scoopwhoop से हुई बातचीत में स्थानीय निवासी साधना यादव ने बताया कि यहां नवरात्र से पहले चौदस और पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. वहीं, नवरात्र के दौरान यहां 9 दिन तक कुंड में स्नान करने के लिए मध्य प्रदेश के अलावा, आसपास के राज्यों से भी श्रद्धालुओं का आगमन होता है. 

उन्होंने आगे बताया कि यहां माता के दो मंदिर हैं, एक छोटी माता और दूसरा बड़ी माता. छोटी माता की तरह ही बड़ी माता के मंदिर परिसर में भी अमृत कुंड मौजूद है. उनका कहना है कि मंदिर में बड़ी माता एक दिन में तीन रूप धारण करती हैं, सुबह बाल कन्या का, दोपहर युवावस्था के दौरान का और शाम को माता का. 

पौराणिक काल से जुड़ा है यहां का अमृत कुंड 

मंदिर परिसर में मौजूद अमृत कुंड पौराणिक काल से जुड़ा बताया जाता है. ऐसी मान्यता है कि एक बार राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने काट लिया था. इसके बाद इलाज के लिए वैद्यराज धवंतरी ने अपनी दो दासियों सगरी-भगरी को अमृत कलश लाने के लिए भेजा था. वहीं, जब दो दासियां कलश लेकर वैद्यराज के पास जा रही थीं, तो माता बाघेश्वरी मंदिर के पास अमृत की कुछ बूंदे गिर गईं थीं, जिससे कुंड का जल रोगनाशक हो गया. 

वहीं, इससे जुड़ी दूसरी मान्यता ये है कि जब राजा परीक्षित के इलाज के लिए वैद्यराज धवंतरी को बुलाया गया, तो उनके साथ दो वैद्य और आए थे, जिन्हें वैद्यराज ने अमृत औषधि लाने के लिये भेजा था. वहीं, अमृत औषधि लाते वक़्त तक्षक नाग ने सगरी भगरी नाम की बुढ़िया का रूप धारण किया और उन वैद्यों को कहा कि राजा परीक्षित का देहांत हो गया है. ये सुनते ही अमृत कलश वहीं गिर गया और कुंड बन गया और उस जगह का नाम पड़ा सगुर-भगुर.

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रोग मुक्त करता है अमृत कुंड 

इस बात में कितनी सच्चाई है इसका कोई सटीक प्रमाण तो मौजूद नहीं है, लेकिन यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि अमृत कुंड का जल रोग मुक्त करता है. ऐसी मान्यता है कि अगर लगातार 5 सप्ताह तक सोमवर की रात और मंगलवार की सुबह को इस कुंड में स्नान किया जाये, तो त्वचा पर सफ़ेद दाग, कुष्ठ रोग, लकवा व मानसिक रोग से मुक्ति मिल सकती है.

तंत्र साधना 

बातचीत में स्थानीय निवासी साधना यादव ने ये भी बताया कि यहां नवरात्र से पहले चौदस, अमावस्या और नवरात्र के दौरान तंत्र साधना भी की जाती है. इस दौरान आसपास के गांव से तांत्रिक अपने समूह के साथ यहां तंत्र क्रिया के लिए आते हैं. 

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