भारत में कई प्राचीन मंदिर हैं. इन मंदिरों का इतिहास बेहद पुराना है. ये मंदिर प्राचीन होने के साथ ही रहस्यों से भरे हुए हैं. उत्तराखंड के श्रीनगर से क़रीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मां धारी देवी के प्राचीन मंदिर को चमत्कारिक मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर में हर दिन एक चमत्कार होता है, जिसे देखकर भक्त हैरान हो जाते हैं.

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ये प्राचीन मंदिर सिद्धपीठ ‘धारी देवी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है. धारी देवी का ये पवित्र मंदिर बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है. काली माता को समर्पित ये मंदिर झील के बीचों-बीच स्थित है. इसके बारे में मान्यता है कि, मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती हैं. धारी देवी माता पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक भी मानी जाती है.

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, केदारनाथ में हज़ारों साल पहले आया प्रलय धारी देवी के ग़ुस्से का ही नतीजा था. इस दौरान अलकनंदा नदी में आई भीषण बाढ़ में कालीमठ मंदिर बह गया था. मंदिर में मौजूद मां धारी देवी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग अलकनंदा नदी में बहकर ‘धारो गांव’ के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गया. ये मूर्ति तब से यहीं पर मौजूद है और श्रद्धालु दूर-दूर से देवी मां के दर्शन के लिए यहां आते हैं. इस मूर्ति की निचला आधा हिस्सा कालीमठ मंदिर में स्थित है, जहां माता काली के रूप में आराधना की जाती है.

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इस मंदिर का अद्भुत रहस्य 

दरअसल, इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है. ऐसा दावा किया जाता है मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नज़र आती है. ये नज़ारा वाकई हैरान कर देने वाला होता है.

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मंदिर के पुजारियों के मुताबिक़, मंदिर में मां काली की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है. कालीमठ एवं कालीस्य मठों में मां काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है, लेकिन धारी देवी मंदिर में मां काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है. मंदिर में मां धारी की पूजा-अर्चना धारी गांव के पंडितों द्वारा ही की जाती है. इस मंदिर में के 3 पंडित भाईयों द्वारा 4-4 माह के लिए पूजा-अर्चना की जाती है.

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बता दें कि ये प्राचीन मंदिर झील में पूरी तरह डूब गया था, बावजूद इसके भक्तों की आस्था कम नहीं हुई. कई साल पहले मां धारी देवी की प्रतिमा उसी स्थान पर अपलिफ्ट कर पानी के बीचों बीच बने एक अस्थायी मंदिर में स्थापित की गयी थी. आज झील के ठीक बीचों-बीच एक शानदार मंदिर बन चुका है.

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इस मंदिर में स्थित प्रतिमाएं पौराणिक काल से ही यहां विधमान हैं. यहां हर साल भारी संख्या में भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर में हर साल कई त्योहार भी मनाए जाते हैं. दुर्गा पूजा व नवरात्रि के समय मंदिर में विशेष पूजा आयोजित की जाती है. प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्री में हज़ारों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं के लिए दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं. मंदिर में सबसे ज़्यादा नवविवाहित जोड़े अपनी मनोकामना हेतु मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं.

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