Netflix पर क़ुस्तुनतुनिया की जीत पर बनी एक वेब सीरीज़ ‘Rise of Empires: Ottoman’ है, जिसके एक ख़ास दृश्य में सुल्तान मेहमद द्वितीय तोपों से गोले छोड़ती अपनी सेना के साथ शहर की दीवार के पास खड़े होकर 10 साल पहले अपने पिता सुल्तान मुराद द्वितीय के साथ हुई अपनी बात को याद करते हैं. वो याद करते हैं कि 1443 में किस प्रकार उनके पिता ने इसी दीवार के सामने खड़े होकर उनसे कहा था कि क़ुस्तुनतुनिया संसार का दिल है, जो भी इसे जीतेगा, वो दुनिया पर राज करेगा. उनके पिता ने सुल्तान मेहमद से कहा था कि यह दीवार शहर की ओर बढ़ने वाली हर शक्ति को रोकती आई है.
सुल्तान मेहमद द्वितीय ने अपने पिता से कहा था कि आप क़ुस्तुनतुनिया की इस दीवार को गिरा क्यों नहीं देते हैं. तब उनके पिता ने कहा था, ‘ऐसा कोई हथियार नहीं बना, जो इस दीवार को नेस्तनाबूद कर सके.’
तोपों ने दिलाई ऐतिहासिक जीत
अपने पिता को जवाब देते हुए सुल्तान मेहमद ने कहा था, ‘मैं इस दीवार को जरूर गिराऊंगा. मेरे सुल्तान बनते ही मैं क़ुस्तुनतुनिया पर अपनी जीत दर्ज करूंगा.’ कहते हैं कि जिस गरज के साथ सुल्तान मेहमद अपनी फ़ौज के साथ इस शहर में दाख़िल हुए थे, वैसी गरज शायद किसी ने सुनी नहीं थी. इतिहासकार बताते हैं कि वहां मौजूद पहली बार किसी ने एक साथ इतनी तोपें देखी थीं, जो लगभग 60 से 70 होंगी.
इतिहासकार बताते हैं कि क़ुस्तुनतुनिया पर उस्मानियों की जीत ऐतिहासिक थी. इस जीत ने एक मिसाल क़ायम की थी. इस जीत से यह कहा जा सकता है कि 1943 तक शहर की घेराबंदी करने के लिए तोपें एक अहम हथियार बन चुकी थीं. उस्मानियों के पास भारी तादाद में हथियार और संसाधन थे, जिनकी बदौलत वो उस समय सबसे ताक़तवर बन गए थे.
ताक़तवर तोप बनाने की कहानी
उस्मानियों के पास ताक़तवर हथियार बनाने के लिए पर्याप्त संसाधन थे. कहते हैं कि सुल्तान मेहमद द्वितीय के दरबार में औरबान नाम का एक हथियार बनाने वाला कारीगर आया था, जिसने एक तोप का डिज़ाइन सुल्तान को दिखाया और दावा किया कि इस तोप से निकलने वाले गोले क़ुस्तुनतुनिया की दीवारों को गिरा सकते हैं. उस कारीगर ने यह भी कहा कि ये तोपें 8 मीटर लंबी होंगी और इनकी क़ीमत 10 हज़ार दुकत होगी.
कारीगर की बात सुनकर सुल्तान ने कहा था कि अगर ऐसा होता है, तो उसे चार गुना ज्यादा क़ीमत दी जाएगी. लेकिन, सुल्तान ने यह शर्त रखी थी कि इन तोपों को तीन महीने के अंदर तैयार करना होगा. ये दृश्य ‘ओटोमन’ वेब सीरीज़ में दिखाया गया है.
कारीगर औरबान की तोपें
कहा जाता है कि कारीगर औरबान द्वारा बनाई गई तोपें बंबार्ड श्रेणी में आती थीं. ‘गन्स फॉर द सुल्तान’ नामक किताब में जिक्र मिलता है कि औरबान द्वारा बनाई गईं सबसे बड़ी तोपों का आकार 50-80 सेंटी मीटर और वज़न 6 से 16 हज़ार किलो हुआ करता था. वहीं, उनमें 150 से 700 किलों के गोलों का इस्तेमाल किया जाता था. कहते हैं उस्मानिया सल्तनत के तोप ख़ानों में ऐसी तोपों का निर्माण 1510 के बाद भी होता रहा.
तोपों के लिए ख़ास बंदोबस्त
कहते हैं कि कारीगर औरबान की बात सुल्तान नें मान ली थी. इसके बाद तोपों को बनाने का काम उस्मानिया तोप ख़ानों में शुरू कर दिया गया था. इतिहासकार बताते हैं कि उस्मानियों की जीत में तुर्की कारीगरों द्वारा बनाई गईं तोपों की भी अहम भूमिका रही थी. जब तोप ख़ानों में तोपें बनकर तैयार हो गईं, तो उन्हें क़ुस्तुनतुनिया पहुंचाने के लिए ख़ास इंतज़ाम किए गए, ताकि तोपें सही सलामत अपने स्थान तक पहुंच सकें.
तोपों के साथ सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी लगाई गई
कहते हैं इस काम के लिए 30 तोप गाड़ियां (Cannon Wagon) जोड़ी गईं थीं, जिन्हें खींचने के लिए 60 ताक़तवर बैलों को लगाया गया था. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा गया था कि तोपों को खींचने वाली गाड़ियों का संतुलन न बिगड़े. इस काम के लिए गाड़ियों के दोनों तरफ 200 सैनिक लगाए गए थे. साथ ही साथ तोपों का रास्ता साफ़ करने के लिए 50 कारीगर और उनके 200 सहायकों को भी लगाया गया था.
2 महीने लगे पहुंचने में
कहते हैं कि तोपों को तुर्क के शहर एडिर्न से क़ुस्तुनतुनिया पहुंचाने में 2 महीने का समय लगा था. वहीं, इन तोपों को क़ुस्तुनतुनिया से पांच मील दूर लगाया गया था. इतिहासकार कहते हैं कि शहर की घेराबंदी करने के लिए ये तोपें दिन में 7 बार गोले छोड़ती थीं. वहीं, मई के महीने में इन तोपों की मरम्मत का काम भी किया जाता था. इन तोपों ने शहर को भारी नुक़सान पहुंचाया और उस्मानियों को जीत दिलाई.