एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के हाथों प्रज्वलित वो सिद्ध ‘अखण्ड दीपक’, जो 1926 से लगातार जल रहा है

Nripendra

Akhand Deepak in Shantikunj Haridwar: इसमें कोई शक नहीं कि भारत ने अपने आध्यात्मिक और यौगिक ज्ञान के बल पर दुनिया में एक अलग मुकाम हासिल किया है. यही वजह है पूरा विश्व कुछ अलग अनुभव करने के लिए भारत की ओर खींचा चला आता है. यहां की संस्कृति और यहां का जीवन विश्व के लोगों को आकर्षित करता है.

यहां चारों दिशाओं में फैले मंदिर (जिनमें कई हज़ार वर्ष पुराने भी हैं) और आश्रम शांति का अनुभव कराते हैं. इसलिये, ऐसे आध्यात्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है.  वहीं, जब आध्यात्मिक और धार्मिक स्थलों की बात होती है, तो उत्तराखंड का नाम न आए ऐसा हो ही नहीं सकता है.

इस कड़ी में हम आपको हरिद्वार शहर (उत्तराखंड) के ‘शांतिकुंज आश्रम’ में मौजूद एक सिद्ध ‘अखंड दीपक’ के बारे में बताने जा रहे हैं, जो साल 1926 से लगातार जलते आ रहा है.

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आइये, अब विस्तार से जानते हैं अखण्ड दीपक (Akhand Deepak in Shantikunj Haridwar) के बारे में.

‘पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य’

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Akhand Deepak in Shantikunj Haridwar: अखण्ड दीपक के बारे में जानने से पहले आपको ‘पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य’ के बारे में जानना होगा, जिन्होंने इस अखंड दीपक को प्रज्वलित किया था. पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एक संत, एक आध्यात्मिक गुरु, एक स्वतंत्रता सेनानी, लेखक व एक दार्शनिक थे. इसके अलावा, उन्होंने ‘अखिल विश्व गायत्री परिवार’ की स्थापना भी की थी. उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन काल में तीन हज़ार से ज़्यादा किताबें भी लिखीं.

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म 20 सितंबर 1911 को उत्तर प्रदेश आगरा शहर में हुआ था. उनका जीवन समाज की बेहतरी के लिए समर्पित था.

इसके अलावा, वो एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे. अपनी किशोर अवस्था से ही वो स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कुद गए थे. उन्हें तीन बार जेल भी जाना पड़ा. उन्होंने महात्मा गांधी को अपना आध्यात्मिक गुरु माना था और कई बार साबरमति आश्रम भी गए थे. जब वो पश्चिम बंगाल की आसनसोल जेल में थे, तब वो कई क्रांतिकारियों के नज़दीक आए.

शांतिकुंज के अखण्ड दीपक का इतिहास

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Akhand Deepak in Shantikunj Haridwar: एक क्रांतिकारी का जीवन जीने के साथ-साथ उन्होंने एक संत का भी जीवन जिया, ताकि समाज के उत्थान में अपनी भागीदारी दे सकें. इसलिये, उन्होंने अपने जीवन में चार बार हिमालय की यात्रा की. इसके अलावा, वो क़रीब एक साल तक अज्ञातवास में रहे और कठिन तप किया.

‘अखण्ड दीपक’ के विषय में अधिक जानकारी के लिए Scoopwhoop ने ‘शांतिकुंज आश्रम’ के एक वरिष्ट कार्यकर्ता अगमवीर सिंह जी से बातचीत की. उन्होंने बताया कि, “जब गुरुदेव (पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य)  पहली बार हिमालय में सर्वेश्वरानंद जी (जो उनके आत्यात्मिक गुरु बनें) मिले, तो उन्होंने उनकी आज्ञा पर ‘अखण्ड दीपक’ को प्रज्वलित किया था.” 

ये दीपक कभी बुझना नहीं चाहिए

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अगमवीर सिंह जी ने बातचीत में आगे बताया कि, “ उनके गुरु सर्वेश्वरानंद जी ने उनसे कहा था कि ये दीपक कभी बुझना नहीं चाहिए. वहीं, जब गुरुदेव अंतिम बार हिमालय गये, तो गुरु सर्वेश्वरानंद जी अपनी सारी शक्ति गुरुदेव को दे दी थी. उन्हीं के कहने पर गुरुदेव ने गायत्री महा मंत्र के 24 महापुरश्चरण पूरे किये थे.” वहीं, अगमवीर सिंह आगे बताते हैं कि, “मथुरा की यज्ञशाला में 750 साल पुरानी अग्नि लाई गई थी और वो ही अग्नी शांतिकुंज, हरिद्वार में भी स्थापित की गई.”

‘अखण्ड दीपक’ ने तय किया आवंलखेड़ा से हरिद्वार तक का सफ़र

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अगमवीर जी आगे बताते हैं कि, “‘अखण्ड दीपक’ को आगरा ज़िले के आवलखेड़ा गांव में 1926 को प्रज्वलित किया गया था. इसके बाद दीपक को क़रीब 1930 के आसपास आगरा शहर लाया गया. इसके बाद 1950 में ‘अखण्ड दीपक’ को मथुरा लाया गया.” 

वहीं, जब गुरुदेव अपनी धर्मपत्नी के साथ मथुरा से 1971 में हरिद्वार आये, तो अपने साथ ‘अखण्ड दीपक’ को भी साथ लाये थे. ये ‘अखण्ड दीपक’ एक सिद्ध ज्योति है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि अगर कोई दीपक 40 वर्षों तक लगातार जलता रहे, तो वो सिद्ध हो जाता है. 

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रोज़ जुड़ते हैं 24 हज़ार मंत्र 

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शांतिकुंज के वरिष्ट कार्यकर्ता अगमवीर सिंह जी के अनुसार, इस सिद्ध अखण्ड दीपक में पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य, उनके गुरुदेव और गायत्री मंत्र की अपार शक्ति समाहित है. उनके अनुसार, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने 24 वर्षों तक इस अखण्ड दीपक के नज़दीक बैठ गायत्री मंत्र की रोज़ाना छियासठ माल जपी थीं और तब से अब तक ये परंपरा जारी है. अगमवीर सिंह जी बताते हैं कि देव कन्याओं के माध्यम से रोज़ाना 24 हज़ार गायत्री मंत्रों की शक्ति अखण्ड दीपक तक पहुंचाई जाती है. 

वहीं, वो आगे बताते हैं कि, “अग्नि शक्ति को अपने में जमा कर सकती है यानी एक्युमुलेट कर सकती है. इसलिये, ‘अखण्ड दीपक’ में गायत्री मंत्र की शक्ति मौजूद है, जो 1926 से लगातार पहुंचाई जा रही है.” 

गायत्री मंत्र की शक्ति

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अगमवीर सिंह जी गायत्री मंत्र के जाप करने की शक्ति के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि एक बार उन्होंने किसी बच्चे को देखा जो गुस्से में अपनी किताब फाड़ दिया करता था और रोता था. उन्होंने बच्चे की मां से कहा कि आप बच्चे को लेकर रोज़ हमारे साथ यज्ञ किया करो. 

उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से ‘पंजीरी’ (जिसे आटे, ड्राई फ़्रूट और घी से तैयार किया जाता है) प्रसाद के रूप में बनवाई और मिठाई की तरह चौकोर काटकर उसके हिस्से बना दिये और एक डब्बे में रख दिया. उन्होंने एक महीने रोज़ाना उस बच्चे को उसकी मां के ज़रिये ‘पंजीरी’ खाने को दी. अगमवीर जी हर दिन 24 गायत्री मंत्र जाप कर वो ‘पंजीरी’ उस महिला को दिया करते थे. लगातार 29 दिनों तक ये क्रम बना रहा. बाद में देखा गया कि बच्चे ने गुस्से में किताब फाड़ना और रोना छोड़ दिया था. 

हज़ारों की संख्या में लोग करते हैं दर्शन

 

जैसा कि हमने बताया कि हरिद्वार के शांतिकुंज आश्रम में मौजूद ‘अखण्ड दीपक’ एक सिद्ध ‘अखण्ड दीपक’ है. इसलिये, रोज़ाना यहां हज़ारों की संख्या में श्रद्धालू दर्शन के लिए पहुंचते हैं. माना जाता है कि ‘अखण्ड दीप’ की सकारात्मक शक्ति श्रद्धालुओं तक पहुंचती है. अगमवीर सिंह जी बताते हैं कि कई बार अखण्ड दीपक के सामने कई श्रद्धालुओं के पैर कांपने लग जाते हैं, कुछ बहुत देर तक शांत अवस्था में चले जाते हैं और यहां तक कई श्रद्धालु रोने भी लग जाते हैं. इसे उन्होंने शक्तिपात कहा है. वहीं, श्रद्धालुओं के लिए रोज़ाना सुबह से लेकर शाम तक भोजन का भी इंतज़ाम किया जाता है. आश्रम में आने वाला हर व्यक्ति इस भोजन को ग्रहण कर सकता है.

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