Siyaram Baba: इतिहास गवाह है कि भारतीय संतों ने योग और ध्यान के बल पर पूरे विश्व को चौंकाने का काम किया है. साथ ही कठीन साधना के जरिये इंद्रियों पर संयम रखने और शरीर को हर मौसम के अनुकूल बनाकर भी सब को हैरान किया है. यही वजह है कि योग और अध्यात्म के मामले में भारत का स्थान शीर्ष पर है. वहीं, योग की बारीकियों को जानने व सीखने के लिए विश्व के कोने-कोने से लोगों का भारत आगमन होता रहता है. 


इसी क्रम में हम आपको मध्य प्रदेश के एक ऐसे संत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी एक झलक पाने के लिए न सिर्फ़ देश बल्कि विदेशों से भी भक्तों का आगमन होता है. हम बात करने जा रहे हैं सियाराम बाबा की. आइये, सियाराम बाबा के बारे में कुछ दिलचस्प और हैरान कर देने वाली बातें जानते हैं.      

आइये, अब विस्तार से जानते हैं बाबा सियाराम (Siyaram Baba) के बारे में.  

मध्य प्रदेश के सियाराम बाबा (Saint Siyaram Baba) 

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हम जिन संत के बारे में आपको बता रहे हैं, वो सियाराम बाबा (Saint Siyaram Baba) के नाम से जाने जाते हैं. ये मध्य प्रदेश के खरगोन ज़िले के नर्मदा तट पर स्थित भट्याण आश्रम के संत श्री हैं. बाबा की उम्र 109 वर्ष बताई जाती है. हालांकि, कोई इनकी उम्र 80 बताता है, तो कोई 130. वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो इनकी उम्र 109 के आसपास हो सकती है.  

बाबा भगवान हनुमान के परम भक्त हैं और आपको निरंतर राम चरित्रमानस का पाठ करते मिल जाएंगे. ऐसा माना जाता है कि सियाराम बाबा का जन्म महारष्ट्र के मुंबई में हुआ था और उन्होंने 7-8वीं क्लास तक पढ़ाई भी की है. 
वहीं, किसी संत के संपर्क में आने के बाद उनके अंदर वैराग्य धारण करने का विचार आया और उन्होंने घर त्याग दिया और तप करने हिमालय चले गए. हालांकि, उनके बाद का जीवन काफ़ी रहस्यमयी है और इस बारे में शायद ही किसी के पास जानकारी हो.    

दान में लेते हैं सिर्फ़ 10 रुपए 

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सियाराम बाबा (Saint Siyaram Baba) की एक ख़ास बात ये है कि वो दान में सिर्फ़ 10 रुपए ही लेते हैं. अगर कोई 10 रुपए से ज्यादा उन्हें दान दे, तो वो बाकी पैसे उन्हें लौटा देते हैं. कहते हैं कि एक बार अर्जेंटीना व ऑस्ट्रिया के कुछ लोग बाबा के दर्शन करने के लिए उनके आश्रम गए और उन्होंने 500 रुपए बाबा को दान में दिये, लेकिन बाबा ने 10 रुपए लेकर बाकी पैसे उन्हें लौटा दिये. 

इसके अलावा, सियाराम बाबा समाज कल्याण में भी अपनी भागीदारी देते हैं, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो बाबा ने नर्मदा घाट की मरम्मत और बारिश से बचने के लिए शेड बनवाने के लिए 2 करोड़ 57 लाख रुपए दान में दिए थे. ये पैसा उन्हें आश्रम की डूब के मुआवज़े के रूप में दिया गया था. वहीं, एक निर्माणाधीन मंदिर के शिखर निर्माण के लिए सियाराम बाबा ने 5 लाख रुपए भी दान दिए थे.   

एक लंगोट में गुज़ार देते हैं सारे मौसम  

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ठंडी हो या गर्मी, सियाराम बाबा आपको हर वक़्त एक लंगोट में ही नज़र आएंगे. ध्यान साधना के बल पर उन्होंने अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया है, इसलिए कड़ाके की ठंड भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है. वहीं, इतनी उम्र होने के बावजूद वो अपना पूरा काम स्वयं ही करते हैं. वो अपना भोजन ख़ुद ही बनाकर खाते हैं. 

कैसे पड़ा सियाराम नाम?  

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बाबा के नाम के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है. कहते हैं कि बाबा ने 12 वर्षों तक मौन धारण करके रखा हुआ था. वहीं, जब 12 वर्षों बाद उन्होंने अपना मुख खोला, तो उनके मुख से पहला शब्द निकला ‘सियाराम’. इस वजह से गांव के लोगों ने उनका नाम सियाराम रख दिया और अब बाबा सियाराम बाबा के नाम से ही जाने जाते हैं.  

इसके अलावा, उन्होंने 10 वर्षों तक खड़ेश्वर तप भी किया था. ये एक कठीन तप होता है, इसमें तपस्वी को सोने से लेकर दिन भर के सारे काम खड़े रहकर ही करने होते हैं. ये सब बाबा की योग साधना से ही संभव हो पाया. कहते हैं बाबा के खडेश्वर तप के दौरान नर्मदा नदी में बाढ़ आ गई थी और पानी बाबा के नाभि तक आ गया था, लेकिन बाबा अपनी जगर पर ही बने रहे.