भारतीय राजनीति का इतिहास पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बिना पूरा नहीं हो सकता है. इंदिरा गांधी के इर्द-गिर्द भारत की कई ऐतिहासिक घटनाएं भ्रमण करती हैं. इंदिरा भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं और अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए. वहीं, इनके द्वारा कुछ ऐसे भी फ़ैसले लिए गए, जिनकी वजह से इन्हें कोर्ट में भी जाना पड़ा. वैसे प्रधानमंत्री को कोर्ट में बुलाना और घंटों पूछताछ करना अपने आप में एक बड़ी बात है. इस वक़्त सबसे बड़ा दबाव जज पर होता है.
आइये, इस लेख में जानते हैं उस निडर जज के बारे में जिसने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा फैसला सुनाया था.
12 जून 1975
12 जून 1975 वो ऐतिहासिक दिन था, जब इलाहाबाद कोर्ट में इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया गया. एक तरफ थीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और दूसरी तरफ थे राजनारायण. जो 1971 में हुए रायबरेली चुनाव में इंदिरा गांधी से हार गए थे. उन्होंने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद कोर्ट में चुनौती दी थी. उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट से जज थे जगमोहनलाल सिन्हा. कहा जाता है कि फ़ैसले से पहले उन पर काफी दबाव बनाया गया था, लेकिन वो अपने फ़ैसले पर डटे हुए थे.
जीवन का सबसे बड़ा केस
12 मई 1920 में जन्मे जगमोहनलाल सिन्हा एक पक्के इरादे वाले इंसान थे. उन्हें 1970 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का उच्च न्यायाधीश बनाया गया था. जज जगमोहन की जिंदगी का यह सबसे बड़ा केस था. बता दें उनकी मृत्यु 20 मार्च 2008 में हुई थी.
अपने ज़माने के सख़्त जज
जगमोहनलाल सिन्हा अपने ज़माने के सख़्त जज माने जाते हैं. कहा जाता है कि कोर्ट में इंदिरा गांधी के आने से पहले उन्होंने कोर्ट में मौजूद सभी को यह आदेश दिया था कि कोई भी इंदिरा गांधी के आने पर खड़ा नहीं होगा. कोर्ट की यह परंपरा है कि जब जज अंदर दाख़िल होता है, तभी सब को खड़ा होना पड़ता है.
कहा जाता है कि जब इंदिरा गांधी कोर्ट में दाख़िल हुईं, तो उनके वकील एससी खरे को छोड़कर कोई भी उनके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ. एससी खरे भी पूरे खड़े नहीं हुए थे. इंदिरा गांधी को बस एक कुर्सी दी गई थी, ताकि वो गवाही दे सकें.
दिया गया था लालच
जैसा कि हमने बताया कि जगमोहनलाल एक सख़्त स्वभाव व एक निडर जज थे. इंदिरा गांधी के हक़ में फ़ैसला सुनाने के लिए उन्हें लालच भी दिया गया. कहते हैं कि इंदिरा गांधी के निजी डॉक्टर माथुर जज जगमोहनलाल के रिश्तेदार थे, जो यह प्रस्ताव लेकर उनके पास गए कि अगर उन्होंने प्रधानमंत्री के हक़ में फैसला सुनाया, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज बना दिया जाएगा. लेकिन, जज जगमोहनलाल ने उनकी बात नहीं मानी.
उन्होंने ख़ुद को कमरे में बंद कर लिया था और घरवालों से कह दिया था कि जो भी आए, तो बता देना कि मैं उज्जैन गया हुआ हूं. उन पर कई तरह से दबाव बनाने की कोशिश की गई, लेकिन वो इंदिरा गांधी के सामने झुके नहीं.
लगा दिए गए थे जासूस
कहा जाता है कि फ़ैसला पहले से ही जानने के लिए जज जगमोहनलाल के पीछे इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अफ़सर को लगा दिया गया था. लेकिन, जगमोहनलाल भी कम नहीं थे, उन्होंने इंदिरा गांधी का फ़ैसला अपने घर में ही अपने टाइपिस्ट से टाइप करवाया था और उस टाइपिस्ट को तब तक जाने नहीं दिया गया, जब तक फ़ैसला सुनाया नहीं गया.
कोई ताली नहीं बजनी चाहिए
कहते हैं कि फ़ैसले वाले दिन जज जगमोहनलाल सिन्हा सीधे कमरा नंबर 24 में चले गए थे और पेशकार से कहलवा दिया था कि जब राजनारायण की चुनाव याचिका पर फ़ैसला सुनाया जाए, तब कमरे में मौजूद कोई भी शख़्स ताली नहीं बजाएगा.
किन मामलों में इंदिरा को दोषी ठहराया गया
जज जगमोहनलाल सिन्हा ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दो मामलों पर चुनाव में अनुचित साधन अपनाने को लेकर दोषी ठहराया था. पहला यह कि इंदिरा गांधी ने अपने सचिवालय में काम करने वाले यशपाल कपूर को अपना चुनाव एजेंट बनाया था, जो अभी भी सरकारी पद पर बने हुए थे. वहीं, दूसरा यह कि उन्होंने सरकारी पैसे से ही चुनावी प्रचार में लाउडस्पीकरों और शामियाने की व्यवस्था की थी.
साथ ही जज जगमोहनलाल ने उनकी सदस्यता रद्द की और अगले 6 महीने तक चुनाव लड़ने और कोई भी सरकारी पद संभालने पर रोक लगा दी.