भारत अपनी कई विशषेताओं के साथ कुख़्यात डाकूओं के लिए भी जाना गया है. भारत के इतिहास में एक समय ऐसा भी आया जब देश के कई हिस्से डाकुओं के क़हर से पीड़ित थे. जिसमें चंबल शीर्ष पर था. वहीं, दक्षिण भारत के जंगल भी ख़तरनाक डाकुओं का अड्डा बने. इनमें सबसे कुख़्यात ‘वीरप्पन’ का नाम आता है. वीरप्पन से न सिर्फ़ तमिलनाडु बल्कि कर्नाटक की पुलिस को भी काफ़ी परेशान किया था.
इंसानों और हाथियों की हत्या का आरोप
कहा जाता है कि वीरप्पन पर 2 हज़ार से अधिक हाथियों और 184 लोगों की हत्या का आरोप था. जानकारों के अनुसार, उसने मात्र 17 साल की उम्र में पहला हाथी मारा था. कहते हैं कि वो हाथी के सिर के बीचों-बीच गोली मारता था.
चंदन का तस्कर
वीरप्पन दक्षिण भारत के जंगलों में चंदन की तस्करी करता था. इसके अलावा, वो हाथियों का अवैध शिकार, हाथी दांत की तस्करी, अपहरण और अन्य ग़ैर-क़ानूनी काम करता था.
पकड़ने के लिए बेहिसाब पैसा किया गया ख़र्च
जानकर हैरानी होगी कि कुख़्यात वीरप्पन को पकड़ने के लिए लगभग 20 करोड़ रूपए ख़र्च किए गए थे. माना जाता है कि प्रतिवर्ष उसे पकड़ने के लिए 2 करोड़ ख़र्च आता था. इस तथ्य से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वो कितना ख़तरनाक डाकू था.
मशहूर फ़िल्म अभिनेता का किया था अपहरण
वीरप्पन ने सन् 2000 में कन्नड फ़िल्मों के मशहूर अभिनेता ‘राजकुमार’ का अपहरण कर लिया था. जानकर हैरानी होगी कि अभिनेता राजकुमार लगभग 100 दिनों तक वीरप्पन के चंगुल में रहे थे. लेकिन, इस घटना के बाद वीरप्पन को पकड़ने का काम जोरों शोरों से शुरू हो गया था.
विजय कुमार
वीरप्पन को पकड़ने के लिए जो स्पेशल टास्क फ़ोर्स बनाई गई थी, उसके प्रमुख विजय कुमार थे. वीरप्पन को पकड़ने के ऑपरेशन पर विजय कुमार ने एक किताब (Veerappan Chasing the Brigand) भी लिखी थी. इस किताब में उन्होंने लिखा था कि वीरप्पन को मार गिराने के काम में चार साल का वक़्त लग गया था.
वीरप्पन की एक आंख में परेशानी
जैसे ही विजय कुमार को वीरप्पन को पकड़ने की ज़िम्मेदारी दी गई, उन्होंने वीरप्पन से जुड़ी खुफ़िया जानकारी एकत्रित करना शुरू कर दिया था. इस दौरान उन्हें पता चला कि वीरप्पन अपनी बात आगे पहुंचाने के लिए वीडियो या ऑडियो टेप का सहारा लेता है.
ऑपरेशन ककून
विजय कुमार को पता चला कि वीरप्पन अपनी आंख का इलाज कराने की तैयार कर रहा है. फिर क्या था, विजय कुमार ने पूरी तैयार कर ली. आंख का इलाज कराने के लिए उसे जंगल से बाहर आने के लिए मजबूर किया गया. तैयारी के तहत एक नक़ली एम्बुलेंस तैयार की गई और उसमें दो पुलिस वालों को बैठा दिया गया, एक को ड्राइवर और दूसरे को वार्ड बॉय बनाकर. वीरप्पन उस एम्बुलेंस में बैठ गया. तय जगह पर पहुंचने के बाद ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक लगाया और उतरकर विजय कुमार को चिल्लाकर बताया कि वीरप्पन अंदर बैठा है.
338 राउंड गोलियां
कहते हैं कि विजय कुमार ने वीरप्पन को चेतावनी दी, लेकिन जब वो नहीं माना, तो उस पर एसटीएफ़ ने 338 राउंड गोलियां चलाई. लेकिन, उनमें से दो ही गोलियां वीरप्पन के शरीर को भेद पाईं. रात 10:50 पर शुरू हुआ एनकाउंटर मात्र 20 मिनट में ख़त्म हो गया.