पाकिस्तान की हमेशा से ही यह कोशिश रही है कि वो भारत के काम में अड़ंगा डाले. इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने कई भारत से भागे अपराधियों को अपने यहां शरण दी है और यह साबित किया कि वो कभी भारत के साथ शांति नहीं चाहता. 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों के मुख्य आरोपी दाऊद को भी पाक ने अपने यहां शरण दी थी. हालांकि, वो हमेशा इस बात का इंकार करता रहा है.   

वहीं, इसके अलावा, भारत से भागे कुख्यात डाकू भूपत सिंह को भी पाकिस्तान में शरण दी थी, वरना कई हत्याओं व लूटपाट के आरोपी भूपत को भारत में फांसी की सज़ा मिलनी तय थी. इस ख़ास लेख में जानिए कैसे भारत से भागकर डाकू भूपत सिंह पाकिस्तान में रहने में क़ामयाब रहा.   

एक कुख्यात डाकू      

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माना जाता है कि 50 के दशक में डाकू भूपत सिंह राजस्थान और गुजरात में काफी ज्यादा कुख्यात हो गया था. वहीं, यह भी कहा जाता है कि 1949 – 1952 के बीच भूपत और उसके गिरोह पर 82 हत्याएं करने का आरोप लगा था. इस वजह से पुलिस और भूपत के बीच चूहे-बिल्ली का खेल शुरू हो गया था. वहीं, जब पुलिस ने उसकी तलाश में कोई कसर न छोड़ी, तो भूपत अपने दो साथियों के साथ पाकिस्तान की सीमा में घुस गया.    

किया गया गिरफ़्तार   

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चूंकि भूपत सिंह गैरकानूनी तरीक़े से पाकिस्तान की सीमा में दाख़िल हुआ था, इसलिए उस पर वहां ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से प्रवेश करने और हथियार रखने को लेकर मुकदमा चला और 1 साल की सज़ा सुनाई गई.   

भारत लाने की पूरी कोशिश  

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‘The People Next Door: The Curious History of India-Pakistan Relations’ के लेखक और पाक में भारत के उच्चायुक्त रह चुके Dr. T.C.A. Raghavan के अनुसार, डाकू भूपत को लेकर भारत-पाक में उच्च स्तरीय वार्ता हुई थी. प्रत्यर्पण संधि पर दस्तख़त न होने की वजह से भारत कानूनी रूप से इस मुद्दे पर ज़्यादा कुछ नहीं कर सका. इसके बाद भारत ने पाक पर सीधा आरोप लगाया कि वो राजनीतिक रूप से पूरी तरह कमज़ोर हो चुका है, इसलिए वो भूपत को हमें नहीं सौंप रहा है.   

प्रधानमंत्रियों के बीच चर्चा   

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कहा जाता है कि राजनीतिक दबाव और मीडिया में लगातार उठाए जा रहे भूपत के मुद्दे की वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डाकू भूपत को लेकर पाक के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा से 1956 में बात की थी. लेकिन, प्रत्यर्पण संधि न होने की वजह से पाक प्रधानमंत्री ने इस मामले से हाथ झाड़ लिए. 

अख़बारों में छापी गई तरह-तरह की ख़बरें   

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भारतीय मीडिया में उस दौरान भूपत को लेकर तरह-तरह की ख़बर छापी गईं. ब्लिट्ज़ नामक अख़बार ने एक हेडिंग लगाई थी, “क्या डाकू भूपत पाक सेना के लिए भारतीय डाकुओं की भर्ती कर रहा है?” इस न्यूज़ रिपोर्ट में यह बताया गया था कि डाकू भूपत सिंह, पाक की ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए भारत के डाकुओं की भर्ती कर रहा है और इस काम के लिए भारत की सीमा के आसपास भटक रहा है.   

एक चाल जो रही क़ामयाब  

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डाकू भूपत सिंह की पूरी कोशिश यह थी कि उसे भारत न भेजा जाए. इसलिए, उसने एक बड़ी चाल चली. उसने ख़ुद को स्वतंत्रता सेनानी होने की बात पाकिस्तान को बताई. उसने कहा, “जब मेरी रियासत को भारत में मिलाया लिया गया, तो भारतीय सेना ने हम पर हमला कर दिया. हमने लगभग साढ़े तीन सालों तक भारतीय सेना का मुक़ाबला किया. लेकिन, हमारी हार हुई और मुझे पाकिस्तान भागकर आना पड़ा. मैं पाकिस्तान के लिए वफ़ादार हूं, जिसने मेरी जान बचाई और मुझे यहां रखा. मैं पाकिस्तान के लिए अपने ख़ून की आख़री बूंद तक देने के लिए तैयार हूं.”   

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कहते हैं कि भूपत की चाल रंग लाई और उसे पाकिस्तान में रहने दिया गया. वो अपनी मृत्यु (2006) तक पाकिस्तान में रहा. कहते हैं कि वो धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन गया था. उसने पाक में शादी भी की और उसके बच्चे भी थे.   

तो यह थी कुख्यात डाकू भूपत की कहानी, जिसे पाकिस्तान ने शरण दी. अगर उसे भारत भेज दिया जाता है, तो उसकी फांसी की सज़ा लगभग तय थी.