‘डार्लिंग्स’ और ‘जनहित में जारी’ तक, वो 14 फ़िल्में जिनमें सामाजिक मुद्दों को व्यंग्यात्मक तरीक़े से दिखाया गया

Kratika Nigam

Bollywood Movies: फ़िल्में, अक्सर, समाज में होने वाली घटनाओं से प्रभावित होती हैं. इसीलिए फ़िल्मों में समाज में घट रही घटनाओं को देखा जा सकता है, उनसे जुड़े मुद्दों पर बात की जाती है. उनके सच को दिखाने की कोशिश की जाती है. बॉलीवुड में भी ऐसी ही कुछ फ़िल्में बनी हैं जिनमें सामाजिक मुद्दों पर बात की गई है मगर इन मुद्दों को दिखाने का तरीक़ा बड़ा ही विशिष्ट है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देता है. ये एक व्यंग्य या कॉमेडी हो सकती है.

बॉलीवुड की ऐसी ही 14 फ़िल्मों की एक लिस्ट बनाई है, जहां सामाजिक मुद्दों (Bollywood Movies With Distinct Social Messaging) को एक विशिष्ट तरीके से दिखाया गया है.

Bollywood Movies

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1. डार्लिंग्स, 2022 (Darlings)

जसमीत के. रीन के निर्देशन में बनी पहली फ़िल्म, डार्लिंग्स बदरुनिसा के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने पति के हाथों दुर्व्यवहार का शिकार होती है. ये फ़िल्म घरेलू हिंसा के मुद्दे को उठाती है और कुशलता से इसे बिना तुच्छ बनाए एक डार्क कॉमेडी के रूप में चित्रित करती है.

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2. नो स्मोकिंग, 2007 (No Smoking)

ये फ़िल्म अनुराग कश्यप की क्लासिक फ़िल्म है. जब इसे 2007 में रिलीज़ किया गया था, तो इसे अपने समय से बहुत आगे का माना गया था. फ़िल्म प्रतीकात्मकता से भरपूर है और ये दर्शकों पर निर्भर करता है कि वो इस फ़िल्म को एक ममनोवैज्ञानिक अवस्था के रूप में समझते हैं या फिर कुछ और.

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3. उंगली, 2014 (Ungli) 

रेंसिल डिसिल्वा की फ़िल्म में कास्ट और कहानी दोनों ही सटीक हैं. दोस्तों का एक ग्रुप भ्रष्ट लोगों को बेनक़ाब करने के उद्देश्य के साथ एक गिरोह बनाता है. वे ऐसा अपरंपरागत तरीक़ों से करते हैं जिससे वो आम जनता के फ़ेवरेट बन जाते हैं.

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4. जयशभाई जोरदार, 2022 (Jayeshbhai Jordaar)

दिव्यांग ठक्कर के निर्देशन में बनी ये फ़िल्म जयेश पटेल के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है. फ़िल्म कन्या भ्रूण हत्या की अवैध प्रथा, एक लड़के की इच्छा और अन्य सभी कुप्रथाओं पर प्रकाश डालती है.

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5. रॉकेट सिंह: सेल्समैन ऑफ़ द इयर, 2009 (Rocket Singh: Salesman of the Year)

एक ग्रेजुएट सेल्स की नौकरी करता है, लेकिन जब वो इस वास्तविकता से रूबरू होता है कि कॉर्पोरेट में चीज़ें कैसे काम करती हैं, तो चीज़ें बदल जाती हैं. शिमित अमीन द्वारा निर्देशित फ़िल्म इस बात पर एक टिप्पणी है कि कैसे युवा पेशेवर एक भयंकर उद्योग की मांगों से गुज़रते हैं.

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6. टॉयलेट: एक प्रेमकथा, 2017 (Toilet: Ek Prem Katha)

श्री नारायण सिंह द्वारा निर्देशित ये फ़िल्म देश की ख़राब स्वच्छता स्थितियों के बारे में बात करती है, ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. शौचालय न होने के कारण लोग खुले मैदान में शौच करते हैं. नवविवाहित जया इस मर्यादा का पालन नहीं करना चाहती है, जिसका परिणाम ये होता है कि घर में शौचालय न होने की वजह से वो अपने पति और ससुराल को छोड़कर चली जाती है. और शौचालय बनने के बाद ही वापस आती है.

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7. पगलैट, 2021 (Pagglait)

उमेश बिष्ट द्वारा निर्देशित, कहानी एक युवा विधवा के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने पति के खोने का शोक मनाने में असमर्थ है. अपने अरेंज मैरिज के कम समय में न तो वो हैप्पी कपल थे और न ही उन्होंने कभी साथ टाइम बिताया था. नासमझ रिश्तेदार ये देखकर हैरान होते हैं कि कैसे एक पत्नी अपने पति की मौत से दुखी नहीं है? दुख सबके लिए अलग होता है फ़िल्म ये बताने के साथ-साथ एक ऐसी लड़की की ज़िदंगी पर नज़र डालती है जो एम.ए. टॉपर होने के बावजूद भी दिशाहीन है.

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8. टेबल नं. 21, 2013 (Table No. 21)

आदित्य दत्त की इस फ़िल्म को स्क्वीड गेम्स के देसी वर्जन के रूप में भी पेश किया गया है. एक नवविवाहित जोड़े के जीवन के ज़रिये से फ़िल्म लालच, रैगिंग और उसके बाद के प्रभावों के विषयों की पड़ताल करती है.

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9. पीपली लाइव, 2010 (Peepli Live)

ये पंथ पसंदीदा फ़िल्म इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे एक किसान की आत्महत्या समाचार चैनलों के लिए टीआरपी का रूप ले लेती है. फ़िल्म अभी भी प्रासंगिक है और किसानों की दुर्दशा, वोट बैंक की राजनीति और भारतीय समाचार मीडिया की स्थिति पर प्रकाश डालती है.

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10. बुलबुल, 2020 (Bulbbul)

क़ागज़ पर बुलबुल सिर्फ़ एक और अलौकिक थ्रिलर की तरह दिखती है, लेकिन यह नहीं है।.अन्विता दत्त द्वारा निर्देशित ये फ़िल्म पितृसत्ता, बाल विवाह और कैसे एक महिला को ग्रामीण क्षेत्रों में सभी बाधाओं की जड़ के रूप में देखा जाता है के बारे में बात करती है.

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11. OMG: Oh My God! (2012)

उमेश शुक्ला द्वारा निर्देशित फ़िल्म भारतीय समाज पर एक व्यंग्य और एक टिप्पणी है और किस हद तक धर्म का व्यावसायीकरण किया गया है और इसका दुरुपयोग किया जा रहा है. इस पर भी प्रकाश डालती है.

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12. जनहित में जारी, 2022 (Janhit Mein Jaari)

हमारे देश में Sex Education की अत्यधिक आवश्यकता है और ये फिल्म एक ऐसी ही कोशिश थी. एक युवा लड़की अपने छोटे शहर में कंडोम बेचने और सुरक्षा और सुरक्षित सेक्स के महत्व को समझाने का काम करती है. जय बसंतू सिंह द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में समाज के अहम् मुद्दों को उठाया गया है जिसपर कोई बात नहीं करना चाहता, लेकिन करना सब चाहते हैं.

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13. Ugly (2013)

अपने नाम की तरह ही ये फिल्म समाज की वास्तविकता, मानवीय भावनाओं, अहंकार और ईर्ष्या की एक बदसूरत तस्वीर पेश करती है. एक लापता नाबालिग की पृष्ठभूमि पर बनी अनुराग कश्यप की फ़िल्म एक डार्क और मनोरंजक कहानी है.

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14. Jolly LLB (2013)

न्यायिक पृष्ठभूमि पर बनी ये कॉमेडी फ़िल्म दिहाड़ी मज़दूरों, एकाधिकार, भ्रष्टाचार और उत्पीड़न की दुर्दशा को उजागर करती है. सुभाष कपूर की ये फ़िल्म देश की न्याय व्यवस्था पर एक टिप्पणी है.

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सभी फ़िल्म एक से बढ़कर एक हैं.

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