प्यासा: भारतीय सिनेमा की वो क्लासिक फ़िल्म जिसके बनने की रियल कहानी आपको इमोशनल कर देगी

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बॉलीवुड में कुछ ऐसे फ़िल्मकार हुए हैं जिनके टैलेंट को उनके वक्त में ही नहीं, बल्कि उनके गुज़रने के बाद भी काफ़ी सराहा गया है. इन्हीं में से एक फ़िल्मकार गुरु दत्त (Guru Dutt) भी थे, जिन्हें मौत के बाद दुनियाभर में काफ़ी पहचान मिली. वो केवल फ़िल्ममेकर ही नहीं, बल्कि बेहतरीन एक्टर, राइटर और कोरियोग्राफ़र भी थे. गुरु दत्त की ऐसी ही एक क्लासिक फ़िल्म है प्यासा (Pyaasa) जिसकी गिनती आज भी वर्ल्ड सिनेमा की कुछ चुनिंदा फ़िल्मों में होती है.

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भारतीय सिनेमा की अब तक की टॉप 10 फ़िल्मों की बात करें तो इस लिस्ट में ‘प्यासा’ टॉप पर होगी. सन 1957 में बनी ‘प्यासा’ बॉलीवुड की वो फ़िल्म है जिसे दुनियाभर में काफ़ी सराहना मिली थी. आज भी देश के कई नामी गिरामी ‘फ़िल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट्स’ में इस फ़िल्म की भगवान की तरह पूजा की जाती है.

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भारतीय सिनेमा की इस क्लासिक फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक और हीरो गुरु दत्त ही थे. उनके अलावा फ़िल्म में माला सिन्हा, वहीदा रहमान और जॉनी वॉकर जैसे कलाकार भी थे. इसके लेखक अब्रार अल्वी (Abrar Alvi) थे. इस फ़िल्म ने उस दौर में बॉक्स ऑफ़िस पर 29 रुपये की कमाई की थी, जो आज के 200 करोड़ रुपये से अधिक का कलेक्शन है.

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दुनिया की चुनिंदा 100 फ़िल्मों में से एक 

गुरु दत्त की इस क्लासिक फ़िल्म को इंटरनेशनल लेवल पर किस कदर पसंद किया गया था. इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि मशहूर टाइम मैगज़ीन ने दुनिया की 100 चुनिंदा फ़िल्मों में उसे जगह दी थी. गुरु दत्त की सोच उस दौर में भी किस लेवल पर थी आज भी इंटरनेशनल लेवल के फ़िल्म क्रिटिक्स इस पर हैरानी होती है.

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दिलीप कुमार थे पहली पसंद  

कहा जाता है कि ‘प्यासा’ फ़िल्म में मुख्य किरदार निभाने के लिए गुरु दत्त की पहली पसंद दिलीप कुमार थे. जब गुरु दत्त इस फ़िल्म को लेकर दिलीप कुमार के पास पहुंचे तो उन्होंने इसे करने से इंकार कर दिया. दिलीप कुमार का कहना था कि ‘प्यासा’ के विजय का किरदार लगभग ‘देवदास’ के देव जैसा है. इसके बाद गुरु दत्त ने इस किरदार को ऐसा जिया कि दिलीप कुमार भी ऐसी एक्टिंग नहीं कर पाते. इस फ़िल्म को देखने के बाद राज कपूर ने कहा था कि काश ‘प्यासा’ के विजय का किरदार उन्हें निभाने के लिए मिलता.

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नरगिस को ऑफ़र हुआ था मुख्य किरदार 

इस फ़िल्म में विजय (गुरु दत्त) के ऑपोजिट मीना (माला सिन्हा) का किरदार पहले नरगिस को ऑफ़र हुआ था. नरगिस उस वक़्त सुपरस्टार बन चुकी थीं. इसलिए उन्होंने भी ये ऑफ़र ठुकरा दिया. फ़िल्म में वहीदा रहमान ने वेश्या गुलाबो का अहम किरदार निभाया था. गुरु दत्त ने ये रोल पहले मधुबाला को ऑफ़र किया था, लेकिन अंत में वहीदा रहमान को कास्ट कर लिया गया.

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एक वैश्या की रियल कहानी थी ‘प्यासा’  

‘प्यासा’ फ़िल्म बनाने में जितना बड़ा हाथ गुरु दत्त का था उतना ही इसके लेखक अब्रार अल्वी का भी था. जबकि अब्रार अल्वी की इस बेहतरीन कहानी के पीछे एक वेश्या का बहुत बड़ा योगदान था. दरअसल, ये फ़िल्म ‘गुलाबो’ नाम की मुंबई की एक वैश्या की रियल कहानी पर आधारित थी और इस कहानी के मुख्य पात्र गुलाबो और अब्रार अल्वी थे. गुलाबो का जन्म एक हिन्दु ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उसका असल नाम ‘देवी’ था. युवा अवस्था में एक सिपाही के प्यार में वो घर छोड़कर मुंबई भाग आई थी, लेकिन भागने के बाद पता चला कि सिपाही पहले से ही शादीशुदा है. 

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इसके बाद बेघर और विवशता की हालत में देवी कई दिनों तक इधर-उधर भटकती रही थी. इस दौरान एक कोठे वाली मौसी की नज़र उस पर पड़ी और वो ‘देवी’ से ‘गुलाबो’ बन गई. गुलाबो से अब्रार अल्वी की मुलाक़ात एक दोस्त के ज़रिए हुई थी. अब्रार लेखक थे इसलिए वो बिना किसी वासना के गुलाबो को जानना और समझना चाहते थे. कुछ ही दिन में गुलाबो और अब्रार अच्छे दोस्त बन गए. समय-समय पर मिलने भी लगे, गुलाबो को अब्रार पसंद था. लेकिन इस बीच अब्रार अल्वी ‘मिस्टर एंड मिसिज 55’ फ़िल्म में तो गुलाबो अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो गयी. कई महीनों तक दोनों मिले भी नहीं.

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कई महीनों तक शूटिंग में व्यस्त रहने के बाद एक दिन अचानक अब्रार अल्वी जब गुलाबो से मिलने उनके घर पहुंचे तो एक लड़के ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘मेरी मां बहुत बीमार है. पिताजी उन्हें डॉक्टर के पास लेकर गए हैं. वो जल्दी ही आती होंगी. मां ने मुझसे कहा था कि आप आ सकते हैं. वो चाहती थीं कि आप उनके आने तक यहीं रुको’. कुछ ही देर बाद गुलाबो आई तो अब्रार को देख उसका मुरझाया चेहरा खिल उठा.

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 क़रीब 15 मिनट की बातचीत के बाद जब अब्रार जाने लगे तो गुलाबो ने उनकी तरफ़ देखते हुए कहा, ‘तुम अब कभी नहीं आओगे न? अब तुम व्यस्त हो चले हो. तुम अपनी गुलाबो को भूल जाओगे. जब कभी भूले भटके मुझसे मिलने आओगे तब बहुत देर हो चुकी होगी’. इसके बाद अब्रार वहां से लौट चले. असल में गुलाबो को टीबी की बीमारी थी. अब्रार को लगातार गुलाबो की वो बातें याद आ रही थीं. एक दिन अब्रार उससे मिलने चल दिए. वो गुलाबो के इलाके से बस से गुज़र ही रहे थे कि उन्होंने बस की खिड़की से बाहर झांक कर देखा गुलाबो की शव यात्रा गुजर रही थी. पता नहीं क्या था जो उसके चेहरे को ढका नहीं गया था.

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अब्रार अल्वी ने एक दिन अपने दिल की ये टीस गुरुदत्त को सुनाई. गुरुदत्त इस सच्ची कहानी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस पर फ़िल्म बनाने का फ़ैसला कर लिया. हालांकि फ़िल्म बनाते वक्त इसमें आवश्यकतानुसर जोड़-घटाव भी किए गए, लेकिन इसमें मूल कहानी गुलाबो की ही थी. फ़िल्म की कुछ पंक्तियां तो हूबहू वैसी की वैसी रखी गई जैसी गुलाबो के मुंह से निकली थीं. 

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इसके बारे में फ़िल्म के लेखक अब्रार अल्वी की किताब ‘टेन ईयर्स विद गुरुदत्त’ में बड़े ही विस्तार से और भावनात्मक तरीके ‘प्यासा’ फ़िल्म के बनने की कहानी बताई गयी है.

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