Story of Noor Mohammad Charlie in Hindi: भारतीय फ़िल्में और उनमें काम करने वाले कलाकारों की स्ट्रगलिंग और उनके शुरुआती करियर के क़िस्से कभी भावुक कर देते हैं, तो कभी हैरान. वहीं, किसी को जल्दी सफ़लता मिल गई, तो कोई लंबे वक़्त तक मायानगरी के चक्कर काटता रहा.
ऐसे कई उदाहरण आपको मिल जाएंगे, जैसे खलनायकों के सरताज जीवन जेब में 26 रुपए डालकर कश्मीर से मुंबई आ गए थे. शुरू में वो फ़ोटोग्राफ़र बनना चाहते, लेकिन आगे चलकर वो एक एक्टर बन गए. वहीं, दमदार अभिनय के लिए लोकप्रिय एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी को चौकीदारी से लेकर और भी कई तरह के काम करने पड़े.
ऐसी ही दिलचस्प कहानी भारत के पहले कॉमेडी किंग ‘नूर मोहम्मद मेमन’ की है, जो कभी छाता ठीक किया करते थे, लेकिन बाद में बने भारत के पहले कॉमेडी किंग.
आइये, अब विस्तार से जानते हैं ‘नूर मोहम्मद मेमन’ (Story of Noor Mohammad Charlie in Hindi) के बारे में.
छाता ठीक करने का काम
नूर मोहम्मद (Noor Mohammad Charlie in Hindi) का जन्म 1 जुलाई 1911 को गुलाम भारत के सौराष्ट्र के पोरबंदर के रानाववी गांव में हुआ था. वो मेमन परिवार से संबंध रखते थे. जानकारी के अनुसार, उनका पढ़ाई में दिल नहीं लगता था. लेकिन, एक जगह जहां उनका दिल लगता था वो था सिनेमाघर. वो अक्सर अपने दोस्तों के साथ सिनेमाघर के लिए निकल जाया करते थे.
कहते हैं कि उन्होंने बड़ी छोटी उम्र में ही आजीविका के लिए छाता सुधारने का काम शुरू कर दिया था. ये काम वो मुंबई की एक दुकान में कर रहे थे.
40 रुपये महीने में एक्टिंग
Story of Noor Mohammad Charlie in Hindi: नूर मोहम्मद का दिलचस्पी फ़िल्मों में ज़्यादा थी, वो सिर्फ़ सिनेमा देखना पसंद नहीं करते थे, बल्कि उनके अंदर एक्टिंग का कीड़ा भी मौजूद था. यही कीड़ा उन्हें डायरेक्टर आर्देशीर ईरानी की कंपनी Imperial Film Company ले गया और वहां उन्होंने कहा कि उन्हें फ़िल्मों में काम करना है. जब उनसे पूछा गया कि तुम क्या-क्या कर सकते हो, तो उन्होंने जवाब में कहा कि घुड़सवारी से लेकर घूंसा मारने तक, तैराकी से लेकर डूबने तक सब काम कर सकता हूं.
इसके बाद उन्हें 40 रुपये महीने में एक्टिंग के लिए रख लिया गया. ये 1925 का दौर था, जब सिनेमा में काम करने वाले उतनी आसानी से नहीं मिलते थे, जैसा आज के समय मिल जाते हैं.
नूर मोहम्मद से नूर मोहम्मद ‘चार्ली’
Life of Noor Mohammed Charlie: शुरुआती समय में काफ़ी मूक फ़िल्में बना करती थी. वहीं, नूर मोहम्मद (Story of Noor Mohammad Charlie in Hindi) ने भी क़रीब 9-10 मूक फ़िल्मों में काम किया था. 1933 में उनकी एक फ़िल्म आई ‘इंडियन चार्ली’. ये फ़िल्म दर्शकों को ख़ूब पसंद आई. सफलता इतनी मिली कि नूर मोहम्मद (First Comedy King of India) ने अपने नाम के साथ चार्ली चैपलिंग का ‘चार्ली’ जोड़ लिया और उसी की तरह मूंछ भी हमेशा के लिए रख ली. इस तरह वो कहलाए देसी चार्ली.
काफ़ी लोग समझते होंगे कि भारत में पहले राज कपूर (Desi Charlee of India) ने ही चार्ली चैपलिंग (Bollywood Actor Who Played Charlie Chaplain Role) के स्टाइल को कॉपी किया, लेकिन बता दें कि राज कपूर से पहले नूर मोहम्मद ये स्टाइल कॉपी कर चुके थे.
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अपनी शर्तों पर फ़िल्मों में काम किया
कहते हैं कि जिस दौर में कलाकार महीने की तनख्वाह पर काम किया करते थे, उस समय नूर मोहम्मद अपनी शर्तों पर काम कर रहे थे. उन्होंने सागर, रंजीत व इंपीरियल जैसी कई कंपनियों के साथ काम किया. नूर मोहम्मद ने कृष्णा फिल्म कंपनी द्वारा बनाई गई अकालना बर्दान (1928) के अपना डेब्यू किया था.
उनकी एक्टिंग इतनी पसंद की जाने लगी थी कि उनके नाम से ही फ़िल्में उठ जाया करती थी. डिस्ट्रीब्यूटर दिल खोल कर पैसा लूटा दिया करते थे कि चार्ली है, तो फायदा तो होना ही है. वहीं, उनके गाए गाने भी लोगों को खूब पसंद आया करते थे.
उनकी पहचान एक कॉमेडी अभिनेता के रूप में हुई और उन्होंने मूक से सावक फ़िल्मों (डायलॉग वाली) में काम किया. उनकी नकल जॉनी वॉकर से लेकर महमूद तक ने की.
वो एक कॉमेडी कलाकार थे, लेकिन उनका दर्जा फ़िल्म के हीरो समान ही था. वहीं, उन्होंने एक्टिंग के अलावा, फ़िल्मों में गाना भी गाया और साथ ही फ़िल्मों का निर्देशन व लेखन भी किया. ऐसा 1941 में आई उनकी फ़िल्म ‘Dhandora’ में देखने को मिला. उनका गाना “पटल तेरा ध्यान किधर है” बहुत लोकप्रिय हुआ था.
विभाजन के बाद चले गए पाकिस्तान
देश के बंटवारे ने सिर्फ़ ज़मीन का टुकड़ा छीना, बल्कि हमने कई कलाकारों को खोया. उसमें नूर मोहम्मद चार्ली (Pre Independence-Actors) भी शामिल थे. जब देश का विभाजन हुआ, तो नूर मोहम्मद ने पाकिस्तान जाने का फ़ैसला किया. वहां, उन्होंने कई पाकिस्तानी फ़िल्में की, लेकिन भारत की तरह वो कामयाबी न मिल पाई. माना जाता है कि वो कुछ समय के लिए इंग्लैंड चले गये थे, लेकिन जब पत्नी का इंतकाल हुआ, तो वो पाकिस्तान आ गए थे. कुछ समय बाद उन्होंने भी दुनिया को अलविदा कह दिया. उनका निधन 30 जून 1983 को पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था.
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