Timur Ruby: कहानी उस बेशक़ीमती रत्न की, जिसे कोहिनूर के साथ बोनस समझकर चुरा ले गए थे अंग्रेज़

Nikita Panwar

Story About Timur Ruby: कोहिनूर हीरे की कई रोचक कहानियां हमने कई दफ़ा सुनी और पढ़ी होंगी. ऐसे कई तथ्य हैं जिसमें कहा जाता है, यह हीरा शापित भी है. जिसके पास ये गया उनकी बर्बादी शुरू हो गई. इस अनमोल रत्न की चमकती रौशनी के सामने बहुत से राजाओं के बीच द्वेष भी हुए हैं. ये तो रही कोहिनूर की बात जिसको ब्रिटिशर्स चुरा ले गए. मगर एक यही अनमोल रत्न हीं था जिसे अंग्रेज ले गए थे बल्कि एक और बेशकीमती रत्न भी था जो ब्रिटिशर्स अपने साथ लेकर चले गए. आज हम आपको उस क़िस्से के बारे में बताएंगे जब ब्रिटिशर्स ने कोहिनूर हीरा ही नहीं बल्कि “तिमूर रूबी” को भी हमसे चुरा लिया.

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चलिए नज़र डालते हैं इस सुन्दर रत्न की दिलचस्प कहानी पर (Unknown Story About Timur Ruby)-

“तैमूर रूबी का इतिहास”

कहा जाता है, तैमूर रूबी पूरी दुनिया में एक ख़ूबसूरत रत्न के नाम से जाना जाता है. लेकिन तैमूर रूबी एक रत्न नहीं बल्कि एक ख़निज पदार्थ है. जिसका मूल रूप से वज़न 353 कैरट है. 17वीं शताब्दी में ये ख़निज पदार्थ फ़ारस (पर्शिया) के शाह अब्बास के हाथों लग गया था जो उस दौरान ईरान के राजा हुआ करते थे. उस समय कई राजा एक दूसरे के दोस्त भी हुआ करते थे. जिसमें से शाह अब्बास की सबसे घनिष्ट मित्रता जहांगीर से थी. जिन्हें एक दूसरे को तोहफ़े देना बेहद पसंद था.

सन 1612 की बात है. शाह अब्बास ने एक ख़ूबसूरत रत्न मुग़ल राजा जहांगीर को तोहफ़े में दिया. जिससे ख़ुश होकर जहांगीर ने अपना नाम और अकबर का नाम उस रूबी पर लिखवा लिया. ताकि उस रूबी पर सारा हक़ उनका ही रहे. साथ ही समय गुज़रने के साथ-साथ उनके वंशजों ने भी अपना नाम उस रूबी पर लिखवाया था.

जिसके बाद 1739 में नादिर शाह जो ईरान के इतिहास के सबसे ताक़तवर शासक थे. जब उन्होंने दिल्ली लूटा, तब वो (Peacock throne) मोर सिंघासन, रूबी और कोहिनूर हीरा भी अपने साथ ले गए.

नादिर शाह ने उत्कीर्ण किया कि यह माणिक राजाओं के राजा-सुल्तान साहिब क़िरान का था, जिसे फारसियों ने तैमूर कहा था. जिसके बाद उस रूबी का नाम “तैमूर रूबी” पड़ गया.

आखिरी शिलालेख़ उस रूबी पर अहमद शाह द्वारा बनाया गया था, जो नादिर शाह की सेना के कमांडर था. जब 1747 में नादर शाह की हत्या कर दी गई थी. तब अहमद शाह ने राजा बनने को कोशिश की थी. लेकिन उस लूट के लालच में उसने पद छोड़कर अफ़ग़ानिस्तान का साम्राज्य बना लिया था.

1813 में राजा रंजीत सिंह ने कोहिनूर और बाकी सारे हीरे और जेवरात अमृतसर में ही रख लिया. लेकिन महाराजा रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद ब्रिटिशर्स ने राजा दुलीप सिंह (महाराजा रंजीत सिंह के बेटे) को अपदस्थ कर दिया और उनसे कोहिनूर हीरा और तैमूर रूबी अपने अधिकार में ले लिया था.

अप्रैल 1850 के बाद दोनों ही रत्न कोहिनूर और रूबी यूनाइटेड किंगडम की रानी एलिज़ाबेथ के सामने जुलाई 1850 को पेश किया गया. तबसे लेकर आजतक वो दोनों ही रत्न भारत में नहीं हैं. यही है दो अनमोल रत्न को खोने की कहानी जिसको हम भारतीय आज भी अपने देश वापस लाने की राह देख रहे हैं.

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