History Of Saree Fall: बंधानी, बनारसी, चिकनकारी, चंदेरी, बोमकई, ये सारे साड़ी के अलग-अलग प्रकार हैं. साड़ी का इतिहास बहुत ही पुराना है. भारत में सदियों से ये परिधान महिलाओं की ख़ूबसूरती में चार चांद लगाते आ रहा है.
जानकारों के मुताबिक, 2800-1800 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता में इससे मिलते जुलते परिधान भारतीय लोग पहना करते थे. मगर आज साड़ी के इतिहास के बारे में नहीं उससे जुड़ी एक चीज़ के बारे में आपको बताएंगे.
History Of Saree Fall: हम बात कर रहे हैं साड़ी में लगने वाली फॉल की. साड़ी के फॉल का नाम सुनते ही शाहिद कपूर का सुपरहिट गाना ‘साड़ी के फॉल से…’ गाना याद आज जाता है. ख़ैर आज हम ये जानेंगे कि आख़िर कब और क्यों भारतीय महिलाएं साड़ी में फॉल लगाने लगी.
चलिए जानते हैं साड़ी के फॉल का इतिहास (History Of Saree Fall)
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भारत के पारंपरिक परिधान साड़ी में फाल को हमेशा निचले हिस्से में लगाया जाता है. इसके यहां लगाए जाने से ही जुड़ा है फाल के लगाए जाने के चलन का क़िस्सा. दरअसल, वक़्त के साथ साड़ी में भी बदलाव हुए. पहले जहां सिंपल और गिने-चुने रंग की साड़ियां पहनी जाती थी.
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महंगी साड़ियों के साथ थी ये समस्या
History Of Saree Fall: समय के साथ इनमें भी बदलाव हुआ और इनमें कढ़ाई-बुनाई और महंगे-महंगे स्टोन लगाए जाने लगे. साड़ी में जितना ज़्यादा काम उतनी ही ऊंची उनकी क़ीमत. मगर इनकी एक परेशानी भी थी. इन्हें कुछ दिनों तक इस्तेमाल करने के बाद इनके निचले हिस्से मुड़ने लगते, जैसे कोई पाइप.
इससे बचने के लिए साड़ी में प्रेस की जाने लगी. मगर एक और समस्या थी, वो ये कि साड़ी को कई दिन पहनने से उसका निचला हिस्सा घिसकर फटने लगता. अब इससे कैसे साड़ी की सुरक्षा की जाए.
साड़ी की सुरक्षा के लिए निकाला गया ये उपाय
History Of Saree Fall: इस समस्या का समाधान निकाला मुंबई वासियों ने. यहां 70 के दशक में बेल बॉटम पैंट की धूम थी. इनके निचले हिस्से को बचाने के लिए इनमें पीतल की चेन लगाई जाती थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1975 में इसी तर्ज पर साड़ी को बचाने के लिए उनमें चैन दर्जी लगाने लगे.
अब साड़ी में चेन लगने से वो बच तो जा रही थीं, लेकिन इनकी क़ीमत बढ़ने लगी. महंगी साड़ी में तो ठीक था लेकिन सस्ती साड़ी में चेन लगवाना महंगा पड़ जाता था. इस दिक्कत को दूर करने के लिए साड़ी के निचले हिस्से पर एक और कपड़ा लगाया जाने लगा. इसे फॉल कहा जाता.
History Of Saree Fall: साड़ी में फॉल लगाने के दो फ़ायदे थे, एक तो ये साड़ी को फटने से बचाता और हल्की साड़ी को वज़नदार बना उन्हें नीचे ठहरने या बने रहने में भी हेल्प करता. ये कॉन्सेप्ट महिलाओं को ख़ूब भाया और इस तरह साड़ी की दुनिया का अटूट हिस्सा बन गया फॉल.
समझ गए ना साड़ी और फॉल का रिश्ता करीब 50 साल पुराना है और ये शायद हमेशा बना रहेगा.