Maharani Indira Devi: महारानी गायत्री देवी की ख़ूबसूरती के क़िस्से तो ख़ूब सुने हैं, लेकिन शायद ही कोई जानता होगा कि इनकी मां इनसे कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत और स्टाइलिश थीं. इनकी ख़ूबसूरती और स्टाइल के चर्चे उस दौर में ज़बरदस्त थे. इनका नाम महारानी इंदिरा राजे था, जिन्हें महारानी इंदिरा देवी के नाम से भी जाना जाता था. महारानी इंदिरा देवी का जन्म बड़ौदा के राजघराने में 19 फरवरी 1892 में हुआ था.
Maharani Indira Devi
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कहा जाता है कि इंदिरा देवी को उस ज़माने की सबसे ख़ूबसूरत महिला माना जाता था. साथ ही उन्हें सजने-संवरने का बहुत शौक़ था, जिसके लिए वो विदेशों से चीज़ें ख़रीदती थीं क्योंकि हॉलीवुड में उनके कई दोस्त थे. इसलिए वो विदेशी चीज़ों को ज़्यादा पसंद करती थीं.
फ़ैशन की मुरीद इंदिरा देवी ने एक बार इटली की कपंनी Salvatore Ferragamo को 100 जोड़ी सैंडल बनाने का ऑर्डर दिया, जिसमें उन्होंने हीरे और बेशकीमती रत्न लगाने को कहा. ये कंपनी 20वीं सदी की सबसे प्रसिद्ध जूते बनाने की कंपनी थी. जूते के अलावा, वो कपड़ों में भी काफ़ी ध्यान देती थीं. वो सिर्फ़ सिल्क और शिफ़ॉन की ही साड़ियां पहनती थीं. भारत में सिल्क और शिफ़ॉन को ट्रेंड में लाने वाली महारानी इंदिरा देवी ही थीं.
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इटली के फ़ेमस डिज़ाइनर Salvatore Ferragamo महारानी इंदिरा देवी के पसंदीदा डिज़ाइनर्स में से एक थे. उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफ़ी में लिखा था कि,
महारानी ने उनकी कंपनी को हीरे और रत्न जड़ित 100 सैंडल बनाने का ऑर्डर दिया था, जो वो अपने पसंद और कलेक्शन का चाहती थीं. इसलिए हीरे और रत्न उन्होंने ख़ुद भेजे थे.
महारानी इंदिरा देवी ने महज़ 18 साल की उम्र में अपने मंगतेर को एक लाइन का ख़त लिखा कि वो उनसे शादी नहीं करना चाहतीं, जो ग्वालियर राजघराने से संबंध रखते थे. ग्वालियर राजघराना देश के विशिष्ट राजवंशों में से एक था. हाालंकि, महारानी इंदिरा देवी के इस फ़ैसले से उनके परिवार वाले ख़ुश नहीं थे क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं ग्वालियर घराने से रिश्ता तोड़ने पर कोई विवाद न हो जाए, लेकिन ग्वालियर के महाराजा ने इस बात को बहुत ही सरलता से लिया और कहा कि वो महारानी इंदिरा देवी के पिता की स्थित को समझ सकते हैं. इंदिरा के परिवार ने सगाई टूटने को तो स्वीकार कर लिया.
इसके बाद, इंदिरा देवी के पिता को पता चला कि वो कूच बिहार के महाराजा के छोटे भाई जितेंद्र नारायण से शादी करना चाहती हैं, जिनकी छवि प्लेबॉय वाली थी. इसलिए इंदिरा देवी के परिवारवालों ने इस रिश्ते से मना कर दिया. इसकी एक वजह ये भी था कि जितेंद्र नारायण के महाराजा बनने को कोई आसार नहीं थे, इसलिए अपनी बेटी के भविष्य की चिंता करते हुए इंदिरा देवी के पिता ने इस रिश्ते से इंकार कर दिया और चेतावनी देते हुए कहा कि वो उनकी बेटी इंदिरा से दूर रहें. हाालंकि, जितेंद्र ने पीछे हटने से मना कर दिया क्योंकि वो इंदिरा से ही शादी करना चाहते थे. इसलिए दोनों के रिश्ते के लिए इंदिरा देवी के पिता को रज़ामंदी देनी पड़ी.
पिता ने रज़ामंदी तो दे दी, लेकिन उन्होंने इंदिरा से घर छोड़कर लंदन में रहने को कहा, वहीं दोनों ने ब्रह्मसमाज से शादी की, जिसमें कोई भी नहीं शामिल हुआ. कुछ समय बाद, जितेंद्र के बड़े भाई का निधन हो गया तो राजगद्दी की ज़िम्मेदारी जितेंद्र पर आ गई और वो कूच बिहार के महाराजा बन गए. जितेंद्र भी अपनी शराब पीने की लत की वजह से ज़्यादा दिन नहीं जी पाए, इनके निधन के बाद गद्दी की ज़िम्मेदारी इंदिरा देवी ने संभाली. हालांकि, उनके पांच बच्चे थे, लेकिन उस समय सब छोटे थे.
इंदिरा देवी अपना ज़्यादा समय यूरोप में बिताती थीं, जब उनका बड़ा बेटा राजगद्दी में बैठने योग्य हुआ तो वो सारी ज़िम्मेदारी उसे सौंप कर यूरोप में ही रहने लगीं. अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिनों में वो मुंबई में थीं, वहीं उन्होंने 76 साल की उम्र में बीमारी के चलते 6 सितंबर 1968 को आख़िरी सांस ली.