रानी दिद्दा: वो वीरांगना जिसने दुश्मन के सामने घुटने नहीं टेके, बल्कि शेरनी की तरह सामना किया

Kratika Nigam

Queen Didda: इतिहास सिर्फ़ वीरों की वीरता से ही नहीं, बल्कि वीरांगनाओं की सूझ-बूझ और पराक्रम का भी ग़वाह है. कितनी ही वीरांगनाएं हुईं, जिनमें पन्ना धाय, रानी लक्ष्मीबाई, रानीअवंतीबाई, पद्मावती सहित कई अन्य शामिल हैं. इन्होंने अपनी बुद्धिमानी और साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों को धूल चटाई है. इतिहास के पन्नों में ऐसी ही एक वीरांगना थीं रानी दिद्दा, जिनमें तेज़ दिमाग़ और बाज़ी पलटने का हुनर था.

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आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं कि आख़िर क्यों इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षर में लिखा गया रानी दिद्दा (Queen Didda) का नाम?

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एक वक़्त था जब देश के हरियाणा, पंजाब, पुंज के हिस्से में लोहार राजवंशों का राज चलता था. इन्हीं राजवंशों के घर एक अपंग लड़की जन्मीं जिसे उनके मां-बाप ने त्याग दिया. मगर भला हो उस नौकरानी का जिसने इस छोटी सी अपंग बच्ची को एक वीरांगना की तरह पाला, वो थीं रानी दिद्दा. दिद्दा ने बड़े होकर युद्धकला के गुर सीखे और पुरुषों को परास्त कर दिया. इन्हें ‘कश्मीर की रानी’ के नाम से भी जाना जाता है.

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दिद्दा शिकार में भी माहीर थीं एक दिन शिकार के दौरान ही सम्राट सेनगुप्त की नज़र दिद्दा पर पड़ी और वो उन्हें पहली नज़र में ही दिल दे बैठे. दिद्दा एकलौती ऐसी रानी थीं जिनके पति ने उनके पराक्रम और साहस की इज़्ज़त करते हुए अपने नाम से पहले उनका नाम लगाया. इनके पति को दिद्क सेनगुप्त के नाम से जाना जाता था.

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दोनों ने एक-दूसरे के प्यार में पड़कर विवाह रचा लिया और तभी से एक त्यागी हुई लड़की का राजसी जीवन शुरू हुआ. दिद्दा ने अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए राजकाज भी संभालना शुरू किया. इनके राजकाज में हाथ बंटाने से साम्राज्य काफ़ी बढ़ने लगा. तब सम्राट ने उनके सम्मान के तौर पर दिद्दा के नाम का सिक्का जारी किया.

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तभी अचानक शिकार के दौरान सम्राट की मृत्यु हो गई और दिद्दा का पूरा जीवन उलट-पलट हो गया. ये वो दौर था जब पति सति प्रथा का चलन था लेकिन दिद्दा ने इस कुप्रथा का खंडन किया और अपने पति के साम्राज्य को पूरी शिद्दत से संभालना शुरू किया. पति की मृत्युसैय्या पर दिद्दा ने प्रण लिया कि वो उनके साम्राज्य को ग़लत हाथों से बचाएंगी, इस प्रण ने इन्हें कई बड़ी चुनौतियों में डाल दिया. इसी के चलते दिद्दा ने कई नए नियम बनाए और पुरुषों के इस समाज में अपनी अलग जगह बनाई.

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इन्होंने ही गुरिल्ला युद्ध नीति को जन्म दिया था साथ ही 35 हज़ार सेना का मुक़ाबला 500 सैनिकों के साथ किया और 45 मिनट में जंग जीत ली. इसके अलावा, खुंखार महमूद गजनवी ने जब हिंदुस्तान पर कब्ज़ा करने की नीति के साथ 1025 में गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया और फिर कश्मीर को बड़पना चाहा जहां उसे रानी दिद्दा का सामना करना पड़ा और वो उनकी वीरता के आगे हार गया. गजनवी को रानी दिद्दा ने एक बार नहीं, बल्कि दो बार धूल चटाई थी.

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दिद्दा पर लेखक आशीष कौल ने एक किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने दिद्दा की वीरता का बखान करते हुए कहा कि, कई राजा उनकी बहादुरी और बुद्धिमानी के आगे घुटने टेक गए, जिसके चलते उन्होंने दिद्दा का मज़ाक उड़ाते हुए उन्हें ‘चुड़ैल रानी’ नाम दिया.

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आपको बता दें, पराक्रमी रानी दिद्दा ने अपने पति की सत्ता को काबिल हाथों में देने के लिए अपने भाजों के बीच एक प्रतियोगिता की, जिसमें जो सबसे ज़्यादा सेब अपने हाथों में लायेगा वो सत्ता का मालिक होगा. इसी सूझ-बूझ और बहादुरी ने रानी दिद्दा का नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखवाया है.

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